....कर्म की बाती, ज्ञान का घृत हो, प्रीति के दीप जलाओ...
न तस्य प्रतिमा अस्ति ....
तस्य लिंग प्रणव |
ब्रह्म प्राप्ति
चित में जो कुछ प्रीति-युक्त है,
उसे देखकर पहचानें |
जीव-तत्व |
लक्षण उसे सत्व जानें ||
चित्त दुखी अथवा अशांत है,
सदा विषय में खिंचता है|
उस मन में चित अंतर्मन में ,
रज का लक्षण बहता है ||
जो अतर्क्य अज्ञेय मोह से-
ज्ञान |
वह अंतर, तम से आवृत है,
तम का संभ्रम रहता है |
कर्म करे , लज्जा प्रतीत हो,
तामस लक्षण कहता है |
विश्व |
से राजस गुण बहता है |
आत्म-तुष्टि से कर्म करे नर,
पूर्णकाम उसको कहते |
वही सत्व-गुण का लक्षण है,
श्रेष्ठ जनों में रहता है |
अहंकार के भाव बिना, जो,
शरणागत हो कर्म करे |
वह निर्गुण-कर्ता कहलाता,
प्रभु चरणों में बसता है |
कर्म करे जैसे भावों से ,
वैसा ही फल मिलता है |
सत्य भाव से कार्य करे नर,
उसकी यही सफलता है |
ज्ञानी और तत्वज्ञ भले ही ,
राजा हों या रंक-भिखारी |
कर्म करे पावन होकर, तब-
प्राप्त ब्रह्म को होता है ||