....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
जून का माह देश के लिए तो अति महत्व पूर्ण है ही .... २५ जून १९७५ ... को ३८ वर्ष पहले देश में एक महत्वपूर्ण दुर्घटना हुई थी....२५ जून, १९७५ को ....भारत में आपात काल का लगना | ठीक उसी दिन एक और दुर्घटना हुई थी .... अपने व्यक्तिगत जीवन में .....हमारा विवाह संस्कार....उसी २५ जून १९७५ की रात्रि-बेला में ही हुआ था, हमारी अबाध स्वतन्त्रता का हनन |
प्रातःकाल विविध संस्कार समाप्त होने के पश्चात ज्ञात हुआ कि देश में आपातकाल लगा दिया गया है एवं तमाम विरोधी दलों के नेताओं को जेल में बंद किया गया है और सारी छुट्टियां आदि केंसिल हो गयी हैं| बढाई नहीं जायेंगी किसी भी हालत में |
देश से तो इमरजेंसी हट गयी ...जाने कितना पानी बह गया देश की नदियों में तब से अब तक ...परन्तु हम पर आज भी इमरजेंसी लगी हुई है और हम खुश हैं जैसे पालतू तोता पिंजरे में सुख चैन से रहने का आदी होकर चहचहाता रहता है | यह रोटी ही तो महत्वपूर्ण है जीवन में जिसके हेतु व्यक्ति फंसा रहता है जीवन संसार रूपी पिंजरे में , हंसता गाता है , कर्म ,धर्म , ज्ञान रूपी साज पर नचाता-नाचता रहता है...मस्त -मगन | यह इतना भी हम इसलिए लिख पारहे हैं कि श्रीमतीजी बिटिया के पास गयी हुई हैं और हम गृह सुरक्षा का भार सम्भाल रहे हैं|
बहरहाल हम तुरंत् ही ड्यूटी ज्वाइन करने निकल पड़े साथ में श्रीमती जी भी थीं | कुछ समय बाद परिस्थित नर्म होजाने पर हमने हनीमून हेतु छुट्टी का प्रस्ताव रखा | हमारे इंचार्ज मंडल चिकित्सा अधिकारी( तब डी एम् ओ ही मंडल का इंचार्ज होता था बाकी सभी चिकित्सक ए एम ओ ) व डी एस ( तब रेल मंडल का इंचार्ज का पद डी आर एम् नहीं होता था अन्य मंडलीय अफसर भी डी ओएस , डी सी एस आदि ही होते थे ) का कथन था कि छुट्टी कैसे मिलेगी |
उन दिनों फेमिली प्लानिंग आपरेशन का काफी जोर पर था | हमारे डी एम् ओ साहब बोले कि डा गुप्ता आप सर्जन तो हो ही अतः एसा करिए कि मंडल के सभी अस्पतालों में वासेक्टोमी / ट्यूबेक्टोमी आदि आपरेशन के लिए आपरेशन थ्येटर, औज़ार आदि, सारी तैयारियां का निरीक्षण परीक्षण व आवश्यकताओं का लेखा -जोखा तैयार करिए| दो -दो दिन सभी जगह लुधियाना जालंधर, अमृतसर, पठानकोट,जम्मू ,,दौरा करिए ........फिर वहाँ से आगे .......देखा जाएगा ..| और हम चल दिए टूर पर सपत्नीक ...बहुत खुश ......|
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जंगल कंस्ट्रक्शन साईट पर दवा वितरण टेंट |
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जंगल शिविर -केम्प में चाय |
अब प्रकृति का लेखा देखिये कि सर मुंडाते ही ओले पड़े | जुलाई का महीना और जम्मू ...हुआ यह कि पहाड़ों पर तेज बारिश से नदियों में बाढ़ आई और जम्मू को शेष देश से जोड़ने वाला तवी नदी का रेलवे पुल बह गया और स्थानीय रेल प्रशासन द्वारा तीन दिन तक बार बार बनाया जाता रहा तथा बाकायदा हर बार नदी के केचमेंट एरिया में भयानक बारिश से बहा दिया जाता रहा ...... रेल की आपात स्थित में सारे देश से रेल कर्मियों अफसरों व लेबर को भेजा गया, शीघ्रातिशीघ्र पुल स्थापित करना था | आखिर कार मिलिटरी की सहायता भी ली गयी |
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सुषमा जी द्वारा साईट पर लेबर की हौसला अफजाई |
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साईट विजिट पर |
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साईट का विहंगम दृश्य -जंगल, पुल व ट्रेन, विशाल कलेवर की नदी |
क्योंकि पुल का स्थान राज्य के साम्बा क्षेत्र में था जो कोबरा साँपों का क्षेत्र है ,अतः अस्थायी चिकित्सालय का प्रबंध किया गया और हमें पठानकोट में होने के कारण वहां भेज दिया गया ....फिर चल पड़ा तम्बू में शिविर-आवास एवं जम्मू रेलवे स्टेशन पर निवास का क्रम .... | लगभग आठ किलोमीटर के सर्प-प्रभावित क्षेत्र में चारों और सर्प -रोधी खाइयां आदि सुरक्षा के इंतजाम, कीटनाशक अदि सेनीटेशन प्रोग्राम, अस्थायी लेटरीन आदि ....| ऊपर से घनी वर्षा ...चारों और जल की बरसाती धाराएं ...लेबर , मशीन , पत्थर और प्रतिदिन चोटग्रस्त कर्मचारी व रोगियों की समस्याएं ....आदि के मध्य लगभग दो माह तक हमारा हनीमून चलता रहा | रक्षाबंधन पर भी छुट्टी न मिलने के आसार होने पर श्रीमती जी को विवाहोपरांत अपने प्रथम रक्षाबंधन पर मायके की याद जोर से सताने लगी बस अश्रुधार की ही कमी रह गयी तो जैसे तैसे हम निर्माण -साईट के इंचार्ज जी एम् व अपने मंडल इंचार्ज से अनुनय-विनय के पश्चात मुक्त हुए |
एसा जून का माह, वो तारीख व महीने देश भर को तो विस्मृत होते ही नहीं हैं और हमें भी .....क्या कभी विस्मरण के योग्य हैं |