....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्रमश रचना १७---
मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' 1960 से 2005 तक रचित तुकांत काव्य-रचनाओं का संग्रह है |---सुषमा प्रकाशन , आशियाना द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५ ..
—नराकास , राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---रचना
16.हरियाली रहे –
जबसे कदम पड़े हैं
मानव के चन्द्रमा पर |
कैसे बनी मानस में
छवि वो
निराली रहे |
ऊंची नीची सुनसान
मानव विहीन धरा |
कैसे छवि चरखा,
चलाती नानी, वाली रहे |
धुंआ धूल गर्द से,
बुझा बुझा क्लांत चाँद |
कैसे धवल चांदनी से,
धरा उजियाली रहे |
चहुँ ओर मची है ,
आपा धापी सत्ता की |
कैसे फिर घर और
देश में खुशहाली रहे |
बिल्डिंग और सडकों से
पट गयी सारी धरा |
कैसे बनी शस्य श्यामल,
धरती निराली रहे |
कहें श्याम, जहर-
उगलता है सारा शहर |
क्यों न हो प्रदूषण घोर,
क्यों न हो प्रदूषण घोर,
कैसे हरियाली रहे ||