....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अगीत की शिक्षा-शाला
आज से मेरे अन्य ब्लॉग " अगीतायन" पर ...'अगीत की कार्यशाला 'कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है क्रमशः सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....
अगीत कार्यशाला -१ ---
आज से मेरे अन्य ब्लॉग " अगीतायन" पर ...'अगीत की कार्यशाला 'कार्यक्रम प्रसारित किया जायगा , अगीत कविता क्या है व कैसे लिखा जाता है इसका विविध छंद व उनका छंद विधान क्या है क्रमशः सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा.....
अगीत कार्यशाला -१ ---
कविता की अगीत विधा का प्रचलन भले ही कुछ दशक पुराना हो परन्तु अगीत की अवधारणा मानव द्वारा आनंदातिरेक में लयबद्ध स्वर में बोलना प्रारम्भ करने के साथ ही स्थापित होगई थी|
विश्व भर के काव्य ग्रंथों व समृद्धतम संस्कृत भाषा साहित्य में
अतुकांत गीत, मुक्त छंद या अगीत-- मन्त्रों , ऋचाओं व श्लोकों के रूप में
सदैव ही विद्यमान रहे हैं| लोकवाणी एवं लोक साहित्य में भी अगीत कविता -भाव सदैव उपस्थित रहा है | यथा --
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शास्वती समां
यद् क्रोंच मिथुनादेकं बधी काम मोहितं || तथा.....
भूर्वुवः स्वः तत्सवितुर्वरेणयम
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न प्रचोदयात ||
संक्षिप्तता, समस्या समाधान,
अतुकांत मुक्त-छंद प्रस्तुति के साथ-साथ गेयता को समेटती हुई गीत सुरसरि की सह-सरिता, नयी अतुकांत कविता
"अगीत" एक अल्हड निर्झरिणी की भांति,
उत्साही व राष्ट्र-प्रेम से ओत -प्रोत ,
गीत, गज़ल, छंद,
नव-गीत आदि सभी काव्य-विधाओं में सिद्धहस्त कवि डा.रंगनाथ मिश्र 'सत्य' के
अगीतायन से,
लखनऊ विश्व-विद्यालय में हिदी की रीडर व सुधी साहित्यकार
डा उषा गुप्ता की सुप्रेरणा व आशीर्वाद से निस्रत हुई | सन १९६५-६६ ई.में डा. सत्य ने
"अखिल भारतीय अगीत परिषद "की लखनऊ में स्थापना की तथा
अगीत विधा को विधिवत जन्म
दिया तो वह अगीत-धारा कुछ इस प्रकार मुखरित हुई --
" आओ हम राष्ट्र को जगाएं
आजादी का जश्न मनाना,
हमारी मजबूरी नहीं-
अपितु कर्तव्य है |
आओ हम सब मिलकर
विश्व-बंधुत्व अपनाएं,
स्वराष्ट्र को प्रगति पथ पर -
आगे बढाएं |"
............डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
'अगीत पांच से दस तक
पंक्तियों वाली अतुकांत कविता है जिसमें मात्रा व तुकांत बंधन नहीं है | यह एक वैज्ञानिक पद्धति है
वर्तमान में सामाजिक सरोकारों व उनके समाधान केलिए विद्रोह है, एक नवीन खोज है |
कुछ अगीतों की छटा देखिये.....
आदमी की झूठ फरेबी, मक्कारी ने-
इतना असर डाला ,कि
मगरमच्छों ने -
अपना सम्विधान बदल डाला;
अब वे अपना पेटेंट बदलबायेंगे,
आंसूं नहीं बहायेंगे,
मक्कारी भरे आंसू,
अब आदमी के आंसू कहायेंगे || ---- डा श्याम गुप्त ..
"एक लघु वाक्य
करता
है हमारे भाव का
स्पष्ट
सम्प्रेषण |
अगीत
की लघु काया में
लेता
है आकार
हमारे
विचार का
स्पष्ट
विस्तृत वाच्य |"
----श्री
जगत नारायण पाण्डेय( अगीतिका से )
"
बूँद
-बूँद बीज ये कपास के,
खिल खिल कर पड रही दरार ;
सडी-गली मछली के संग ,
उंच-नीच अंतर में
ढूँढ रहा विस्मय, विस्तार ;
डूब गए कपटी विश्वास के |"
-------डा
रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
"
स्तम्भन
एक और ....
संबंधी भीड़-भाड
ध्वंस की कतारों में ;
मक्षिका नहा रही-
दूध के पिटारों में |
ढला ढला लगता सब ओर...
अपने में स्नेह-सिक्त,
तिरछा भूगोल |" ----डा सत्य
"
मन का
कठोर होना ,
कितना मुश्किल होता है |
मन ही तो जीवन में
कोमलतम होता है |
हम कितने भी पाषाण ह्रदय बन जाएँ,
अंतस में कहीं न कहीं ,
नेह प्रान्कुर बसता है |"
-----स्नेह
प्रभा |
"देव नागरी को अपनाएं
हिन्दी है जन जन की भाषा ,
भारत माता की अभिलाषा |
बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,
सब बहनों की बड़ी बहन है
हिन्दी सबका मान बढाती ,
हिन्दी का अभियान चलायें|"
--- डा
रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
" वाह रे प्रदूषण !
धरा हो या गगन, सलिल या पवन ,
यहाँ तक कि मानव मन -
भी प्रदूषित है |
असुराचारी मानव बना खरदूषण ,
कैसे सुधरे पर्यावरण |"
------सुरेन्द्र
कुमार शर्मा ( मेरे अगीत छंद )
सृजन जीवन है,
स्वयं सृष्टा का,
अन्यथा उसके सृष्टा होने का क्या अर्थ है;
सृजन अहसास है,
गति का, प्रगति का ;
सृजन अहसास है
जीवित होने का || --- डा श्याम गुप्त
---आगे.... क्रमशः ब्लॉग " अगीतायन" (http://ageetayan.blogspot.com ) पर ....