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आज विग्यान ने जीन की खोज की है कि -जिसका जैसा जीन उसकी उतनी उम्र- वाह क्या खोज है? दुनिया जाने कब से जानती है कि जिन खानदानों में पुरखे जैसी (लम्बी या कम ) उम्र के होते हैं वैसे ही उनके पीढी के बच्चे |
----बचपन में हमारे ननिहाल मे कलुआ धोबी चचा कहा करता था कि ( हम शहर के बच्चों को अक्सर वहुत सी बातों का गुरु ज्ञान देता रहता था ) बबुआ, जैसा बाप वैसा पूत , ये तो बाप-दादों के गुन बच्चों में आते ही हैं संस्कार, मन व काया में समाये रहते हैं और बोलते हैं |
---युगों पहले अथर्व वेद का ऋषि कह गया है--" त्रिते देवा अमृजतै तदैवस्त्रित एत्न्मनुश्येषु ममृजे |" मनसा, वाचा, कर्मणा से किये गए कार्यों को देव ( इन्द्रियाँ ) त्रित ( मन ,बुद्धि, अहंकार ) में रखतीं हैं | ये त्रित इन्हें मनुष्य की काया में आरोपित करते हैं । तथा----"द्वादशधा निहितं त्रितस्य पापभ्रष्टं मनुष्येन सहि |" अर्थात त्रित -मन, बुद्धि, अहंकार -का कृतित्व बारह स्थानों में --- दश इन्द्रियाँ , (मन के) चिंतन व स्वभाव---संस्कार ( जेनेटिक करेक्टर ) में आरोपित होता है; वही मनुष्य की काया में आरोपितहोता है व प्रभावी होता है |