....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सरस्वती वन्दना
बसंत ---- बागों में, वनों में, सुधियों में बगरा हुआ रहता है और समय आने
पर पुष्पित-पल्लवित होने लगता है .....प्रस्तुत है ..बसंत
पर एक रचना .....वाणी की देवी .सरस्वती वन्दना से....
सरस्वती वन्दना
जो
कुंद इंदु तुषार सम सित हार, वस्त्र से आवृता ।
वीणा
है शोभित कर तथा जो श्वेत अम्बुज आसना ।
जो
ब्रह्मा शंकर विष्णु देवों से सदा ही वन्दिता ।
माँ
शारदे ! हरें श्याम' के तन मन ह्रदय की मंदता ।।
प्रस्तुत है
एक गीत ......नव बसंत आये .....
सखी री !, नव बसंत आये |"
जन-जन में ,
जन जन, मन मन में ,
जौवनु जौवनु छाये |....................सखी री ....||
पुलकि पुलकि सब अंग सखी
री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुहुप बान ले ,
आये रति-पति काम बान ले,
मनमथ छायो अंग |
होय कुसुमसर घायल जियरा
अँग अंग रस भरि लाये |............. सखी री ....||
तन मन में बिजुरी की थिरकन
बाजे ताल मृदंग ,
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
जौबन उठे तरंग |
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरसाए |
काम -शास्त्र का पाठ पढ़ाने
ऋषि अनंग आये |
सखी री नव-बसंत आये ....||
सखी री !, नव बसंत आये |"
जन-जन में ,
जन जन, मन मन में ,
जौवनु जौवनु छाये |....................सखी री ....||
पुलकि पुलकि सब अंग सखी
री ,
हियरा उठे उमंग |
आये ऋतुपति पुहुप बान ले ,
आये रति-पति काम बान ले,
मनमथ छायो अंग |
होय कुसुमसर घायल जियरा
अँग अंग रस भरि लाये |............. सखी री ....||
तन मन में बिजुरी की थिरकन
बाजे ताल मृदंग ,
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
जौबन उठे तरंग |
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरसाए |
काम -शास्त्र का पाठ पढ़ाने
ऋषि अनंग आये |
सखी री नव-बसंत आये ....||