....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... आत्म कथ्य .... (अतुकान्त कविता)
मैं आत्म हूँ ,
सर्व भूतेषु आत्मा;
 जड जंगम जीव में अवस्थित,
उनका स्वयं ,उनका अन्तर ।
 प्रत्येक भूत का लघुतम अंश या कण,
विज्ञानियों  का एटम या परमाणु,
मैं ही हूं’
मैं एटम का भी आत्म हूं,
उसकी क्रियाशीलता,क्षमता, आत्मा,
मैं आत्म हूं।
 सब मुझमें है,
मैं ही सब में हूं
परिभू, स्वयंभू;
सृष्टि  से पहले भी,
सृष्टि  के अंतर में, 
सृष्टि  के बाद भी ;
मैं आत्म हूं ।
अक्रिय अकर्मा अव्यक्त अविनाशी
असद चेतन सत्ता,
कारणों का कारण  कारण-ब्रह्म  पर-ब्रह्म,
दृष्टियों  की द्रष्टि, दृष्टा , परात्पर
’वेदानां  अपि गायंति’-
मैं आत्म हूं।
सृष्टि हितार्थ भाव-संकल्प मैं ही हूँ ,
आदि-नाद से व्यक्त सगुण - ब्रह्म ,
परमात्मा,ईश्वर, हिरण्यगर्भ 
मैं ही हूँ ;
मैं आत्म हूं |
'एकोsहं-बहुस्याम' जनित  'ओउम '
व्यक्त आदि-शक्ति , अपरा, माया 
प्रकृति व जगत की प्रसविनी-शक्ति 
मैं ही हूँ , और-
परा रूप में --
प्रत्येक जड़ जीव जंगम में प्रविष्ट ,
उनका स्वयं , उनका अहं, चेतना-तत्व 
आत्म-तत्व मैं ही हूँ ;
मैं आत्म हूँ |
जीवधारी ,प्राणधारी रूप में --
जीवात्मा,प्राण,आत्मा 
कर्मों का कर्ता,
सुख-दुःख लिप्त -फलों का भोक्ता ,
संसार-चक्र उपभोक्ता , मैं ही हूँ ,
मैं आत्म हूँ |
सत्कर्म-संचित --
ज्ञान बुद्धि मन संस्कार --प्राप्त ,
मानव  मैन  आदम  मनुष्य --मैं ही हूँ ;
मुक्ति मोक्ष कैवल्य आकांक्षी ,
मुक्ति-प्राप्त  आत्मलीन  हिरण्यगर्भ-लीन,
परमात्व-तत्व मैं ही हूँ |
लय में -'एक से अनेक'  इच्छा कर्ता -
प्रकृति  संसार  माया को स्वयं में लीन कर -
पुनः अक्रिय  असत  अव्यक्त  सनातन,  परब्रह्म -
मैं ही हूँ ;
मैं आत्म हूँ |
ईश्वर  जीव  ब्रह्म  माया ,
सार  असार  संसार ,
शिव  विष्णु  ब्रह्मा ,
सरस्वती  लक्ष्मी  काली ,
पुरुष और प्रकृति ,
जड़  जीव  जंगम ,
मैं ही हूँ ;
मैं आत्म हूँ |
मैं आत्म हूँ ||
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
