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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

कर्म -अकर्म ----

कर्म निम्न प्रकार के होते हैं ---
।- कर्म --जो प्राणी के नित्य-नैमित्तिक कर्म होते हैं , खाना,पीना, सोना ,मैथुन ,सुरक्षा , आदि-आदि जो प्रत्येक जीव करता है , वनस्पति से लेकर मानव तक|
.-सकर्म -जो मूलतः मानव करता है -सामाजिक दायित्व वहन, नागरिक दायित्व ,पारिवारिक दायित्व जो जीवन में आवश्यक हैं |
.-सत्कर्म-जो मानव ,सामान्य कर्मों सेऊपर उठकर , समाज, देश,धर्म ,मानवता के लिए विशिष्ट भाव से करता है जो उसे विशेष व महापुरुषों की श्रेणी में लाता है।
.-कुकर्म या दुष्कर्म --जो मानव को हैवान व पशुतुल्य बनाते हैं ,और मानवता,देश,समाज ,मानव के प्रति अपराध युत होते हैं |
अकर्म --जो व्यर्थ के कर्म होते हैं व मानव को उनसे बचना चाहिए , ये देखने में अहानिकारक होते है सिर्फ़ क्षणिक मनोरंजन कारक ,परन्तु वास्तव में ये समाज के लिए दूरंत-भाव में अत्यन्त हानिकारक व
घातक हैं,
क्योंकि ये व्यक्ति कोअप्रत्यक्ष रूप में कुकर्म करने को प्रेरित करते हैं
,------आजकल टीवी, रेडियो ,मोबाइल आदि पर अत्यधिक मनोरंजन , रेअलिटीशो में बच्चों ,युवकों ,किशोर-किशोरियों को अपने मूल शिक्षा कर्म से भटकाना एक अत्याचार है , स्टंट आदि वाले शो में व्यर्थ के स्टंट जो कभीजीवन में काम नहीं आते, गंदे, वीभत्स , अभक्ष्य पदार्थों में, सर्प -कीडों में मुहं डालने वाले द्रश्य | सीमित ज्ञान वालेलोगों द्वारा सामाजिक आदि विषयों ,तथ्यों पर आधे-अधूरे सत्य , अति-नाटकीयता प्रदर्शन आदि-आदि ; सभी वस्तुतः अकर्म हैं
शासन, जन-सामान्य,विद्वतजन ,संस्थायें , सामाजिक -संस्थायें ,आप और हम सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए.