शिक्षक- दिवस पर प्रत्येक शिक्षक को अपना आत्मविश्लेषण करना चाहिये,और हमें भी. शिक्षक कोई भी, कहीं भी, किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति होसकता है, सि्र्फ़ वेतन-भोगी स्कूल मास्टर/ प्रोफ़ नहीं--कुछ दोहे- -----
गुरु
गुरु
सदाचार स्थापना, शास्त्र अर्थ समझाय।
आप करे सदाआचरण , सो आचार्य कहाय॥
यदकिन्चित भी ग्यान जो, हम को देय बताय।
ग्यानी उसको मानकर, फ़िर गुरु लेंय बनाय॥
आप करे सदाआचरण , सो आचार्य कहाय॥
यदकिन्चित भी ग्यान जो, हम को देय बताय।
ग्यानी उसको मानकर, फ़िर गुरु लेंय बनाय॥
इस संसार अपार को किस विधि कीजै पार।
श्याम गुरु क्रपा पाइये,सब विधि हो उद्धार।।
अध्यापक को दीजिये,अति गौरव सम्मान।
श्याम करें आचार्य का, सदा दश गुना मान ॥
गु अक्षर का अर्थ है, अन्धकार अग्यान।
रु से उसको रोकता,सो है गुरु महान ॥
जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहिं शास्त्र विचार।
गुरु की क्रपा न प्राप्त हो,मिले न तत्व विचार॥
जब तक मन स्थिर नहीं, मन नहिं शास्त्र विचार।
गुरु की क्रपा न प्राप्त हो,मिले न तत्व विचार॥
आलोकित हो श्याम का,मन रूपी आकाश ।
सूरज बन कर ग्यान का, जब गुरु करे प्रकाश॥
त्रि-गुरु-----गुरु, माता, पिता
त्रि-गुरु-----गुरु, माता, पिता
शत आचार्य समान है श्याम पिता का मान।
नित प्रति वंदन कीजिये,मिले धर्म संग्यान॥
माता एक महान है, सहस पिता का मान।
पद वंदन नित कीजिये, माता गुरू महान ॥
नित प्रति वंदन कीजिये,मिले धर्म संग्यान॥
माता एक महान है, सहस पिता का मान।
पद वंदन नित कीजिये, माता गुरू महान ॥
सभी तपस्या पूर्ण हों, यदि संतुष्ठ प्रमाण।
मात-पिता-गुरु का करें, श्याम नित्य सम्मान॥
मनसा वाचा कर्मणा, कार्य करें जो कोय।
मातु पिता गुरु की सदा, सुसहमति से होय॥
और
अन्योनास्ति----जगत गुरु-----ईश्वर........
त्रिभुवन गुरु और जगत गुरु,जो प्रत्यक्ष प्रमाण।
जन्म मरण से मुक्ति दे , "ईश्वर" करूं प्रणाम॥
त्रिभुवन गुरु और जगत गुरु,जो प्रत्यक्ष प्रमाण।
जन्म मरण से मुक्ति दे , "ईश्वर" करूं प्रणाम॥