....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
नव गीत पुराने कलशों में ,
मैं भर कर के ले आया हूँ |
ज्यों विविध व्यंजन नवयुग के,
पत्तल-दौनों में लाया हूँ |
हैं भाव नए गीतों के पर,
हैं शब्द-छंद प्राचीन विविध |
जैसे हो शुद्ध संग्रहित मधु ,
नव बोतल में भर लाया हूँ |
हो क्रान्ति नव विचारों की, हाँ -
सत्-शुचि अनुभव से अभिसिंचित |
कह सकें कि युग मंथित स्वर के,
शुचि भाव संजो कर लाया हूँ |
नव पीढ़ी अन्वित नवोन्मेष ,
स्फूर्त व नूतन भाव-तथ्य |
भावित पूर्वजों के अनुभव से,
मज्जित, सज्जित कर लाया हूँ |
युगबोध निमज्जित नहीं रहे ,
कैसी कविता, कैसी गाथा |
संचित वे भूत-भविष्य भाव,
हित वर्तमान के लाया हूँ |
नवयुग की आशाओं से युत,
निज संस्कृति के संस्कार सहित |
पग रखें प्रगति के पथ पर हम,
आशा भविष्य की लाया हूँ ||
मैं भर कर के ले आया हूँ |
ज्यों विविध व्यंजन नवयुग के,
पत्तल-दौनों में लाया हूँ |
हैं भाव नए गीतों के पर,
हैं शब्द-छंद प्राचीन विविध |
जैसे हो शुद्ध संग्रहित मधु ,
नव बोतल में भर लाया हूँ |
हो क्रान्ति नव विचारों की, हाँ -
सत्-शुचि अनुभव से अभिसिंचित |
कह सकें कि युग मंथित स्वर के,
शुचि भाव संजो कर लाया हूँ |
नव पीढ़ी अन्वित नवोन्मेष ,
स्फूर्त व नूतन भाव-तथ्य |
भावित पूर्वजों के अनुभव से,
मज्जित, सज्जित कर लाया हूँ |
युगबोध निमज्जित नहीं रहे ,
कैसी कविता, कैसी गाथा |
संचित वे भूत-भविष्य भाव,
हित वर्तमान के लाया हूँ |
नवयुग की आशाओं से युत,
निज संस्कृति के संस्कार सहित |
पग रखें प्रगति के पथ पर हम,
आशा भविष्य की लाया हूँ ||