(-महा सरस्वती ,महाकाली ,महा लक्ष्मी )
हे माँ !
हे माँ ! तुम जब दिव्य रसों की ,
दिव्य -लोक से वर्षा करतीं ;
निर्मल बुद्दि,विवेक ज्ञान की ,
सभी प्रेरणा मिलती जग को ।
ज्ञान भाव से सकल विश्व को ,
करें पल्लवित मातु शारदे ! --शूर्पनखा से
माँ
जितने भी पद नाम सात्विक ,
उसके पीछे ' माँ ' होती है।
चाहे धर्मात्मा ,महात्मा ,
आत्मा हो अथवा परमात्मा
जो महान सत्कार्य जगत के ,
उनके पीछे माँ होती है।
चाहे हो वह माँ कौशल्या ,
जीजाबाई या यसुमति माँ ।
पूर्ण शब्द माँ ,पूर्ण ग्रन्थ माँ ,
शिशु बाणी का प्रथम शब्द माँ ।
जीवन की हर एक सफलता ,
की पहली सीढी होती माँ ।
माँ असीम है वह अनुपम है,
क्षमा दया श्रृद्धा का सागर ।
कभी नहीं रीती हो पाती ,
माँ की ममता रूपी गागर ।
माँ मानव की प्रथम गुरु है ,
सभी सृजन का मूल तंत्र माँ
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा ,
वाणी रूपी मूल मन्त्र माँ ।
सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे ,
कर पाये माँ का गुण गान ।
श्याम करें पद -वंदन माँ ही ,
करती वाणी ,बुद्धि प्रदान॥
-प्रेम काव्य -डा श्याम गुप्त
त्रि-मातृका--नरीसेमरी ,मथुरा --गोरी,काली,सांवली --महा काली ,महा लक्ष्मी ,महासरस्वती