....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
वो अपने आप देता है देखकर लेख कर्मों का,
अहं मुझको न होजाए इसलिए मांगता हूँ मैं |
तुझे जपता हूँ, कर्मों में, नहीं आसक्ति होपाये,
भक्त के वश में है भगवन जदपि यह जानता हूँ मैं |
सभी यह जानते हैं कि तू है भाव का भूखा,
सत्य शुचि भाव उर के, तेरा वंदन, मानता हूँ मैं |
तू कण कण में समाया है तुही है महत तू ही अणु,
रहे यह याद, मूरत गढ़, तुझे सनमानता हूँ मैं |
तेरा क्या रूप है, गुण है, मैं अज्ञानी नहीं
जानूं ,
हाथ ले छंद
का प्याला, भक्ति-रस छानता हूँ मैं |
श्याम’ तो माया के वश में, नहीं गुणगान के लायक,
तू चाहे तभी अधिकारी, तेरे गुणगान का हूँ मैं ||