१०.इलेक्शन और गांधीजी......
वे जनरल
इलेक्शन के दिन थे | सारे देश में नारों, सभाओं, गानों, भाषणों, पोस्टरों के युद्ध
की धूम थी| यहाँ तक कि बच्चे भी इस सब में खूब धूम धाम से सम्मिलित थे| जश्न जैसा
माहौल था |
रामप्रकाश जब
घर के बाहर खेलने निकला तो सभी बच्चे किसी न किसी का बिल्ला लगाए हुए आपस में बहस
कर रहे थे| उसने जगदीश से, जो दो बैलों की जोड़ी’ का बिल्ला लगाये था,पूछा, ‘तुम ये
क्यों लगाए हो?’
‘मैं गांधीजी
को वोट दूंगा,’ जगदीश ने कहा| ‘ये उनका निशान है|’
गांधीजी!
रामप्रकाश ने आश्चर्य से कहा,’ पर वे तो
मर चुके हैं|’ मेरे पिताजी कह रहे थे, ये तो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है| ‘तो फिर
ये नेहरू जी का निशान होगा,’ माया ने सुझाया |
पता नहीं, जगदीश बोला, ‘मेरे पिताजी कहते हैं कि
हमें गांधीजी को वोट देना चाहिए, उन्होंने देश को आजाद कराया|’ अचानक जगदीश
चिल्लाया, ‘क्या तुम जनसंघी हो? क्योंकि वे ही गांधीजी व कांग्रेस को बुरा भला
कहते रहते हैं|’
अचानक सब चिल्ला
पड़े, ‘जनसंघी है भंगी, गली गली में शोर है, दीपक वाला चोर है|’ कुछ अन्य बच्चे चिल्लाए ‘दीपक को देंगे वोट,
कांग्रेस से लेंगे नोट| बैलों की जोड़ी भाग गयी|’
‘ पर मेरे पिताजी
कहते हैं कि हमें जनसंघ को वोट देना चाहिए क्योंकि वही पार्टी हिंदुत्व को बचा
सकती है’, रामप्रकाश बोला|
जगदीश कहने लगा, ‘मेरे
पिताजी ने बताया है कि जनसंघियों ने गांधीजी को मारा है| गांधीजी के हत्यारे के साथ कोई मत खेलो,वह
चिल्ला कर कहने लगा| ‘
आंसू भर कर
रामप्रकाश बोला, ‘पर मैंने तो उन्हें कभी देखा ही नहीं| हो सकता है किसी जनसंघ
वाले ने मारा हो तो मैं क्या करूं|’
बाद में जब
रामप्रकाश ने अपने पिताजी से पूछा की गांधीजी को किसने मारा तो वे बोले, ‘नाथूराम
गोडसे जो आरएसएस का आदमी था और गांधीजी का सेवक था पर वह उनकी हिन्दू विरोधी बातों
को अच्छा नहीं मानता था| गांधीजी ने तो उसे माफ़ कर दिया था| ‘
क्यों,
रामप्रकाश ने आश्चर्य से पूछा |
‘ये महान लोगों
की बातें हैं सोच हैं बेटा, गांधीजी ने गांधीजी की तरह सोचा और नाथूराम ने सामान्य
देशभक्त की तरह अपनी तरह सोचा| परिस्थितयों के अनसार दोनों ही सही थे| वे सोच में
डूब गए’ और रामप्रकाश आधा समझता हुआ आधा न समझता हुआ खेलने चल दिया |
११.गट्टू पहलवान
खाने की छुट्टी में किशोर जब खाना खाकर स्कूल
के पीछे वाले खुले स्थान में पहुंचा, जिसे बच्चे खेलने के लिए
प्रयोग करते थे, तो सारे बच्चे चुपचाप थे। कोई भी न लट्टू
चला रहा था न कंचे खेले जारहे थे।
‘सब चुपचाप क्यों हैं,
खेल क्यों नहीं रहे। क्या हुआ?’ किशोर पूछने लगा।
‘ गट्टू
राकेश का लट्टू व कंचे छीन ले गया है।‘
‘ये कौन है, उसने राकेश के कंचे क्यों छीन लिए और तुम लोगों ने रोका नहीं?’ किशोर बोला। ‘क्या वो अपने स्कूल में पढ़ता है।‘
‘ अबे! वो पहलवान है,
गट्टू दादा।‘ रोशन बोला, जो स्वयं इसी गली में रहता था।
‘ पर बाहर वाले का
यहाँ क्या काम और पहलवान का बच्चों से क्या मतलब।‘, किशोर ने कहा।
‘क्या करें वह दादा जो है। ‘
‘ क्यों सब लोग पकड़कर पीटें,तो उसे भागना पडेगा।‘
‘ अच्छा तुम करके देखना, पता चल जाएगा। यह किताब पढ़ना थोड़े
ही है जो रटकर होशियार बन जाओ, मास्टर जी क्लास का मानीटर बना देंगे।‘
लोहार गली में मंदिर का प्राइमरी स्कूल था। किशोर का अभी अभी दाखिला
हुआ था। पंडित परिवार शहर के धाकड़ खानदानों में था। यद्यपि पंडित खानदान ने शहर को
बड़े बड़े डाक्टर, अफसर आदि भी दिए थे परन्तु वह दादागीरी के
लिए भी मशहूर था। गट्टू परिवार का सबसे छोटा बेटा था|
७.
किशोर
जब खेल के मैदान में पहुंचा तो देखा कि सभी
बच्चे एक गठीले बदन व गट्टे शरीर के एक लडके को घेर कर खड़े थे,उसका शरीर
अन्य सामान्य बच्चों से कुछ अधिक बड़ा था। किशोर को देखते ही रोशन बोला, ‘चलो इन्हें प्रणाम करो हाथ जोड़कर।‘
‘कौन है ये।‘ किशोर
बोला, ‘अपने स्कूल का तो नहीं लगता।‘
‘ ये दादा हैं, गट्टू पहलवान।‘
रोशन बोला, ‘प्रणाम करो।‘
‘क्यों ?’
'अबे कौन है तू?'
गट्टू ने किशोर को घूरकर देखते हुए कहा। ‘नया
नया आया है क्या ।‘
हाँ, उस्ताद, ये किशोर है, क्लास का
मानीटर भी है।
किशोर
चुपचाप खडा रहा तो गट्टू बोला ,'चल चुपचाप अपना लट्टू दे ।'
नहीं देता, क्या कर लोगे? पहलवान हैं तो अखाड़े में जाएँ,
बच्चों को क्या धमकाते हो।‘ किशोर बोला।
अबे उल्लू के..। गट्टू तेजी से आगे बढ़ा तो किशोर ने उसे जोर से धक्का दिया। फिर वे एक दूसरे
से भिड़ गए, गुत्थम-गुत्था होगये। तभी खाने
की छुट्टी समाप्त होने की घंटी बजी। दोनों खड़े होकर एक दूसरे
को देखने लगे। बच्चे किशोर से कहने लगे,खूब पिटे..खूब पिटे।
‘पीटा भी तो पहलवान को’,दादा को,’किशोर बोला ।
गट्टू धमकाता हुआ,
फिर देखूंगा कहता हुआ चला गया। बच्चे खुश भी थे कि आज उनके लट्टू-कंचे छीने जाने से बच गए।
अगले दिन खाने की छुट्टी
पर बच्चे कहने लगे, 'रोशन,आज तुम्हारे गट्टू दादा नहीं आये!'
१२. बदलते उसूल---
‘मम्मा पापा, खाना खाकर जाइए |’
अरे नहीं बेटा! ‘हमारे यहाँ बहन–बेटियों
के घर कहाँ खाते हैं |’
अरे मम्मा ! ‘पुरानी बातें हैं, अब तो सब खाते हैं|’
हाँ, ठीक है परंतु अभी तक मानते आये हैं,तो जब तक आपत्तिकाल न हो क्या आवश्यकता है| प्रथाओं को मानते रहें तो क्या हर्ज़ है |’
‘पर इसमें हर्ज़ क्या है?’
‘यह लम्बी बात है बिटिया, पहले लड़की के गाँव का भी पानी नहीं पीते थे|’
‘पर आखिर क्यों,’ रेशू कहने लगी, ‘बेटे बेटी की पढाई में आपने कोइ अंतर
नहीं किया, तो ये अंतर क्यों | अब तो बेटियाँ भी कमाने लगी हैं |’
हाँ सही है, ‘परन्तु ये भारतीय समाजशास्त्र के दूरंदेशी-युत व्यबहारिक तत्व
हैं| खायेंगे, रहेंगे तो निश्चय ही लड़की के दैनिक गृह-व्यवहार में छींटा-कसी,
दखलंदाजी होगी| प्रत्येक परिवार के व्यवहारिक व धार्मिक रीतियाँ समान नहीं होतीं
अतः हो सकता है कि पति परिवार को पसंद न आये और आपसी तनाव का कारण बने|’
‘परन्तु आजकल तो आना जाना, रहना खाना सब कर रहे हैं, खूब होरहा है |’
‘हाँ, तभी तो झगडे, टंटे, तलाक खूब हो रहे
हैं | हाँ और एक बात, फिर बेटे भी कहने लगेंगे कि वहाँ क्यों नहीं जाते | वे अपने
फ़र्ज़ से कोताही करने लगेंगे | भाई-बहनों के रिश्तों में फूट पड़ने लगेगी जैसे आजकल
प्रोपर्टी में पुत्री का हिस्सा होने के कारण हो रही है|’
‘पर पुत्री का हिस्सा क्यों न हो ?’, रेशू ने
प्रश्न उठाया|
८.
‘क्योंकि दान-दहेज़, टीका, राखी,
शादी-विवाह, भात–पछ, प्रत्येक ठिक-त्यौहार पर बेटी-बहन को देना एक प्रकार से
किश्तों में प्रोपर्टी से हिस्सा देना ही तो है जीवन भर | इससे एक दूसरे को भूले
बिना आपसी सम्बन्ध भी सदा बने रहते हैं और हिस्सा-बाँट के नाम पर ख़राब भी नहीं
होते |’
‘पर लड़की के यहाँ आयेंगे नहीं तो खोज–खबर कैसे होगी | ससुराल वालों या पति
द्वारा उत्प्रीणन का कैसे पता चलेगा | ‘
‘हाँ अवश्य, वह तो आते जाते रहना चाहिए, पहले भी आते जाते थे, पर इसका
खाने-रहने से क्या सम्बन्ध | यह तो बिना उसके भी किया जा सकता है |’
१३.मोड़ जीवन के....
एक साहित्यिक आयोजन में हिन्दी कविता पर सारगर्भित व्याख्यान के पश्चात एक वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा, 'बहुत शानदार व्याख्या,डा रसिक जी, आपने किस विश्वविद्यालय से व साहित्य के किस विषय पर शोध किया है?
क्या अभिप्रायः है आपका? आश्चर्य चकित होते हुए रसिक जी ने पूछा तो बगल में बैठे हुए अनित्य जी हंसते हुए बोले, अरे रसिक जी कोई साहित्य के डाक्टर थोड़े ही हैं, वे तो इन्जीनियारिंग के प्रोफेशनल पीएचडी धारक हैं।
ओह! पर यह मोड़ कैसे व कब आया? कहाँ नीरस इन्जीनियरिंग और
कहाँ साहित्य? वे रसिक जी की ओर उन्मुख होते हुए कहने लगे
'कविता तो सभी कर लेते हैं पर सम्पूर्ण साहित्यकारिता, हर क्षेत्र में वह भी पूरी गहराई तक, यह मोड़ कैसे आया?
रसिक जी हंसने
लगे। यह तो मेरी व्यक्तिगत रूचि का कार्य है। मैं यह मानता हूँ कि व्यक्ति को अपने
प्रोफेशनल कार्य या अन्य कार्य में ऋद्धि-सिद्धि-प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने के पश्चात वहीं अटके नहीं रह जाना चाहिए अपितु आगे
बढ़ जाना चाहिए,नयी-नयी राहों पर,लक्ष्यों पर। जीवन स्वयं ऋजु मार्ग कब होता है? जीवन तो स्वयं ही विभिन्न मोड़ों से भरा होता है।
वे शायद अतीत
के झरोखों में झांकते हुए कहने लगे,यह कोई मेरे जीवन का प्रथम
मोड़ नहीं है। बचपन में प्राथमिक कक्षाओं में उन्मुक्त चिंता रहित खेलने-खाने के दिनों में सामान्य छात्र की भांति जीवन का एक सुन्दर सहज भाग बीता
ही था कि कुछ घरेलू परिस्थितियों के कारण मुझे अध्ययन त्याग कर प्राइवेट सर्विस करनी
पडी जो जीवन का दूसरा दौर था। वह भी एक विशिष्ट जीवन-अनुभव का
दौर रहा,जहां बहुत कुछ स्वयं शिक्षा के अनुभवों द्वारा,
साथियों,सहकर्मियों,मालिकों
द्वारा विभिन्न प्रकार का ज्ञान हुआ जो कहीं से भी,किसी से भी,कभी भी,किसी भी मोड़ पर प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान
ही मानव का वास्तविक साथी है जो हर मोड़ पर आपका साथ देता है कई वर्ष बाद दूसरा मोड़
तब आया जब मैंने बड़े भाई के कहने पर घर पर ही अध्ययन करके व्यक्तिगत तौर पर जूनियर
हाई स्कूल की परीक्षा दी,फ़िर चला अध्ययन का नया दौर,सुहाना दौर,किशोरावस्था से युवावस्था तक। हाईस्कूल,
इन्टर्मीजिएट के बाद अभियन्त्रण वि.विध्यालय में
चयन के साथ प्रोफ़ेशनल कालेज के मनोरम,स्वप्निल,युवा तरन्गित वातावरण में ग्रेजुएशन व पोस्ट-ग्रेजुएशन
का आनन्दमय दौर व शोधकर्ता रूप में पीएचडी की डिग्री का सुहाना गौरवपूर्ण अनुभव।
अभियान्त्रीकरण विद्यालय में अध्यापन,तदुपरान्त निज़ी कम्पनी चलाने का दौर तीसरा मोड़ था जीवन
का जो एक अति विशिष्ट व महत्वपूर्ण अनुभव का दौर था। तत्पश्चात केन्द्रीय सरकार,रेलवे के प्रथम श्रेणी अफ़सर के रूप में सेवा एक चौथा मोड़ था,जो ज़िन्दगी की भाग-दौड,विभागीय
मसले-द्वन्द्व,खेल-कूद,प्रतियोगिता,विवाह,परिवार के दायित्व के साथ साथ युवा मन के स्वप्निल सन्सार, धर्म, अर्थ, काम के सन्तुलित व्यवहार
की कठिनतम जीवनचर्या, रचनात्मक-कार्य, धन प्राप्ति, सिद्धि-प्रसिद्धि
प्राप्ति का एक सुन्दरतम दौर भी रहा।
लिखना पढ़ना तो सदैव ही मेरा प्रिय व्यक्तिगत अतिरिक्त कर्म रहा है। बचपन, स्कूल-कालेज, विश्व विद्यालय सभी में यह क्रम सेवा के साथ साथ भी चलता रहा। यह जो आप देख
रहे हैं यह पांचवा मोड़ सेवानिवृत्ति के पश्चात समस्त सिद्धि, प्रसिद्धि के विभिन्न आमन्त्रण, लोभ-लालच, अर्थ प्राप्ति के साधनों से
९.
भी निवृत्त होकर आया है जो आपके सम्मुख है, कि बस अब सन्सार बहुत
हो गया कुछ बानप्रस्थी भाव भी अपनाना चाहिये, अपने स्वयं के लिये
जीना चाहिये। स्वयं में स्थापित होकर समाज भाव,अपना प्रिय स्वतन्त्र
कर्म भी करना चाहिये। आगे कौन सा मोड़ होगा यह तो ईश्वर ही जाने? शायद इस सारे ताम-झाम से भी सन्यस्त होने का......।
१४.माँ...
ईश्वर ने
जब माँ को बनाया तो समीप खड़े हुए देवदूत ने अभिभूत होकर कहा,’प्रभु! यह तो जगत की सर्वोत्कृष्ट,
सर्वश्रेष्ठ, सर्वसौन्दर्यमय, सर्वगुणसम्पन्न एवं स्वयं विशिष्टता व गुणों का अवतार
है| अब तो आप निश्चिन्त होंगे कि यह कायनात निश्चय ही सदा दैवीय गुणों से परिपूर्ण
रहेगी| ईश्वर ने कहा, ‘हाँ आशा तो यही है|’
ईश्वर के ललाट पर कुछ चिंता की सलवटें भी थीं|
वार्तालाप शैतान व उसका दूत भी सुन रहा था| शैतान चिंतित होते
हुए दूत से बोला, ’स्थिति पर ठीक से दृष्टि रखो|’
स्त्री-पुरुष सदाचरण-युक्त
जीवन व्यतीत कर रहे थे| बच्चे माँ के पयामृत-पान से धीर, वीर, गंभीर, ज्ञानवान,
आचारवान, आस्थावान व बड़ों के आज्ञाकारी, कोमलमना होते थे| सर्वत्र धर्म, न्याय,
सत्य का चलन था एवं सुख-शान्ति थी|
शैतान यह
सब देखकर बहुत अप्रसन्न हुआ| उसने दूत को बुलाकर डांटा,’यह क्या होरहा है? जाओ,शीघ्र
ही स्थिति को सुधारो वर्ना किसी और को पृथ्वी का प्रधानमंत्री बनाने का मन बना
लूँगा और तुम्हें रौरव-नर्क का राज्यपाल बना दिया जायगा|’
कुछ समय बाद दूत राजधानी
आया और प्रसन्नता पूर्वक शैतान को निरीक्षण का आमंत्रण दिया|
शैतान ने देखा कि
सर्वत्र पृथ्वी पर ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी हुई हैं| सर्वत्र मशीनों से काम होरहा है|
इंसान आसमान में उडकर एक स्थान से दूसरे स्थान जाता है| स्वयं अपने हाथ से कोई काम नहीं करता बस खूब धन कमाता है व ऐश करता है|
चारों और अशांति है, द्वंद्व-द्वेष में जकडा हुआ है| धन के लिए चोरी, लूट झगड़ा,
ह्त्या, डकैती की गलाकाट प्रतियोगिताहै| भ्रष्टाचार, अनाचार, स्त्रियों से दुर्व्यवहार,
मारपीट, बलात्कार की बाढ़ आई हुई है|
वाह! बहुत खूब| परन्तु
यह सब क्यों होने लगा? शैतान ने खुश होकर पूछा| दूत मुस्कुराते हुए शैतान को विशेष-निरीक्षण
साईट-इन्सपेक्शन पर ले गया| शैतान देखने लगा....
एक बेटे ने अपने
माँ-बाप को ओल्ड-एज होम में भरती कर दिया था व मेनेजर प्रतिवर्ष जन्म-दिवस आदि पर बेटे
की और से उन्हें भेंट भिजवा दिया करता था| एक देश में माँ व बेटा साथ-साथ अपने-अपने
गर्ल-फ्रेंड व बॉय-फ्रेंड के साथ सार्वजनिक स्थान पर बिकनी में स्नान कर रहे थे| जगह-जगह युवाओं को धर्म, सत्साहित्य की बजाय खूब
धन कैसे कमाएँ के प्रवचन दिए जारहे थे| बेटा, बेटी व माँ-बाप बैठकर टीवी पर शीला की
जवानी गाना सुन रहे थे| स्त्री-पुरुष, युवक-युवती साथ-साथ तो रहते थे बिना विवाह के
परन्तु संतान कौन पालेगा व केरियर के नाम पर गर्भपात करा रहे थे|
शैतान ने कुछ समाचार-पत्रों
में समाचारों का भी अवलोकन किया |एक देश के राष्ट्रपति ने पुरुष-पुरुष विवाह, स्त्री-स्त्री
विवाह को जायज़ बताया, बेटे ने पत्नी के कहने पर माँ की ह्त्या की, पांच बच्चों की माँ
द्वारा प्रेमी के साथ मिलकर तीन बच्चों व पति की ह्त्या, पति द्वारा उत्प्रीणन से तंग
आकर माँ ने बच्चों की ह्त्या के बाद आत्महत्या करली|
शैतान ने दूत की
पीठ ठोकी और पूछा ,’यह सब तुमने कैसे किया?’
दूत ने बताया, ‘मैंने सिर्फ स्त्रियों को पुरुषों की बराबरी
हेतु, धन कमाने, फैशन व फिगर की चिंता-चर्चा में लगा दिया, साथ ही डिब्बे के दूध का
आविष्कार कराया तथा युवाओं-पुरुषों को पत्नियों से नौकरी कराने के लाभ बताए| ताकि संतान
को माँ का कम से कम समय मिले| संतान में संस्कार न जाने पायें |’
‘बाकी सारा कार्य
तो इंसान ने स्वयं ही, मशीनों, ब्लू-फिल्म
व नित्य नए मनोरंजन के साधनों का आविष्कार करके व धर्म को अफीम व आडम्बर,
शास्त्रों को अर्थहीन, प्रगति में रोड़ा व धीमी सोच के लिए मज़बूर करने वाला मानकर त्याज्य
कहकर,कर दिया |’
१०.
१५.मंत्री जी शहर
में ...
पीछे से तेजी से आती
हूटर की आवाजों से आराध्य चौंक कर डर गया उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया| मुझे स्कूटर एक ओर
रोकना पड़ा| गाडियां तेजी से हूटर बजाती हुईं व लाल लाल बत्तियाँ चमकाती हुईं दूर चली
गयीं|
थोड़ी देर में
प्रकृतिस्थ होते हुए मेरे ५ वर्ष के पोते आराध्य ने पूछा,’ये कौन थे बाबाजी!
इतनी तेज तेज गाड़ी चलाकर लेजाते हुए आवाजें करते हुए कहाँ जारहे हैं इतनी जल्दी
में| क्या कोइ एक्सीडेंट हुआ है| कल ही तो एक रोड-एक्सीडेंट में पहुँचने के लिए
एक एम्बुलेंस में इसी तरह जारही थी और ये लाल-लाल बत्तियाँ भी लगा रखीं हैं
गाड़ियों पर| ‘
‘ बेटा! ये हमारे
माननीय नेताजी, मंत्रीजी हैं| संसद के लिए या घर के लिए जारहे होंगे|’
‘ तो उन्हें क्या
जल्दी है? और बावाजी ये मंत्री कौन होते हैं? वे क्या करते हैं|’
‘ वे समाज व देश के
नेता हैं, लीडर जो संसद अर्थात (अन्यथा पुनः एक नए सवाल की भूमिका बन जाती आराध्य के
लिए) हमारे देश के सबसे बड़ी पंचायत या कमेटी होती है, उसके सदस्य लोग हैं
जो शासन चलाते हैं और क़ानून बनाते हैं|’
अच्छा
देश के लीडर यानी जो कहानियों में राजा होते हैं,राज चलाने वाले| पर अच्छे राजा लोग
तो चुपचाप अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते थे| यहाँ सामने अस्पताल
के आगे तो बोर्ड लगा है कि‘शोर न करें, हार्न बजाना मना है‘ और हमारे स्कूल के
आगे भी‘ धीरे चलें, बच्चे हैं’ का| क्या उन्हें पढना नहीं आता| कितनी तकलीफ होती होगी लोगों को, बच्चों को, गायों को, कुत्तों
को सड़क पर चलते समय| आराध्य अपना नया-नया सीखा–सुना हुआ प्रकृति प्रेम जताते हुआ आगे कहने लगा, ’पेड़-पौधे भी तो आवाज
से डर जाते होंगें, उन पर भी तो तेज आवाज का असर होता है| उनमें भी तो लाइफ
होती है न बाबाजी! कल ही तो साइंस की टीचर जी ने बताया था| आपको भी स्कूटर
रोकना पड़ा, मुझे भी स्कूल को देर हो रही थी|’
‘बेटा! उन्हें पढने
को समय नहीं मिला होगा, बिजी रहते हैं न|’ मैंने व्यर्थ का
तर्क देकर उसे चुप कराने का प्रयत्न किया|
‘उन्हें पढने की क्या
जरूरत है?’ क़ानून बनाया तो उन्होंने ही होगा न, अभी आपने ही तो
बताया था| फिर उनके पीछे पुलिस क्यों लगी थी’ आराध्य ने एक प्रश्न और जड दिया,‘पुलिस तो चोर-डाकुओं
के पकडने के लिए दौडती है| मुझे ऐसा लगा कि किसी चोर-डाकू के गिरोह को आगे–पीछे से घेरा जारहा
हो या गाड़ियों के ब्रेक फेल होगये हैं, इसीलिये कोई कुछ नहीं कह रहा है|’
‘अरे भाई! पुलिस उनकी
सुरक्षा के लिए चल रही थी|’
क्यों,क्या क़ानून बनाने
वालों को भी चोर-डाकुओं से डर रहता है? आपकी कहानी में तो राजा लोग अकेले घूमते थे
प्रजा का हाल जानने के लिए वो भी चुपचाप भेष बदल कर निकलते थे|
मैं धीरे धीरे तर्क-हीन होता जारहा
था| तभी एक और प्रश्न दाग दिया आराध्य ने,’बावा,ये नेता व मंत्री
कैसे बनते हैं| मैं भी बड़ा होकर मंत्री बनूंगा|
हम लोग, सभी लोग, देश की सारी जनता
वोट यानी किसी व्यक्ति के पक्ष में अपनी राय( अन्यथा फिर एक प्रश्न उठ खडा होता)
देकर इन्हें चुनती है मंत्री आदि बनाने के लिए|
अरे, बाबाजी, तब तो असली राजा तो
बनाने वाले को या राय देने वाले को होना चाहिए न’, आराध्य ने अपनी
विश्लेषक बाल-बुद्धि के ज्ञान से प्रभावित करने के अंदाज़ में कहा,‘तब तो ये लोग काम
करने वाले हुए यानी जनता के कर्मचारी| फिर इन्हें शहर के लोगों से या किसी से क्या डर
जो पुलिस उनके साथ चल रही थी|’
अब मैं सोचने लगा कि क्या उत्तर
दूं, तब तक स्कूल आगया| मैंने स्कूटर रोका और आराध्य टा..टा करके हाथ हिलाते हुए गेट के अंदर चला गया| मैंने एक गहरी सांस
ली और स्कूटर स्टार्ट कर दिया |
११.
१६.बैस्ट- फ्रेंड ...
नवरात्र के अवसर पर श्रीमती जी द्वारा कालोनी के बच्चों को कन्या-पूजन हेतु आमंत्रित किया गया था|
आपस में तेजी से बातें करती हुई लड़कियों का झुण्ड ने जिसमें कुछ लडके भी थे मुख्य फाटक में प्रवेश किया| सभी चार से दस वर्ष के बच्चे थे|
तेरा बेस्ट फ्रेंड कौन है शोभना, एक बच्ची ने दूसरी से पूछा?
चारू, नहीं नहीं शोभित शोभना बोली|
मैंने एक बच्ची से पूछा,‘ये बैस्टफ्रेंड क्या होता है?’' अंकल, बैस्टफ्रेन्ड, मतलब बैस्टफ्रेंड' उसने बताया|
‘पर फ्रेंड तो सभी अच्छे होते हैं,’ मैंने कहा, ‘जो अच्छा बच्चा होगा, वही तो फ्रेंड होगा, जो अच्छा नहीं होगा उसे आप क्यों फ्रेंड बनायेंगे|’
बच्चे सोच में पड़ गए| कुछ आश्चर्य से देखने लगे, कुछ असमंजस में शायद कि अंकल को यह भी नहीं पता|
आजकल हर उम्र के बच्चे, लडके, लड़कियां सभी में बैस्टफ्रेंड बनाने का क्रेज़ होचला है, वे भी क्या करें, हर सीरियल, सिनेमा, टीवी,रेडियो, कथा–कहानियों में,स्कूलों में यही दिखाया जा रहा है| बच्चे जो देखेंगे सुनेंगे वही तो सीखेंगे करेंगे |
फ्रेंड में भी, मित्रता में भी...बैस्ट अर्थात केटेगरी, क्लास,वर्ग, श्रेणी, सभी मित्र अच्छे मित्र क्यों नहीं ? हम चाहे जितने प्रगतिशील, उन्नत, समाजवादी, लोकतांत्रिक बन जायं पर वर्गहीन समाज कब बना है, कब बनेगा, शायद कभी नहीं| बालापन के मित्र का भी समादर चाहे वर्षों बाद मिले, पर वे कृष्ण थे ..समदर्शी | हमारा समाज कब बनेगा..हम कब बनेंगे समदर्शी..|
‘अंकल, आप भी सोच में पढ़ गए |' एक बच्चे ने पूछा तो मेरी विचार श्रृंखला टूटी |
अं...हाँ ...मैंने कहा, 'मुझे लगता है हमें सभी मित्रों को बैस्ट समझना चाहिए|’
‘पर बैस्ट-फ्रेंड तो एक ही होता है सब कैसे हो सकते हैं!‘, एक साथ सब बच्चे बोले |
चलो बच्चो ! आओ इधर बैठो ...श्रीमतीजी ने कन्या-लांगुरा पूजने हेतु आवाज़ लगाई | सभी बच्चे ख़ुश होकर चहचहाते हुए डाइनिंग टेबल पर बैठ गए |