चित्र में देखिये नासा के वैज्ञानिकों ने चित्र लिया है कि हमारी आकाशगंगा के एक अत्यंत गर्म ग्रह को( शायद अक्रिय होने पर ? ) उसका स्वयं का सूरज ही ख़त्म कर रहा है। क्या अत्यधिक ग्लोबल वार्मिंग हमारी पृथ्वी की भी यही दशाकरेगी।
इसी सन्दर्भ का एक ऋग्वेदीय श्लोक ( १०/८८/९७७४-१३ ) देखिये.....
"वैश्वानरं कवयो याज्ञियासो sग्नि देवा अजन्यन्नजुर्यम । नक्षत्रं प्रत्नम मिनच्चरिष्णु यक्षस्याध्याक्षम तविषम बृहन्तम""
---क्रान्तिदर्शी यज्ञार्थी देवों ने अजर वैश्वानर को प्रकट किया। जिस समय अग्नि देव विस्तृत व महिमामय होते हैं ,उस समय वे अंतरिक्ष में प्राचीन काल से विहार करने वाले नक्षत्रों को देवताओं के सामने ही निष्प्रभावी बना देते हैं । अर्थात अति प्राचीन व निष्क्रिय नक्षत्र व ग्रह मूल ऊर्जा द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं ।