....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
परमानंद .....
परमानंद .....
सब सुख साधन प्राप्त तुझे हैं ,
सब सुख जग के पाए |
फिर भी तू अंतर्मन मेरे,
शान्ति नहीं क्यों पाए ?
धन पद वैभव रूप खजाने ,
प्रेम-प्रीति परिवार सुहाने |
रीति-नीति सुख,सुखद सुजाने,
सब तो तूने पाए |
फिर भी तू अंतर्मन मेरे,
शान्ति नहीं क्यों पाए ||
पढ़ पढ़ कर सब वेद-उपनिषद ,
विविध शास्त्र, विज्ञान-ज्ञान सब |
प्रेम-गीत, जग रीति, मधुर स्वर,
भक्ति-गीत सब गाये |
मन में कितना अहं सजाये,
इच्छाओं की गाँठ बसाए |
चाहे भक्ति-मुक्ति ही चाहे ,
चैन नहीं तू पाए |
फिर भी तू अंतर्मन मेरे,
शान्ति नहीं क्यों पाए ||
इच्छाओं की गाँठ कटे जब,
अहं-भाव की फांस मिटे जब |
कर्तापन का दंभ हटे जब,
मुक्ति तभी होपाये |
परम शान्ति मिल जाए,
मन में परमानंद समाये ||