वहीं, जहां हम चले जारहे हैं--सिविल सेवा में भी है स्त्रिओं से भेद भाव,, जैसी समाचारॊं की सुर्खियां तो यही कहतीं है,,यदि हम बचपन से ही यह सब देखते, सुनते ,महिमा मन्डित होते , पढते रहेंगे तो सिविल सेवा में भी वही न र-नारी होते हैं, लिन्ग भेद ,अहं, हीन भावना देखने को तो मिलेगी ही--वो हम से आगे क्यों?, चाहे पुरुश हो या नारी,, ये भागम भाग व ,प्रतियोगिता की बात है, पुरुश-पुरुश भेद भाव दिखता नहीं, जबकि महिला भेद भाव तुरन्त प्रकाश में ला दिया जाता है।
स्त्री विमर्श-पुरुष विमर्श, स्त्री या पुरुष प्रधान समाज़ नहीं ,,मानव प्रधान समाज़, मानव-मानव विमर्श की बात करें। बराबरी की नहीं, युक्त-युक्त उपयुक्तता के आदर की बात हो तो बात बने।