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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
सोमवार, 3 जनवरी 2011
कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बंगलूर की राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न.---डा श्याम गुप्त
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ व कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगलूर के संयुक्त तत्वावधान में , बेंगलूर में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी व हिन्दी पुस्तक प्रदर्शिनी का आयोजन दि-२८/२९ दिसंबर , २०१० को, समिति के सचिव श्री वि वि देवगिरी जी के संचालन में , किया गया।
दि २८/१२/२०१० मंगल वार - संगोष्ठी का उदघाटन-- श्री अशोक घोष , निदेशक उ प्र हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा किया गया। अध्यक्षता साहित्यकार डा प्रेम चंद पांडे , भागलपुर द्वारा की गयी। इस अवसर पर श्री अशोक घोष ने कहा कि कन्नड़ से हिन्दी में अनुवाद को एवं प्रति वर्ष १०-१२ कर्नाटक के स्कूली बच्चों को उ प्र भ्रमण को बढ़ावा दिया जायगा। समिति के अध्यक्ष श्री एच वी राम चन्द्र राव ने हिन्दी प्रदेशों के नागरिकों को भी कन्नड़ सीखने का आव्हान किया। श्रीमती नूपुर घोष के vभजन से उदघाटन सत्र का समापन हुआ।
प्रथम सत्र -'आधुनिक सन्दर्भ में कबीर और सर्वज्ञ की प्रासंगिकता ' पर विचार गोष्ठी कविवर डा नारायण सिंह 'समीर' की अध्यक्षता में हुई। मुख्य वक्ता गोरखपुर के डा विश्व नाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि कबीर व सर्वग्य दोनों ही देश के जन जन में बसे हुए हैं व हिन्दी के माध्यम से देश में एकता के माध्यम हैं। जो तथाकथित अंग्रेज़ी दां आधुनिक जन है उसे आप कैसे हिन्दी व हिन्दी कविता के निकट लायेंगे? इस स्थिति में संतों व संत वाणियों को कैसे प्रासंगिक समझा जाय? उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत में सदा से ही संस्कृति-सभ्यता को- कविता व साहित्य को संतों -भक्तों की वाणी द्वारा लोक में, जन जन में प्रतिष्ठित किया गया है , योरोप/पाश्चात्य देशों की भांति बड़े-बड़े सभ्यता / साहित्य के केंद्र नहीं बनाए गए । अतः ध्वंश के साथ उनके ये बड़े बड़े केन्द्रों के साथ , सभ्यता व संस्कृति भी , सदैव विनष्ट होते रहे जबकि भारत में एसा नहीं हुआ। ५००० हज़ार वर्ष तक किसी संस्कृति को संभालकर रखना सत्साहित्य के कारण ही संभव हुआ। अज विकास का अर्थ अधिक खर्च करना होगया है , अधिक संग्रह नहीं, जो गलत अवधारणा है । हुबली की डा विद्यावती राजपूत ने कहा कि अखबार व साहित्य में अंतर है, अखबार पुराना व अप्रासंगिक हो जाता है परंतु साहित्य कालजयी तथा सदैव ही प्रासंगिक रहता है । डा टी आर भट्ट, डा प्रभाशंकर प्रेमी, काशीनाथ अम्ब्लागे, बी नरसिंह मूर्ती, श्री एच वी प्रसाद ने भी अपने वक्तव्य दिए। अध्यक्षीय भाषण में डा समीर ने कहा कि कविता जीवन में कैसे लोटे इस पर विचार होना चाहिए ताकि संस्कृति लौटे। आज लोकनायक कोई नहीं है, लोकनायिकत्व की आवश्यकता है और वह राज़नीति से नहीं साहित्य से आना चाहिए। सिर्फ विज्ञान ही समाज को आगे नहीं लेजाता, साहित्य ही -सोशल इंजीनियरिग द्वारा समाज को आगे लेजाने व उसके संसकारित स्थायित्व में समर्थ है ।
द्वितीय सत्र -'कन्नड़ और हिन्दी का लोक साहित्य' पर डा वी वाय ललिताम्बा ,बंगलौर की अध्यक्षता में हुआ । मुख्य वक्ता आगरा के डा जय सिंह 'नीरद' का कथन था कि देश, भाषा,बोली , रहन सहन भिन्न-भिन्न हो सकते हैं किन्तु लोक मानस व लोक संवेदना भिन्न-भिन्न नहीं होतीं । भारत के दो सुदूर प्रान्तों की भाषाएँ कन्नड़ व हिन्दी में लोक साहित्य में वही भाव व संवेदनाएं हैं । लोक जीवन भर साहित्य में जीता है। जन्म से लेकर मरण तक में वे लोक गीत में जीते हैं। आज बाजारीकरण व मशीनी युग में वह बात कहाँ रहगयी है जब कोल्हू के साथ तेली , चाक के साथ कुम्हार का लोकं गीत चलता रहता था। डा ललिताम्बा ने कन्नड़ जानपदीय साहित्य की व्याख्या की।
दि-२९-१२-२०१० बुधवार----- तृतीय सत्र--'स्वातंत्र्योत्तर कन्नड़ और हिन्दी कविता ' पर विमर्श प्रसिद्ध कन्नड़ कवि डा सरगु कृष्ण मूर्ति की अध्यक्षता में हुआ। मुख्या वक्ता के रूप में बोलते हुए गाज़ियाबाद से पधारे डा श्योराज सिंह 'बेचैन' ने कन्नड़ व हिन्दी में दलित साहित्य की स्थिति व आवश्यकता पर प्रकाश डाला। डा श्याम गुप्त , लखनऊ ने स्वाधीनता के पश्चात की हिन्दी कविता, निराला की अतुकांत कविता एवं मुख्यतः लखनऊ के डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य' द्वारा १९६६ में स्थापित एक विशिष्ट विधा "अगीत -कविता" की विस्तृत व्याख्या की व उसके बिम्ब-विधान तथा अगीत के विभिन्न छंद सोदाहरण प्रस्तुत किये । डा सरगु कृष्ण मूर्ति जी ने अध्यक्षीय वक्तव्य में डा श्याम गुप्त द्वारा पठित प्रेम-अगीत का संदर्भ लेते हुए , कन्नड़ व हिन्दी कविता में प्रेम एवं साहित्य में प्रेम व श्रृंगार काव्य की सौन्दर्यता , अनिवार्यता व महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए दोनों भाषाओं के साहित्य द्वारा राष्ट्रीय एकता पर बल की बात की। सत्र का समापन श्रीमती सुषमा गुप्ता जी , लखनऊ की सुन्दर ग़ज़ल से हुआ।
चतुर्थ व अंतिम समापन सत्र -- का प्रारम्भ श्रीमती सुषमा गुप्ता की ग़ज़ल से हुआ। समारोह की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए डा जय सिंह नीरद ने कहा कि यद्यपि कविता जन मानस से दूर होगई है परन्तु आज भी कन्नड़ व हिन्दी कविता व साहित्य उत्तर-दक्षिण एकता के सेतु बन रही है। डा प्रेम चंद, भागलपुर ने बताया कि यहाँ आकर भ्रान्ति दूर होगई , यहाँ तो काफी लोग हिन्दी बोलते, समझते हैं ।
संस्थान के क्षात्रों , अध्यापकों व कर्मचारियों द्वारा दोनों दिन शाम को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए। उ प्र हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निदेशक श्री अशोक घोष व कर्नाटक हि प्र समिति, बेंगालूरू के अध्यक्ष द्वारा अंग वस्त्र, प्रतीक चिन्ह व नकद देकर वक्ताओं का सम्मान किया गया। सचिव श्री वि वि देवगिरी धन्यवाद ज्ञापन किया व अध्यक्ष डा राम चन्द्र राव जी ने श्री देव गिरिजी, वक्तागण,सभी उपस्थित विद्वानों , हिन्दी प्रेमियों , व संस्थान के क्षात्रों, अध्यापक मंडल , कर्मचारियों का धन्यवाद किया व सुन्दर आयोजन के लिए बधाई दी ।
चित्र१ -- श्री अशोक घोष द्वारा डा श्याम गुप्त का सम्मान
चित्र-२... सुषमा जी की ग़ज़ल....
चित्र -३...डा श्याम गुप्त अगीत पर बोलते हुए, मंच पर डा सरगु कृष्ण मूर्ति , श्री देव गिरी जी , डा श्यो राज सिंह व अन्य....
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