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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 10 नवंबर 2012

दीप-पर्व एवं पटाखे व आतिशबाजी और प्रदूषण ....डा श्याम गुप्त ..

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

              आजकल  यह ट्रेंड बन चला है  कि ज़रा सा--- तथाकथित वैज्ञानिक विचार वाला व्यक्ति, समूह , संस्था-- कुछ पाश्चात्य बातें पढ़ता है ..विशेषकर यदि वे हिन्दू व भारतीय संस्कारों , रीति-रिवाजों, पर्वों , विधियों के बारे में  हैं तो--- तुरंत उनमें खामियां निकालने लगते हैं एवं बुराई की भांति  प्रचार करने में जुट जाते हैं | अभारतीय संस्कृति वाले लोग तो इसमें सम्मिलित होते ही हैं ..कुछ तथाकथित आधुनिक, स्व-संस्कृति पलायनवादी लोग भी जोर-शोर से इस में लग जाते हैं |
आतिशबाजी -दीपावली

आतिशबाजी- सिटी हाल , बाल्टीमोर-यूं एस ऐ  ( चित्र -गूगल - साभार )
        यही बात दीप-पर्व पर पटाखों, आतिशबाजी को लेकर देखी जारही है |
                     यह एक गलत धारणा है कि आतिशबाजी से प्रदूषण होता है ....आतिशबाजी युगों से होरही है और प्रदूषण नहीं होता था ..न हुआ ..आतिशबाजी के प्रकाश, धुंए, ऊष्मा व ध्वनि और रसायनों से ( जो वातावरण के लिए एंटी-सेप्टिक का कार्य करते हैं )  वातावरण से कीट-पतंगे ( जो इस मौसम में अधिक होते हैं)सूक्ष्म-जीव, बेक्टीरिया-आदि नष्ट होते हैंमौसम के संधि-स्थल पर मौसम के अनियमित व्यवहार (कभी गरम-कभी नरम) को सम करते हैं
                     यही कार्य सरसों के तेल के दीपक जलाने से होता है | तेल का एंटी-सेप्टिक  प्रभाव ( यज्ञ , हवं, आहुतियाँ  व होलिका दहन आदि की भांति )  वायुमंडल में वाष्पित होकर वातावरण को इन सभी प्रकार के प्रदूषण से मुक्त करता है |  जहां मोमबत्तियाँ  व  आधुनिक विद्युत बल्ब सिर्फ प्रकाश व ऊष्मा का ही प्रभाव देते हैं ....तेल का नहीं |
                    अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने घिसी-पिटी कहानियों को दोहराते रहते हैं ..क्योंकि यह 
भारतीयों का / हिंदुओं का पावन पर्व है ...???? खतरनाक व अत्यधिक आवाज व शक्ति 
वाले...बड़ी-बड़ी कंपनियों में बने आधुनिक शक्तिशाली पटाखों आदि को सरकार को स्वतः ही 
सख्ती से बंद कर देना चाहिए |
 
                   जहां तक सांस के रोगी की सांस की बात है वह तो सदा ही इस मौसम के संधि-स्थल पर सामान्यतया अधिक सक्रिय हो जाती है |
                    और दुर्घटनाओं की बात-- वह तो खाना खाने से, मिलावट की मिठाइयां खाने से भी होती रहती हैं तो क्या खाना खाना बंद करदेंगे | मिलावट को बंद कीजिये ..मिठाइयों को नहीं |
            क्या दुनिया भर में, दुनिया के हर देश में  प्रतिवर्ष एवं वर्ष भर होने वाले खेलों, उत्सवों व अन्य पर्वों आदि में जो आतिशबाजी होती है ... उससे प्रदूषण नहीं होता ????
                 हमें वस्तुओं व तथ्यों को सावधानी पूर्वक चयन करना चाहिए .....अनावश्यक  अति-आधुनिकता व अंधविश्वासी छद्म-वैज्ञानिकता  से व उसके व्यावहारिक -चलन से सावधान रहना आवश्यक है |