१-
जनम लियो वृषभानु लली ।
आदि -शक्ति प्रकटी बरसाने, सुरभित सुरभि चली।
जलज-चक्र,रवि तनया विलसति,सुलसति लसति भली ।
पंकज दल सम खिलि-खिलि सोहै, कुसुमित कुञ्ज लली।
पलकन पुट-पट मुंदे 'श्याम' लखि मैया नेह छली ।
विहंसनि लागि गोद कीरति दा, दमकति कुंद कली ।
नित-नित चन्द्रकला सम बाढ़े, कोमल अंग ढली ।
बरसाने की लाड़-लडैती, लाडन -लाड़ पली ।।
-२-
कन्हैया उझकि-उझकि निरखै ।
स्वर्ण खचित पलना,चित चितवत,केहि विधि प्रिय दरसै ।
जंह पौढ़ी वृषभानु लली , प्रभु दरसन कौं तरसै ।
पलक -पाँवरे मुंदे सखी के , नैन -कमल थरकैं ।
कलिका सम्पुट बंध्यो भ्रमर ज्यों ,फर फर फर फरकै ।
तीन लोक दरसन को तरसे, सो दरसन तरसै ।
ये तो नैना बंद किये क्यों , कान्हा बैननि परखै ।
अचरज एक भयो ताही छिन , बरसानौ सरसै ।
खोली दिए दृग , भानु-लली , मिलि नैन -नैन हरसें ।
दृष्टि हीन माया ,लखि दृष्टा , दृष्टि खोलि निरखै ।
बिनु दृष्टा के दर्श ' श्याम' कब जगत दीठि बरसै ॥
-३-
को तुम कौन कहाँ ते आई ।
पहली बेरि मिली हो गोरी ,का ब्रज कबहूँ न आई ।
बरसानो है धाम हमारो, खेलत निज अंगनाई ।
सुनी कथा दधि -माखन चोरी , गोपिन संग ढिठाई ।
हिलि-मिलि चलि दधि-माखन खैयें, तुमरो कछु न चुराई।
मन ही मन मुसुकाय किशोरी, कान्हा की चतुराई ।
चंचल चपल चतुर बतियाँ सुनि राधा मन भरमाई ।
नैन नैन मिलि सुधि बुधि भूली, भूलि गयी ठकुराई ।
हरि-हरि प्रिया, मनुज लीला लखि,सुर नर मुनि हरसाई ॥
-४-
राधाजी मैं तो बिनती करूँ ।
दर्शन दे कर श्याम मिलादो,पैर तिहारे पडूँ ।
लाख चौरासी योनि में भटका , कैसे धीर धरूँ ।
जन्म मिला नर , प्रभु वंदन को,सौ सौ जतन करूँ ।
राधे-गोविन्द, राधे-गोविन्द , नित नित ध्यान धरूँ ।
जनम जनम के बन्ध कटें जब, मोहन दर्श करूँ ।
श्याम, श्याम के दर्शन हित नित राधा पद सुमिरूँ ।
युगल रूप के दर्शन पाऊँ , भव -सागर उतरूँ ॥
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
बुधवार, 15 सितंबर 2010
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