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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 21 मई 2009

संस्कृति : दिलों में बसा एक भारत--हिंदु-समा-

अमेरिका में बसे लोग कहरहे हैं किवे दो भाषायें आसानी से बोलते है -हिन्दी,अंग्रेजी। टी शर्त पहनते हैं ,मक्दोनाल्ड में खाते हैं साथ में -रामायण पड़ते हैं ,मन्दिर जाते हैं ,हिन्दी गाने गाते हैं ,अतः अपनी संस्कृति के करीब हैं।
क्या मन्दिर जाना,हिन्दी फिल्में देखना, रामायण पढ़ना ,भारतीयता की निशानी है ?देश को याद कर लेना और अपने धंधे -व्यापार, में मस्त रहना -देश से जुड़े रहना है ?
यह तो वही है---गाँव तो बहुत अच्छा लगता है पर वहाँ ऐ-सी- नहीं है न !, हिन्दुस्तान तो सुंदर है पर वहाँ मोटी तनखा , नहीं है न ! गरमी वहुत है,लोग बनियान पहन कर घूमते हैं, एटीकेट नहीं है न !सिर्फ़ हिन्दी में बोलते हैं , हिन्दू - हिन्दी ,हिन्दुस्तान चिल्लाते रहते हैं , तरक्की नहीं करते।

धृति --धारण ,धैर्य ,धर्म -सम्प्रति रोगी -चिकित्सक व्यवहार सम्बन्ध .

व्यक्ति के सम्मुख -नैतिकता ,यथा - योग्य की समझ व पालन ,मानवीय गुणआदि जब उसका मार्ग दर्शन करने को नहीं होते तो-अति-भौतिकता , होड़ ,विलासप्रियता ,धन आधारित सोच व्यक्ति में अहं की रचना करती है । यह व्यक्ति से समाज में फ़ैल जाती है एवं पुनः चक्रीय व्यवस्थानुसार व्यक्तियों व समस्त समाज को धैर्य के धारण से विमुख कर देती है । यही अधर्म समाज में हर प्रकार की बुराइयां उत्पन्न करता है।
आज हर जगह अस्पतालों में (अन्य स्थानों में भी )इसी धैर्य -धन -धर्म के अभाव के कारण ही हंगामे होते हैं । रोगी व उसके तीमारदारों का अहं कि वह पैसा देता है अतः उसे हर जगह बे रोक टोक जाने देना चाहिए ,२४ घंटे हमें रोगी के पास रहने का अधिकार है। यही बाद में झगडा होने पर ग़लत इलाज़ का बहाना हो जाता है।
चिकित्सा कर्मचारी ,धन कमाने के सोच के कारण रोगी पर उचित ध्यान न देकर तीमारदारों को झगडा के लिए उचित खाद-पानी प्रदान करते हैं ।--- आग है दोनों तरफ़ बराबर लगी हुई।--
अति भौतिक सुख लिप्त हुए नर ,
मद्यपान आदिक बिषयों रत;
कपट, झूठ , छल और दुष्टता ,
के भावों को प्रश्रय देते;
भ्रष्टाचार आतंक बाद में ,
राष्ट्र , समाज लिप्त होजाता।।
--शूर्पनखा काव्य -उपन्यास से