आज वर्ष २०११ का अंतिम दिवस है.... कल से नववर्ष का प्रारम्भ है....यदि हम एक गुणात्मक सोच के साथ, एक सुनिश्चित लक्ष्य लेकर ज़िंदगी की राहों को ज़िंदादिली, प्रेम , भाईचारा , सौहार्द , अनुशासन व सहज़ता के साथ तय करें तो ...आने वाला समय अवश्य ही शुभ होगा | देखिये इसी भाव पर वर्ष की अंतिम ग़ज़ल....
राहों के रंग न जी सके.....
राहों के रंग न जी सके, कोई ज़िंदगी नहीं |
यूँही चलते जाना, दोस्त कोई ज़िंदगी नहीं |
कुछ पल तो रुक के देख ले क्या-क्या है राह में ,
यूँ ही राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं |
चलने का कुछ तो अर्थ हो, कोई मुकाम हो ,
चलने के लिए चलना, कोई ज़िंदगी नहीं |
कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव, यदि राह में न हों ,
उस राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं |
ज़िंदा -दिली से, ज़िंदगी को जीना चाहिए,
तय, रोते सफ़र करना कोई ज़िंदगी नहीं |
इस दौरे भागम-भाग में, सिज़दे में प्यार के,
कुछ पल झुके तो, इससे बढ़कर बंदगी नहीं |
कुछ पल ठहर, हर मोड़ पर, खुशियाँ तू ढूंढ ले,
उन पल से बढ़कर श्याम' कोई ज़िंदगी नहीं ||
राहों के रंग न जी सके.....
राहों के रंग न जी सके, कोई ज़िंदगी नहीं |
यूँही चलते जाना, दोस्त कोई ज़िंदगी नहीं |
कुछ पल तो रुक के देख ले क्या-क्या है राह में ,
यूँ ही राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं |
चलने का कुछ तो अर्थ हो, कोई मुकाम हो ,
चलने के लिए चलना, कोई ज़िंदगी नहीं |
कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव, यदि राह में न हों ,
उस राह चलते जाना, कोई ज़िंदगी नहीं |
ज़िंदा -दिली से, ज़िंदगी को जीना चाहिए,
तय, रोते सफ़र करना कोई ज़िंदगी नहीं |
इस दौरे भागम-भाग में, सिज़दे में प्यार के,
कुछ पल झुके तो, इससे बढ़कर बंदगी नहीं |
कुछ पल ठहर, हर मोड़ पर, खुशियाँ तू ढूंढ ले,
उन पल से बढ़कर श्याम' कोई ज़िंदगी नहीं ||