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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

चार समाचार बिंदु---चार प्रश्न ---डा श्याम गुप्त .....

आज के कुछ मूल समाचारों में चार बिन्दुओं पर हम चर्चा करेंगे------

.अब सुलह सफाई कर रहे हासिम चाचा --हि हि --आखिर तब से हाशिम चाचा क्या कर रहे थे ? क्यों नहीं अब तक यह कार्य किया , शायद काफी उम्मीदों केयथार्थ भ्रम में थे |

.अयोध्या आज क्यों नहीं जगाती ---शशि शेखर हि हि --वे न जाने क्या क्या सोवियत संघ , बर्लिन की दीवार आदि का हवाला देकर अयोध्या को स्वयं निर्णायक बनने की बात कहते हैं ----क्यों जी क्यों ? क्या सिर्फ अयोध्या बासी ही राम के भक्त हैं , राम सारे हिन्दुस्तान के हैं सारे भारत का उन पर हक़ है , उनके जन्म स्थान के बारे में जानने , राय देने का हक़ है| दुनिया भर के हिन्दुओं/ भारतीयों को राय देने का हक़ है | अधिकतर धार्मिक स्थानों पर यह ही देखा गया है कि स्थानीय लोग अपने दैनिक स्वार्थ के कारण वहां स्थित देवीय स्थानों आदि पर कोई ध्यान नहीं देते , साफ़ सफाई , उन्नयन पर कोई कार्य नहीं करते |उनके बारे में समुचित ज्ञान भी उन्हें नहीं होता | बाहर से आये लोग उनके बारे में अधिक जानते हैं , वे या सरकार ही इन सबका ध्यान रखते हैं एवं आर्थिक मदद करते हैं|
------ लोग भूल जाते हैं कि सोवियत संघ या बर्लिन दीवार --राजनैतिक मसले हैं , क्रूरता, अमानवीयता के जबकि अयोध्या मसला धार्मिक मानवीय आस्था, संस्कृति का मसला है आपस में कोई तुलना नहीं |
--- लेखक जब वहां गए तो कुछ रामनामी ओढ़े युवक नारे लगारहे थे तो पुलिस ने उन्हें रोका नहीं --क्यों जी क्याउन्हें शान्ति से नारे लगाने का भी अधिकार नहीं है क्योंकि वे रामनामी ओढ़े हैं ? एक अदद फेक्ट्री का मज़दूर सिर्फ अपनी तनखा व सुविधा के लिए चिल्ला सकता है | वाह! क्या जनतंत्र है आपका |

.जिनके हौसले ने लिखी तकदीर----विदेशी यहाँ आकर अपने लोगों का अपमान करते रहें क्यों कि ये ब्रिटेन के गुलाम राष्ट्रमंडल देशों के खेल हैं | आप व्यर्थ के हौसलों ---वेट लिफ्टरों , धावकों , कूदने वालों के पदकों पर तकदीर बनाने की बात कहते रहें ----क्या इन सबसे उनकी तकदीर बन रही है , क्या उन्हें कुलीगीरी करनी है वज़न उठा कर, या मंजिलों से कूदने - दौड़ने का धंधा करना है जो तकदीर बना गयी | अरे तकदीर फूट रही है कि वे जिसप्रतिभा को किसी अच्छे काम धंधे , सामाजिक-वैज्ञानिक कार्य में लगाने की बजाय मूर्खता पूर्ण कार्य में जिन्दगी खराब कर रहे हैं |
- आनर-डिस आनर किलिंग -सांझी दुनिया की गोष्ठी --वाह क्या गोष्ठी है अंग्रेज़ी में सोचने- बोलने-लिखने -समझने वालों की ---अजी क्यों ? क्यों , देश के कितने युवा ( बड़े शहरों के अंग्रेज़ी पढ़े युवा के अलावा ) इन दोनों शब्दों का अर्थ समझते होंगे , जिनके लिए यह सन्देश है | क्योंकि मूलतः पिछड़े , ग्रामीण इलाकों में इस सन्देश की अधिक आवश्यकता है| इसे कहते है कि अज्ञान के कारण किसी अच्छे अभिप्रा: का भी कबाड़ा कर देना