....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
यूं तो सहज रूप में ही १५ वीं सदी से ही समय समय पर नव जागरण ,स्त्री जागरण, समाज सुधार के बीज अंकुरित होते रहे थे | ११ वीं सदी में गुरु गोरखनाथ के पश्चात देश भर में संत साहित्यकार गुरु नानक , तुलसीदास, कबीर, सूरदास, रैदास, तुकाराम, एकनाथ, तिरुवल्लर, कुवेम्पू ,केलासम अपने अपने विचारों से अपने अपने ढंग से नव-जागरण का ध्वज उठाये हुए थे | राजनीति के स्तर पर भी शिवाजी, राणा प्रताप अदि देश भक्तों की लंबी परम्परा चलती रही |
अंग्रेज़ी दासता से स्वतंत्रता पश्चात समाज की विभिन्न भाव उन्नति के साथ नारी-शिक्षा, नारी-स्वास्थ्य, अत्याचार-उत्प्रीडन् से मुक्ति, बाल-शिक्षा, विभिन्न कुप्रथाओं की समाप्ति द्वारा आज नारी व भारतीय नारी के पुनः अपनी आत्म-विस्मृति, दैन्यता, अज्ञानता से बाहरआकर खुली हवा में सांस ले रही है एवं समाज व पुरुष की अनधिकृत बेडियाँ तोडने में रत है |
यूं तो सहज रूप में ही १५ वीं सदी से ही समय समय पर नव जागरण ,स्त्री जागरण, समाज सुधार के बीज अंकुरित होते रहे थे | ११ वीं सदी में गुरु गोरखनाथ के पश्चात देश भर में संत साहित्यकार गुरु नानक , तुलसीदास, कबीर, सूरदास, रैदास, तुकाराम, एकनाथ, तिरुवल्लर, कुवेम्पू ,केलासम अपने अपने विचारों से अपने अपने ढंग से नव-जागरण का ध्वज उठाये हुए थे | राजनीति के स्तर पर भी शिवाजी, राणा प्रताप अदि देश भक्तों की लंबी परम्परा चलती रही |
मूलतः १९ वीं सदी में विश्व स्तर की कुछ महान एतिहासिक घटनाओं के फलस्वरूप नव जागरण का कार्य तेजी से बढ़ा | ये थीं विश्व पटल पर अमेरिका का उदय व विश्व भर में शासन तंत्र के बदलाव की नयी हवाएं .....राज-तंत्र का समाप्ति की ओर जाना व गणतंत्र की स्थापना ( जिसका एक प्रयोग पहले ही भारत में वैशाली राज्य में हो चुका था ..यद्यपि वह कुछ अपरिहार्य कारणों से असफल रहा ) | सारे विश्व में ही राज्यतंत्र की निरंकुशता से ऊबे जन मानस ने लोकतंत्र की खुली हवा में सांस लेना प्रारम्भ किया | तुलसी की रामचरित मानस, सूरदास के कृष्ण-भक्ति साहित्य, कबीर के निर्गुण-भक्ति ज्ञान के साहित्य मूल रूप से समाज व नारी जागरण के वाहक बने; आगे साहित्य जगत में भारतेंदु हरिश्चंद्र , जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,सुभद्राकुमारी चौहान, सुमित्रा नन्द पन्त, मैथिली शरण गुप्त, दिनकर, निराला, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, मुंशी प्रेम चन्द्र, शरतचन्द्र, रवीन्द्रनाथ टेगोर, सुब्रह्मनियम भारती .....समाज सेवी व राजनैतिक क्षेत्र में राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, आर्य समाज व महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी आदि के प्रयासों से भारतीय समाज से विभिन्न कुप्रथाओं का अंत हुआ एवं नारी-शिक्षा द्वारा नारी के नव जागरण का युग प्रारम्भ हुआ |
अंग्रेज़ी दासता से स्वतंत्रता पश्चात समाज की विभिन्न भाव उन्नति के साथ नारी-शिक्षा, नारी-स्वास्थ्य, अत्याचार-उत्प्रीडन् से मुक्ति, बाल-शिक्षा, विभिन्न कुप्रथाओं की समाप्ति द्वारा आज नारी व भारतीय नारी के पुनः अपनी आत्म-विस्मृति, दैन्यता, अज्ञानता से बाहर
परन्तु यह राह भी खतरों से खाली नहीं है , इसके लिए उन्हें आरक्षण आदि की वैसाखियों व पुरुषों का अनावश्यक सहारा नहीं लेना चाहिए अपितु अपने बल पर सब कुछ अर्जित करना ही श्रेयस्कर रहेगा | पुरुषों की बराबरी के नाम पर अपने स्त्रियोचित गुण व कर्तव्यों का बलिदान व नारी विवेक की सीमाओं का उल्लंघन उचित नहीं | शारीरिक आकर्षण के बल पर सफलता की आकांक्षा व बाज़ार और पुरुषों के समझौते वाली भूमिका में लिप्त नहीं होना चाहिए | भोगवादी व्यवस्था , अतिभौतिकवादी चलन एवं अंधाधुंध पाश्चात्य अनुकरण, आकर्षणों, प्रलोभनों के साथ स्वार्थी पुरुषों व पुरुषवादी संगठनों, छद्म-नारीवादी संगठनों की बाज़ारवादी व्यवस्था से परे रह कर ही नारी- श्रृद्धा- मूलक समाज, स्त्री-नियंता समाज व नारी-पुरुष समन्वयात्मक समाज की स्थापना की रीढ़ बन् सकती है |