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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 18 अक्टूबर 2008

इन्द्रधनुष

इन्द्रधनुष यद्यपि सदैव आपकी आंखों के सम्मुख , आपके आस -पास , चहुँ ओर रहता है। बरसात मैं आसमान मैं बर्षा की सुखद फुहारों मैं ,तुहिन कणोंमैं ,फुब्बारों की जलधाराओं मैं ,झूमरों मैं ,खिड़की के पार शीशे मैं ,सुन्दरी की नथके हीरे मैं, कान के कर्णफूल व कंगनों मैं, .....मन को ललचाता , महकाता, तरसाता, हरषाता रहता है, परन्तु दूर से , आप उसे छू नहीं सकते । ऐसा ही एक इन्द्रधनुष तरंगित होता है ,डॉ श्याम गुप्ता के नए उपन्यास ' ;इन्द्रधनुष' मैं ,स्त्री -विमर्श के परिप्रेछ्यमैं , एक नवीन भाव मैं , स्त्री -पुरूष मैत्री - संबंधों को नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित करता है।

rainbow

A Rainbow is always in front of your eyes, in around you. During rains in the pleasent raindrops, in the dripping drops of fog, in the springs and fountains, in the hanging shendaliars, on the window pans glasses, scattering from the dimonds of the nose-ornament of a beutiful lady's, and from the ear rings and the breslet ......attrecting your mind and thoughts vindicatively...but from distances only,you cannot touch it. Like such , one Rainbow is scattered in the novel 'INDRADHANUSH', th e rainbow--by Dr. shyam gupta, in a new colour of analysing and describing the women- man friedship and relationship.