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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 13 जनवरी 2014

हम्पी-बादामी यात्रा वृत्त-७..बादामी ...बादामी गुफाएं ....


                                 ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



              हम्पी-बादामी यात्रा वृत्त-७..बादामी ...बादामी गुफाएं ....



            इंसान जब सभ्य हुआ तो हिंस्र पशुओं व प्राकृतिक आपदाओं वर्षा, धूप आदि से सुरक्षा की चिंता सताई। कभी पड़ों पर रहने वाले इंसानों ने पहाड़ों में बनी प्राकृतिक गुफाओं को अपना घर बनाना शुरू किया | इनमें रहने के अलावा उसने अपनी आस्था के मुताबिक मंदिर भी स्थापित किए, उनमें चित्रकारी की। इनके प्रमाण आज भी पाषाण-चित्रकारी के रूप में प्राप्त होते हैं|  रहस्य,  रोमांच, मानव की भौतिक एवं वैचारिक व अध्यात्मिक प्रगति को प्रदर्शित करती ये गुफाएं आज भी इंसानों को लुभाती हैं। यही कारण है कि इनके साथ-साथ ही बाद में प्राकृतिक गुफाओं के अलावा कृत्रिम गुफाओं का भी निर्माण किया गया। आधिनिक वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार  सर्वप्रथम मानव निर्मित गुफाओं का निर्माण दूसरी शताब्दी ई.पू. के आसपास हुआ था| भारतीय उप महाद्वीप में इस प्रकार की गुफाएं सर्वत्र वर्त्तमान हैं|

        

बादामी स्टेंड पर बन्दर कार में झांकते हुए
             बेंगलोर से लगभग ५०० किमी दूर बादामी, उत्तर कर्नाटक के बागलकोट जिले का एक प्राचीन एतिहासिक स्थल है जिसे पहले वातापी  या वातापिपुर कहा जाता था| ५४० से ७५७ एडी तक बादामी चालुक्यों की राजधानी रहा तथा विंध्यपर्वत श्रृंखला पार करके आने वाले प्रथम ऋषि मुनि अगस्त्य जिन्होंने सागर को चुल्लू में भरकर पीलिया था, का स्थान है | विशाल अगस्त्य झील के चहुँ ओर बसा हुआ बादामी नगर, दो विशाल शिलापर्वतों, जो अगस्त्य झील को घेरे हुए हैं, के मध्य घाटी में बसा हुआ है | इन्हीं में से एक पर्वत महाशिला पर विश्वप्रसिद्ध बादामी गुफाएं हैं जो दक्षिण भारतीय शिल्प कला के सुन्दरतम कलाकृतियों में से एक हैं | पर्वत के शिखर पर बादामी फोर्ट है  एवं सामने दूसरे पर्वत पर चालुक्य-फोर्ट | अगत्य झील परिसर में भूतनाथ मंदिर एवं प्राचीन ग्राम-देवता मंदिर के अतिरिक्त अनेक प्राचीन मंदिर श्रृंखलाएं हैं जिनमे विभिन्न पाषण-शिलाओं पर चित्र उत्कीर्णित हैं | समस्त पर्वत श्रेणी पर अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं | बादामी से २२ किमी दूर पट्टाडाकल एवं ४६ किमी पर ऐहोले है जो विश्व-प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों के स्थल है | बादामी, पट्टाडाकल व ऐहोल विश्व-धरोहर स्थल हैं|

         २४ दिसंबर को प्रातः हम कार द्वारा  हम्पी से लगभग १५० किमी दूर बागलकोट जिले में स्थित चालुक्य साम्राज्य की प्राचीन राजधानी बादामी पहुंचे | हमारे होटल राजसंगम इंटरनेशनल के ठीक पीछे ही बादामी गुफायें थीं अतः फ्रेश होकर तुरंत ही गुफा स्थल के लिए चल दिए |

         प्राक-एतिहासिक स्थल---बादामी के समीप मालप्रभा नदी के बेसिन क्षेत्र में सावरफड़ी, सिडलफड़ी आदि स्थानों पर पाषाण युग के पत्थर के औज़ार, रोक-शेल्टर्स, शव-स्थल व शैल-चित्र प्राप्त हुए हैं|
        बादामी या वातापी इतिहास में ...बादामी दो से अधिक शताब्दियों तक चालुक्यों की राजधानी  रहा । वातापी के प्राचीन कदम्ब राज्य के मांडलिक ( मंत्री) जयसिंह ने चालुक्य वंश की नीव रखी| ब्रह्मा के कमंडल से चुल्लू द्वारा छिड़के हुए जल से उत्पन्न वीर मानव योद्धा से इस वश का प्रादुर्भाव माना जाता है | इन्हें हरीतिपुत्र भी कहा जाता है, हरीति नामक संत ( शायद हारीति- संहिता के रचनाकार प्रसिद्द आयुर्वेद चिकित्सक-हारीति ) के चुल्लू–हाथ धोने के जल से उत्पन्न |  इस वंश चालुक्यों की प्रथम राजधानी ऐहोल थी जहां दक्षिण भारतीय शिल्पकला का जन्म हुआ बाद में बादामी में वृद्धि एवं पत्तदकल में समृद्धि की चरम सीमा पर पहुँची| चालुक्य राजवंश के शासन काल में यह राजवंश अपनी ऊंचाई पर पहुँच चुका था। बादामी चालुक्यों की राजनीतिक राजधानी , ऐहोल शैक्षिक एवं पत्तदकल सांस्कृतिक राजधानी थी|मिश्र-सुमेरियन देशों तक इसके वाणिज्यिक सम्बन्ध थे| मुसलमान इतिहास लेखक तबरी  के अनुसार 625-626 ई. में ईरान के बादशाह ख़ुसरो द्वितीय ने सम्राट पुलकेशियन की राज्यसभा में अपना एक दूत भेजकर उसके प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित किया था।  चालुक्यों के बाद बादामी ने अपनी प्रसिद्धि को खो दिया। यहाँ कदम्ब, गंग, राष्ट्रकूट, कल्याणी-चालुक्य, होयसला, विजयनगर एवं कालचूर्यो,  देवगिरि के यादवों ने भी बदामी पर शासन किया। फिर आदिल शाह और मराठाओं ने भी इसको अपने अधीन रखा। इन सब शासकों के प्रभाव बदामी के अवशेषों में मौजूद दिखाई हैं। यहां स्थित भूतनाथ का मंदिर, एक मस्जिद,  शिवालय और टीपू सुल्तान का खजाना महल सभी अपने में अतीत की गाथाएं और इतिहास समेटे हुए हैं।
           मंदिरों का शहर बदामी: चालुक्यों की राजधानी बदामी हम्पी से भी 1000 वर्ष ज्यादा पुरानी है। बदामी भी हम्पी की तरह मंदिरों से भरा पड़ा है। यहां पांच गुफाएं हैं, जिनमें चार मानव-निर्मित और एक प्राकृतिक है। इन गुफाओं में उन सारे धर्मो से संबंधित मूर्तियाँ मिल जाएंगी जो उस वक्त पांचवी सदी में प्रचलित थे। चट्टानों से काटकर बनाए गए यहां के सुंदर मंदिर बदामी का खास आकर्षण हैं।  इन मंदिरों में दो विष्णु के, एक शिव का और एक जैनियों का मंदिर प्राचीन कला का एक अद्भुत नमूना है। पांचवीं प्राकृतिक गुफा एक पूरी पहाड़ी को काटकर बनाई गई है और बौद्ध कला का एक अद्भुत नमूना है। यह गुफा ऊंचाई पर है और यहां से दिखने वाला चारों तरफ का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों का मन मोह लेता है।
           घाटी में स्थित तथा सुनहरे बलुआ पत्थर की चट्टानों से घिरे हुए वातापी को इस क्षेत्र का यहाँ शिलाओं के बादामी रंग के कारण बादामी नाम रखा गया | यह दक्षिण भारत के उन प्राचीन स्थानों में से है जहाँ बहुत अधिक मात्रा में मंदिरों का निर्माण हुआ। बादामी अपने सुंदर गुफा मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जो अगत्स्य झील के आसपास स्थित हैं जो घाटी के मध्य में स्थित है।
      पौराणिक महत्त्व के अनुसार यह स्थल दो जुड़वां असुर भाइयों वातापी एवं इल्वल का निवास स्थल था जो ब्राह्मण-विद्वानों व वैद्यक के विद्वानों ( शायद वातापी के संत हारीति के वंशजों- चिकित्सकों आदि ) को एक विचित्र तरीके से मार कर खाजाया करते थे| वे पहले उन्हें दावत पर बुलाते थे फिर बड़ा भाई इल्वल दूसरे भाई वातापी के शरीर का भोजन बनाकर खिला देता था | बाद में स्वयं आवाज़ देकर उसे बुलाता था जो उसका पेट फाड़कर बाहर आजाता था | मृतक व्यक्ति को दोनों मिलकर खाजाया करते थे | इस प्रकार उन्हें घर बैठे ही भोजन मिल जाया करता था | मुनि अगस्त्य खाने के बाद अपनी जठराग्नि से वातापी को पचा लिया| इस प्रकार दोनों का अंत करके यहाँ के निवासियों को छुटकारा दिलाया| ये दोनों महाशिला-पर्वत  वातापी- इल्वल के शरीर कहे जाते हैं|

        बादामी गुहा-मंदिर.... चार पर्वत गुफाओं में स्थित हैं जो पर्वत को काट कर बनाई गयी हैं| जिनमें नर्म बलुआ पत्थर में शिल्पकारी द्वारा विभिन्न पौराणिक कथाएं एवं मूर्तियाँ आदि उकेरी गयी हैं| ये गुफाएं शिव, विष्णु, जैन-तीर्थंकर एवं बुद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं|
      
प्रकृति द्वारा ..रोक पेंटिंग




गुफा २ से अगस्त्य सरोवर, बादामी नगर का विहंगम दृश्य सामने पहाडी पर चालुक्य फोर्ट व मंदिर श्रृंखला


बदामी बस स्टेंड के समीप ही कार या वेहिकल को पार्क करके लगभग ३० सीडियां चढ़कर पहली गुफा पर पहुंचाते हैं जो नीचे से भी दिखाई पड़ती है| यहाँ बहुत से बन्दर हैं अधिक उग्र नहीं हैं बस भोजन की फिराक में रहते हैं| आखिर हम भी तो वही करते हैं |

बादामी फोर्ट एवं प्रथम गुफा


विष्णु गुफा -३
-
विष्णु गुफा -२











गु-१-१८ भुजा शिव -तांडव नृत्य
गु-१-महिषासुर मर्दिनी
गु.-१ भृंगी ऋषि-पार्वती  प्रकरण

गु.-१





शिव-पार्वती एवं  ड्रेगन ...डायनासोर से मिलता-जुलता  शिव-वाहन
पहली गुफा--- मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जो चारों गुफाओं में सबसे प्राचीन है एवं विभिन्न खम्भों पर बना हुआ है। पर्वत के आधार से ४० सीडियाँ चढ़कर यहाँ पहुँचते हैं| यहाँ की विशेषता 18 फुट ऊंची नटराज की मूर्ति है जिसकी 18 भुजाएं हैं जो तांडव नृत्य की अनेक नृत्य मुद्राओं को दर्शाती है। इस प्रकार लगभग ८० नटराज मूर्तियाँ विभिन्न नृत्य-मुद्राओं में हैं | इस गुफा में महिषासुरमर्दिनी, नृत्यरत गणेश, नंदी, हरिहर, कार्तिकेय,अर्ध-नारीश्वर, गज-वृषभ  एवं छतों पर तमाम शिव-गण ...कुब्जागण, नागराज, विद्याधर-युगल की प्रतिमाएं हैं|
पहली व दूसरी गुफा के मध्य प्राकृतिक बौद्ध गुहा
प्राकृतिक गुफा
प्राकृतिक -बौद्ध गुफा में बुद्ध शिलांकन -- आराध्य
     पहली व दूसरी गुफा के मध्य एक प्राकृतिक गुफा भी है जो पांचवीं एवं बौद्ध गुफा है एवं उसमें झुक कर ही जाया जा सकता है|  इसमें बुद्ध पद्मासन में बैठे हुए हैं |
विष्णु गु.-२..वराह अवतार
विष्णु गु.-२ वामन अवतार -
विष्णु गु.-२ एक रेखा से अंकित स्वास्तिक
विष्णु गु.-२ छत पर -प्रणयी युगल
विष्णु गु.-२ धर्म-चक्र

दूसरी गुफा-- भगवान विष्णु को समर्पित है। यहाँ पहुँचने के लिए सीडियां चढ़नी पड़ती हैं| इस गुफा की पूर्वी तथा पश्चिमी दीवारों पर भू-वराह तथा पैरों से आकाश–पृथ्वी नापते हुए एवं एक पैर बलि के सिर पर रखे हुए त्रिविक्रम तथा देखते हुए वलि-पत्नी विन्ध्यवली एवं पुत्र नमुचि के बड़े चित्र लगे हुए हैं। गुफा की छत पर ब्रह्मा, गरुड़ पर सवार विष्णु, शिव, अनंतशयनं  और अष्ट-दिक्पालों एवं स्वास्तिक व पुराणों के अन्य चित्रों से सुशोभित है।
विष्णु गु.-३ ..हंसते हुए नृसिंह
विष्णु गु-३ ..आदि शेष पर विष्णु
विष्णु गु-३...खम्भे के ब्रेकेट पर युगल मूर्तियाँ





तीसरी गुफा- विष्णु को समर्पित है एवं सबसे बड़ी व सुन्दर है जो लगभग १०० फीट गहरी है| यहाँ दूसरी गुफा से लगभग ६४ सीडियां चढ़नी पड़ती हैं| ये बादामी की उस काल की गुफा मंदिरों की वास्तुकला और मूर्तिकला के भव्य रूप को प्रदर्शित करती है। यहाँ कई देवताओं के चित्र हैं तथा यहाँ ईसा पश्चात 578 शताब्दी के शिलालेख मिलते हैं। यहाँ पार्श्वनाथ, वाराह, हरिहर, हंसते हुए विजय-नृसिंह के साथ प्रहलाद एवं मानव-मुख गरुण व  आदिशेष पर विष्णु की मूर्तियाँ हैं| खम्भों पर भी सुन्दर श्रंगारिक मूर्ति-अंकन हैं | छत पर शिव-पार्वती के विवाह के चित्रांकन हैं|

 चौथी गुफा....

जैन गु-४ महावीर -ध्यानस्थ



गु-४..पार्श्वनाथ ....
गु-४ -बाहुवली पैरों पर लिपटे हुए एवं बिलों से निकलते हुए सर्प
चौथी गुफा एक जैन मंदिर है। यहाँ प्रमुख रूप से जैन तीर्थंकरों महावीर को समर्पित है जिसमें वे बैठी हुई मुद्रा में हैं|  पार्श्वनाथ की मूर्ति भी है जिसमें सर्प उनके पैरों में लिपटे हुए दिखाए गए हैं|  कुछ मूर्तियाँ बाहुबली एवं यक्ष-यक्षियों की भी हैं| 

            --- क्रमश ..हम्पी बादामी यात्रा वृत्त -८ ...बादामी..अन्य स्थल ...