....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
              आजकल  यह ट्रेंड बन चला है  कि ज़रा सा--- तथाकथित वैज्ञानिक विचार वाला व्यक्ति, समूह , संस्था-- कुछ पाश्चात्य बातें पढ़ता है ..विशेषकर यदि वे हिन्दू व भारतीय संस्कारों , रीति-रिवाजों, पर्वों , विधियों के बारे में 
 हैं तो--- तुरंत उनमें खामियां निकालने लगते हैं एवं बुराई की भांति  
प्रचार करने में जुट जाते हैं | अभारतीय संस्कृति वाले लोग तो इसमें 
सम्मिलित होते ही हैं ..कुछ तथाकथित आधुनिक, स्व-संस्कृति पलायनवादी लोग भी
 जोर-शोर से इस में लग जाते हैं |
        यही बात दीप-पर्व पर पटाखों, आतिशबाजी को लेकर देखी जारही है | 
| आतिशबाजी -दीपावली | 
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| आतिशबाजी- सिटी हाल , बाल्टीमोर-यूं एस ऐ ( चित्र -गूगल - साभार ) | 
                     यह एक गलत धारणा है कि आतिशबाजी से प्रदूषण होता है ....आतिशबाजी युगों से होरही है और प्रदूषण नहीं होता था ..न हुआ ..आतिशबाजी के प्रकाश, धुंए, ऊष्मा व ध्वनि और रसायनों से ( जो वातावरण के लिए एंटी-सेप्टिक का कार्य करते हैं )  वातावरण से कीट-पतंगे ( जो इस मौसम में अधिक होते हैं),  सूक्ष्म-जीव, बेक्टीरिया-आदि नष्ट होते हैं|  मौसम के संधि-स्थल पर मौसम के अनियमित व्यवहार (कभी गरम-कभी नरम) को सम करते हैं | 
                     यही कार्य सरसों के तेल के दीपक
 जलाने से होता है | तेल का एंटी-सेप्टिक  प्रभाव ( यज्ञ , हवं, आहुतियाँ  व
 होलिका दहन आदि की भांति )  वायुमंडल में वाष्पित होकर वातावरण को इन सभी 
प्रकार के प्रदूषण से मुक्त करता है |  जहां मोमबत्तियाँ  व  आधुनिक विद्युत बल्ब सिर्फ प्रकाश व ऊष्मा का ही प्रभाव देते हैं ....तेल का नहीं | 
                    अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने घिसी-पिटी कहानियों को दोहराते रहते हैं ..क्योंकि यह 
भारतीयों का / हिंदुओं का पावन पर्व है ...???? खतरनाक
 व अत्यधिक आवाज व शक्ति 
वाले...बड़ी-बड़ी कंपनियों में बने आधुनिक शक्तिशाली
 पटाखों आदि को सरकार को स्वतः ही 
सख्ती से बंद कर देना चाहिए |
 
                   जहां तक सांस के रोगी की सांस की बात है वह तो सदा ही इस मौसम के संधि-स्थल पर सामान्यतया अधिक सक्रिय हो जाती है |
                    और दुर्घटनाओं की बात--
 वह तो खाना खाने से, मिलावट की मिठाइयां खाने से भी होती रहती हैं तो क्या
 खाना खाना बंद करदेंगे | मिलावट को बंद कीजिये ..मिठाइयों को नहीं |
           
 क्या दुनिया भर में, दुनिया के हर देश में  प्रतिवर्ष एवं वर्ष भर होने 
वाले खेलों, उत्सवों व अन्य पर्वों आदि में जो आतिशबाजी होती है ... उससे 
प्रदूषण नहीं होता ???? 
                 हमें वस्तुओं व तथ्यों को सावधानी पूर्वक चयन करना चाहिए .....अनावश्यक  अति-आधुनिकता व अंधविश्वासी छद्म-वैज्ञानिकता  से व उसके व्यावहारिक -चलन से सावधान रहना आवश्यक है |
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
