....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सावन का महीना शिव का महीना ..मंगल-उल्लास का माह ...जीवन्तता का माह है | शिव के साथ सर्प..नागों का सदैव विशेष सम्बन्ध रहा है जो सामाजिक विष के नियमन का प्रतीक हैं | इसीलिये शिव पशुपति भी हैं, कल्याण के प्रतीक भी | इसीलिये नागपंचमी सावन के महीने में ही मनाई जाती है |
नाग, शेर, मोर, कौवा , गिद्ध , बाराह, कच्छप, बकरा, कुत्ता , घोड़ा, गाय ...तुलसी, पीपल, नीम ..बृक्ष..आदि सभी जीवों -प्राणियों, जीवों की पूजा करने वाली भारतीय संस्कृति ..बिचित्र व विशिष्ट है | सब को अपने समान समझने के भाव वाली संस्कृति प्रत्येक जीव मात्र में देवता का बास मानती है | यह भाई चारा, विश्व-बन्धुत्व ..अहिंसा की संस्कृति है ...विश्व में अनोखी |
वह इसलिए कि भारतीय पुरा-ज्ञान के मूल ..वैदिक साहित्य के अनुसार समस्त प्राणी-जगत कश्यप मुनि की संतानें हैं | सभी भाई- भाई हैं | जिसे विज्ञान के अनुसार कहा जाय तो--जल में मछली के उपरांत ..स्थल पर आने वाले प्रथम जीव ---कच्छप से ही समस्त जीव-जगत का.. मानव तक उद्भव हुआ है |
एसी अनोखी विशिष्ट संस्कृत के इस देश में आज ये हिंसा, द्वंद्व, द्वेष, अनाचार की स्थिति क्यों ? शायद इसलिए कि हम अपनी इस विश्व-वारा संस्कृति को भूल गए हैं ...उसकी जड़ों को भूल गए हैं ... पाश्चात्य जगत के संस्कृति व ज्ञान रूपी.. अति-भौतिक ज्ञान....अज्ञान ...को प्रश्रय देने के कारण |
अतः आज के दिन हम इस पर सोचें व समझें ...यही सच्ची नाग-पूजा...शिव-पूजा होगी |
सावन का महीना शिव का महीना ..मंगल-उल्लास का माह ...जीवन्तता का माह है | शिव के साथ सर्प..नागों का सदैव विशेष सम्बन्ध रहा है जो सामाजिक विष के नियमन का प्रतीक हैं | इसीलिये शिव पशुपति भी हैं, कल्याण के प्रतीक भी | इसीलिये नागपंचमी सावन के महीने में ही मनाई जाती है |
नाग, शेर, मोर, कौवा , गिद्ध , बाराह, कच्छप, बकरा, कुत्ता , घोड़ा, गाय ...तुलसी, पीपल, नीम ..बृक्ष..आदि सभी जीवों -प्राणियों, जीवों की पूजा करने वाली भारतीय संस्कृति ..बिचित्र व विशिष्ट है | सब को अपने समान समझने के भाव वाली संस्कृति प्रत्येक जीव मात्र में देवता का बास मानती है | यह भाई चारा, विश्व-बन्धुत्व ..अहिंसा की संस्कृति है ...विश्व में अनोखी |
वह इसलिए कि भारतीय पुरा-ज्ञान के मूल ..वैदिक साहित्य के अनुसार समस्त प्राणी-जगत कश्यप मुनि की संतानें हैं | सभी भाई- भाई हैं | जिसे विज्ञान के अनुसार कहा जाय तो--जल में मछली के उपरांत ..स्थल पर आने वाले प्रथम जीव ---कच्छप से ही समस्त जीव-जगत का.. मानव तक उद्भव हुआ है |
एसी अनोखी विशिष्ट संस्कृत के इस देश में आज ये हिंसा, द्वंद्व, द्वेष, अनाचार की स्थिति क्यों ? शायद इसलिए कि हम अपनी इस विश्व-वारा संस्कृति को भूल गए हैं ...उसकी जड़ों को भूल गए हैं ... पाश्चात्य जगत के संस्कृति व ज्ञान रूपी.. अति-भौतिक ज्ञान....अज्ञान ...को प्रश्रय देने के कारण |
अतः आज के दिन हम इस पर सोचें व समझें ...यही सच्ची नाग-पूजा...शिव-पूजा होगी |