कुछ ऐसी छोटी-छोटी बातें होतीं हैं जो देखने में एक दम साधारण लगतीं हैं , जिन्हें हम अनायास ही कहते, सुनते व हंसकर टाल जाते हैं, परन्तु वे :
सतसैया के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर" की भांतिजन मानस में ओर फ़लस्वरूप समाज़ में गहन प्रभाव डालतीं है ओर अनियमित व्यवहार की पोषक होकर, अकर्म,अनाचार,भ्रष्टाचार व नैतिक पतन का कारक बनतीं हैं। ये मीठी छुरी की भांति गहरा वार, सुरा की भांति मादक प्रभाव दालतीं है ओर आस्तीन के सांप की भांति अन्तरतम में पैठ कर यथा - प्रभाव छोडतीं हैं।हमें ऐसी बातों को बडी सावधानी के साथ प्रयोग करना चाहिये, अपितु ऐसे सपोले -जुमलों को आदत बनने से पहले ही नष्ट करदेना चाहिये। कुछ बातें निम्नहैं :----
---कौन पूछता है? ,,कौन देखता है?,,,ज्यादा दिल पर मत लो,,,दिल पर मत ले यार,,,अरे छोडो !,,,सब चलता है,,,
हमही गान्धी बनने को हैं क्या?,,,हर बात में राज नीति न करो,,,रिलीजन इज़ फ़ेनेटिस्म,,,उदार वादी बनो,,,साम्प्रदाय वादी हैं,,,व्यवहारिक द्रष्टिकोण रखें,,,चलती का नाम गाडी,,,कौन दूध का धुला है?,,,थोडी सी वेबफ़ाई,,,आटे में नमक के बराबर (भ्रष्टाचार-बेईमानी-बेगैरती) चलता है,,,मैं तो बस यूं ही मज़ाक ...,,,, नेति-नेति .........
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