....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
देवी के नौ रूप अर्थात – नारी के नौ रूप-भाव
नारी को सदा ही आदि-शक्ति का रूप
माना जाता है | संसार की उत्पत्ति, स्थिति, संसार चक्र की व्यवस्था, व लय .... सभी
आदि-शक्ति का ही कृतित्व होता है | इसी प्रकार समस्त संसार व जीवन-जगत एवं पुरुष
जीवन –नारी के ही चारों ओर परिक्रमित होता है | आदि-शक्ति या देवी के ये नौ
रूप एवं नौ -दिवस ---वस्तुतः नारी के
विभिन्न रूपों व कृतित्वों के प्रतीक ही हैं | यथा----
१- शैलपुत्री --- वृषभ वाहिनी –अर्थात ...नारी बल का प्रतीक
है...समस्त प्राणि-जगत व मानव की शक्ति प्रदायक ....पत्नी, माँ, पुत्री, भगिनी,
मित्र ...प्रत्येक रूप में नारी- संसार व
पुरुष के लिए शारीरिक, मानसिक व आत्मिक बल प्रदायक होती है |
२-ब्रह्मचारिणी --–अष्टकमल आरूढा, श्वेत वस्त्र धारिणी ----- अर्थात नारी
विद्या रूप है ---विद्या ही
शालीनता, तप, त्याग, सदाचार, संयम समयोचित वैराज्ञ प्रदान करती है, ये सभी नारी-शक्ति
के मूल गुण हैं | यह ब्रह्म-ज्ञान है | नारी ही अपने विविध रूपों में मानव को,
पुरुष को अष्ट-कमल रूपी विविध ज्ञान से युक्त करके उसे संसार में प्रवृत्त भी करती
है-----विरत भी कर सकती है |
३-चंद्रघंटा --- मष्तिस्क पर चन्द्र का घंटा रूप –तीन नेत्र व दस
भुजाएं, बाघ के सवारी --- स्वर्ण शरीर ---अर्थात तीनों लोकों दशों दिशाओं में स्थित अपनी त्रिगुणमयी माया –सत्, तम, रज से नियमित संसार चक्र
द्वारा-- बलशाली होते हुए भी शान्ति का उद्घोष ---- नारी ही
समस्त संसार में, पुरुष के मन में, जीवन में शारीरिक, मानसिक व आत्मिक शांति
स्थापना द्वारा –ज्ञान का तेज, आयुष्य, आरोग्य, सुख, सम्पन्नता व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है |
४-कुष्मांडा ---बाघ पर सवार व अष्ट-भुजी --- दुर्गा .. अर्थात
ब्रह्माण्ड, ब्रह्म-अंड की सृष्टि --- नारी ही तो सृष्टि की जनक है | मानव
व संसार की रक्षा-सुरक्षा हेतु विविध प्रकार के दुर्ग बनाने में सक्षम,
समस्त रोग, शोक आदि निवारक होती है |
५-स्कन्द माता--- सवारी कमल एवं सिंह दोनों ....पद्मा व सिंह वाहिनी –
समस्त प्रकार का कल्याण | है |
ब्रह्म रूप सनत्कुमार को गोद में लिए एवं सूक्ष् रूप में छह सिर वाली देवी
भी गोद में | अर्थात नारी पुरुष व संसार के कल्याण हेतु कल्याण हेतु भयानक
व दुर्दम्य निर्णय व रूप भी ले सकती है | नारी समस्त जगत व पुरुष की पालक धारक
माता भी है | जीवन, जगत व शरीर के षट्चक्रों-विविध क्रियाओं( षटरसों
या खटरस—दुनिया के प्रपंच , व्यावहारिक कला, ज्ञान, कर्म ) की नियामक भी है |
६-कात्यायिनी ---पापियों की नाशक –ऋषियों-मुनियों की सहायक, चार भुजा,
सिंह सवारी – नारी का सज्जनों व
ज्ञानियों के प्रति सदा ही सम्मान, प्रेम-भाव रहता है व उन्हें दुष्ट जनों, पापियों से सदा ही सहायता व
संरक्षण उनकी प्राथमिकता होती है |
७-कालरात्रि --- या शुभंकरी –काला शरीर, केश फैले हुए,
विकट-स्वरुप, आँखों से अग्नि, अर्धनारीश्वर शिव की तांडव-मुद्रा ... काली रूप ...
सदैव शत्रु व दुष्टों की संहारक ...संसार व मानव हेतु कल्याण कारक| नारी
का रूप सदैव ही पुरुष व संसार हेतु कल्याणकारी, शुभ कारी ही होता है परन्तु
आवश्यकता पडने पर पुरुष, पिता, पुत्र, पति, भ्राता पर आपत्ति आने पर वही – दुष्ट जनों के लिए
दुर्गा रूप, काली रूप रख सकती है.. | यही शक्ति का नारी का काली रूप
है |
८-महागौरी –तपस्या से गौर वर्ण प्राप्ति, श्वेत बृषभ आरूढा, श्वेत
वस्त्र, डमरू-त्रिशूल धारी, अन्नपूर्णा ---अर्थात नारी पुरुष के लिए
त्याग, तपस्या, तप सब कर सकती है...पुरुष की, समस्त संसार की पालक-पोषक शक्ति है जिसके लिए वह
मान करती है, मनाती है, डमरू भी बजाती है और त्रिशूल का भय भी दिखाती है | पुरुष
व मानव के हर वय के, जीवन के हर स्तर पर
वही तो अन्नपूर्णा है जो हर प्रकार का धन, वैभव सुख, शान्ति
प्राप्ति में सहायक है |
९-सिद्धिदात्री --- कमलासन पर,सुदर्शनचक्र, गदा, कमाल,शंख धारी, सरस्वती
रूप श्वेत-वर्ण, महाज्ञान सहित सौम्य भाव , मधुर स्वर | विष्णु के ही अनुरूप संसार
के समस्त चक्रीय-व्यवस्थाओं की नियामक.... | अर्थात नारी ही तो पुरुष के,
जगत के, संसार के समस्त व्यवस्थाओं की नियामक होती है ...वही तो पुरुष
को ज्ञान, कर्म व भक्ति रूपी समस्त सिद्धि-प्रसिद्धियों को प्राप्त करने में सहायक
होती है, सम्पूर्ण जीवन तत्व व सम्पूर्ण सिद्धि...मोक्ष में सहायक होती है|
यदि हम इन
नवरात्र में नारी के हर वय-रूप की उपेक्षा, उस पर अन्याय, अनाचार, अत्याचार के
विरुद्ध अपने सोच, विचार, समर्थन व यथासंभव कदम उठाने हेतु व प्रयत्न करने का
निश्चय करें, यही देवी की सच्ची आराधना होगी |
चित्र- दीपिका एवं गूगल साभार...
चित्र- दीपिका एवं गूगल साभार...