....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
श्याम
स्मृति- ..असत्य की उत्पत्ति ..एवं हास्य ...
असत्य की उत्पत्ति के चार मूल कारण हैं –क्रोध,
लोभ, भय एवं हास्य | वास्तव में तो मानव का अंतःकरण असत्य कथन एवं वाचन नहीं
करना चाहता परन्तु इन चारों के आवेग में वायवीय मन बहने लगता है और सत्य छुप जाता
है |
क्रोध व लोभ तो सर्व-साधारण के लिए भी जाने-माने संज्ञेय और निषेधात्मक
अवगुण हैं; भय वस्तु-स्थितिपरक अवगुण है परन्तु हास्य
...सर्वसाधारण के संज्ञान में अवगुण नहीं समझा जाता है अतः वह सबसे अधिक असत्य दोष-उत्पत्तिकारक
है |
हास्य
व व्यंग्य के अत्यधिक प्रस्तुतीकरण से समाज में असत्य की परम्परा का विकास, प्रमाणीकरण एवं
प्रभावीकरण होता है जो विकृति उत्पन्न करता है | महत्वपूर्ण विषय भी जन- सामान्य
द्वारा ‘..अरे, यह तो यूँही मजाक की बात है’
के भाव में बिना गंभीरता से लिए अमान्य कर दिया जाता है | इसलिए इस कला का साहत्यिक-विधा के
रूप में सामान्यतः एवं बहुत अधिक प्रयोग नहीं
होना चाहिए |
इसीलिये हास्य व व्यंग्य को विदूषकता व मसखरी की कोटि में निम्न कोटि की कला व साहित्य माना जाता है |