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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

डा श्याम गुप्त के दोहे...आहार...

आहार

यम् औ नियम शरीर हित,आचार-व्यवहार।
रहे चिकित्सा-ज्ञान ही,इन सबका आधार।                      

है उपलब्ध निरोग-हित,विविध शाक आहार |
क्यों खाएं रोगी बनें,निन्दित मांसाहार|


परम अपावन प्राप्ति विधि,प्राणी बध संताप ।
बध की क्रिया देखकर,कभी न खाएं मांस।

कूड़ा-करकट खाँय हम, कुक्कुट यों बतरायं ।
क्या मज़बूरी मनुज की ,जो वे हम को खायं।

जंगल तजि गाँवों बसे, भाये शाकाहार।
नगर बसे पुनि शाक तजि, रुचै मांस आहार।

अनुमोदक,क्रय-विक्रयी,चीरे बधे पकाय ।
खायं,परोसें ये सभी,घातक पाप कमायं ।

अति आहार महान दुःख,अनाहार अति कष्ट ।
रितभुक,मितभुक,हितभुक,सदा रहें संतुष्ट ।

अन्न जो जैसा खाइए, तैसी संतति होय।
दीप भखे अंधियार को ,काजल उत्पति होय॥

जब था कौर न खाय को, भूख लगै अति जोर ।
अब छत्तिस व्यन्जन, धरे भूख लियो मुख मोर॥