कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
किसने मारा राजेश खन्ना को ? शायद स्वयं ने ....| वास्तव में व्यावसायिक सफलता व अच्छा इंसान होने में बहुत अंतर होता है | चाहे एक सामान्य दैनिक वेतन कर्मी हो या सुपर स्टार या राज्याध्यक्ष .....उसे पहले एक अच्छा व्यक्ति, सहृदय..सुहृदय , मानवीय व्यवहार , संवेदना व आचरण से संपन्न होना चाहिए | महत्वाकांक्षाएं व सफलताएं ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ है जो सर चढ़कर बोलती हैं | यहीं व्यक्ति को पुरुषार्थ चतुष्टय --धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष को प्रतिपल ध्यान रखना चाहिए व प्रत्येक क्षण व कर्म में उसके धर्म रूप का सामंजस्य होना चाहिए |
राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार का अंतिम समय इतना ह्रदय-विदारक क्यों ? निश्चय ही वे एक सफल अभिनेता के साथ एक अच्छा, व्यवहार कुशल इंसान नहीं बन पाए | वे अपने स्टारडम के अहं में अपने समाज--इंडस्ट्री के लोगों से भी जुड़ाव नहीं रख पाए न सामान्य समाज से तो कोइ उन्हें क्यों पूछे ? दूसरे अर्थ में वे व्यवहार कुशल भी नहीं थे --अहं वश किसी एक वर्ग, गुट या खेमे से भी जुडकर भी नहीं रहे , न किसी सामाजिक कार्य व कर्तव्य से | न वास्तविक जीवन में सामान्य जन से |अर्थात उन्होंने फिल्म व अपने स्टारडम से पृथक कोइ भूमि तैयार नहीं की | वे अपनी विलासमय पार्टियों, महिला-मित्रों , शराव व सिगरेट में मस्त रहे | अच्छे व अमीर परिवार से होने के वावजूद शायद उन्होंने अपने परिवार, घर, समाज, क्षेत्र से भी नाता नहीं रखा और सिर्फ कुछ करोड के लिए उनका सपनों का आशियाना सील कर दिया गया | उनके बचपन के मित्र जितेन्द्र के साथ भी उनकी कोई फिल्म नहीं आयी |
हमें सिर्फ लेने की अपेक्षा देना भी आना चाहिए | जो देना नहीं जानते उन्हें उनके महिमा-मंडल ( जो प्रायः आभासी होता है ) के उतरने पर कोई नहीं पूछता | इसीलिये वे स्वयं किसी एक के न होपाये कोइ उनका न होपाया तथा अंतिम समय में उनके साथ न पत्नी थी न बच्चे न नाते-रिश्तेदार | शिक्षा व ज्ञान की कमी भी इन सबके आड़े आती है | मैयत पर तो सभी आ ही जाते हैं | जैसा कि उनके अंतिम डाइरेक्टर बार-बार टीवी पर कह रहे थे कि ...कहाँ थे वे सब जो अब आरहे हैं...तब क्यों नहीं आये जब उनको जरूरत थी | तब आये होते तो वह नहीं मरते | ......... मुद्दतों बाद मुझे मेरे मित्र डा जगदीश छाबडा का सुनाया हुआ पंजाबी गीत का टुकड़ा याद आता है...
" जदों मेरी अर्थी उठाके चलणगे |
मेरे यार सब हुमहुमा के चलणगे|
चलणगे मेरे साथ दुश्मन भी मेरे,
ए बखरी ए गल मुस्कुराते चलणगे ||"