....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
आनंद कंद प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज ग्वाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावहिं, नाचहिं दै- दै ताल |
आशिस देंय विष्णु शिव ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें, जनमु लियो नंदलाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा, नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखि निरखि छकि श्याम' हू होय निहाल ||
कैसो बानक धरयो गुपाल |
पीताम्बर कटि, पग पैजनियाँ, मोर मुकुट लिए भाल |
मनहर मुद्रा धरी त्रिभंगी, उर वैजयंती-माल |
छवि सांवरी, नैन रतनारे , सुन्दर भाल विशाल |
ओठ मुरलिया शोभित छेड़े, पंचम राग धमाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखि कन्हाई श्याम भये हैं निहाल ||
----चित्र--गूगल व ....निर्विकार ..साभार ...
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
आनंद कंद प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज ग्वाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावहिं, नाचहिं दै- दै ताल |
आशिस देंय विष्णु शिव ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें, जनमु लियो नंदलाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा, नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखि निरखि छकि श्याम' हू होय निहाल ||
कैसो बानक धरयो गुपाल |
पीताम्बर कटि, पग पैजनियाँ, मोर मुकुट लिए भाल |
मनहर मुद्रा धरी त्रिभंगी, उर वैजयंती-माल |
छवि सांवरी, नैन रतनारे , सुन्दर भाल विशाल |
ओठ मुरलिया शोभित छेड़े, पंचम राग धमाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखि कन्हाई श्याम भये हैं निहाल ||
----चित्र--गूगल व ....निर्विकार ..साभार ...