....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सींचे बिन मुरझा गयी, सदाचार की बेल |
श्याम कहाँ फूलें फलें ,संस्कार के फूल ||
दायें हाथ से दान कर, बायां सके न जान |
सबसे बढकर दान है, गुप्त दान यह मान ||
आत्म शान्ति से जो मिले,अति सुख अति सम्मान |
सो सुख लक्ष्मी दे नहीं , मिले न अमृत पान ||
कमल जो कीचड में पड़ा, कीचड लगे न सोय |
सत्य कर्म करता रहे ,विषय लिप्त नहीं होय ||
सज्जन ऐसा जानिये, ज्यों पानी के ढंग |
किसी पात्र में डालिए , ढले उसी के रंग ||
श्याम किसे मिलते नहीं, व्याधि, दुःख और दोष |
जग सुख दुःख का नाम है,किसको है परितोष ||
पानी सींचें प्रेम का ,चाहें प्रिय फल-फूल |
कटुता बोये क्या मिले, तीखे शूल बबूल ||सींचे बिन मुरझा गयी, सदाचार की बेल |
श्याम कहाँ फूलें फलें ,संस्कार के फूल ||
दायें हाथ से दान कर, बायां सके न जान |
सबसे बढकर दान है, गुप्त दान यह मान ||
आत्म शान्ति से जो मिले,अति सुख अति सम्मान |
सो सुख लक्ष्मी दे नहीं , मिले न अमृत पान ||
कमल जो कीचड में पड़ा, कीचड लगे न सोय |
सत्य कर्म करता रहे ,विषय लिप्त नहीं होय ||
सज्जन ऐसा जानिये, ज्यों पानी के ढंग |
किसी पात्र में डालिए , ढले उसी के रंग ||
श्याम किसे मिलते नहीं, व्याधि, दुःख और दोष |
जग सुख दुःख का नाम है,किसको है परितोष ||