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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

अमर्यादित पुरुष ---नव वर्ष पर विचार ...डा श्याम गुप्त.....

                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



                           अमर्यादित पुरुष

      पहले महिलायें कहा करतीं थीं- ‘घर-बच्चों के मामले में टांग न अड़ाइए आप अपना काम देखिये|’ आजकल वे कहने लगीं हैं- ‘घर के काम में भी पति को हाथ बंटाना चाहिए, बच्चे के काम में भी| क्यों? क्योंकि अब हम भी तो आदमी के तमाम कामों में हाथ बंटा रही हैं, कमाने में भी |
      क्या वास्तव में ऐसा है ? नहीं ...महिलायें आजकल पढी-लिखी होने के कारण, कुछ महिलाओं के, जो अधिकाँश असंतुष्ट व ठोकर खाई हुई होती हैं एवं कुछ छद्म-महिलावादी सेक्यूलर पुरुषों द्वारा यह सोच कि महिलायें इसी उधेड़बुन में लगी रहें ताकि कुछ ऊंचा न सोच सकें, पुरुषवादी समाज के छद्म व भ्रामक नारे को उछालने के कारण ऐसा कहने लगीं हैं| अन्यथा प्रायः महिलाए अपने स्वयं के और अधिक सुख-संतोष, खर्च करने, शानो-शौकत व प्रदर्शन हेतु कार्य करती हैं| वे घर के कार्य को हीन व अनावश्यक समझने के कारण एवं गृहकार्य हेतु कठिन परिश्रम से बचने हेतु भी पुरुष से यह आशा करती हैं| आजकल बाहर खाना खाने, घूमने-फिरने में समय बिताने, खर्चीले फैशन भी इस बदलाव का एक कारण है|
      परिणाम है कि पुरुष चाय बनाने, बच्चे खिलाने, घर-गृहस्थी के महिलाओं के कार्यों में सिमट रहा है | वह न आफिस का कार्य सुचारू रूप से कर पाने में सक्षम हो पारहा है न उच्च वैचारिक सोच, स्वाध्याय,पठन-पाठन हेतु समय दे पारहा है|  टीवी, कम्प्युटर, इंटरनेट आदि रूपी बुद्धू बक्सा का नया रूप अब ये सारे गृहकार्य भी हो चले हैं | यह स्थिति पुरुष को सामाजिकता व अन्य उच्च वैचारिक क्षमता से दूर ले जारही हैं| सिर्फ भौतिकता व शारीरिक सुख का महत्व हमारे पुरुषों के, युवाओ के मन में घर बना रहा है|
       दुष्परिणाम सामने है ...समाज में स्त्री-पुरुष स्वच्छंदता, वैचारिक शून्यता, अति-भौतिकता, द्वंद्व, अत्यधिक कमाने के लिए चूहा-दौड़, बढ़ती  हुई अश्लीलता ...के परिणामी तत्व---अमर्यादाशील पुरुष, संतति, जो हम प्रतिदिन समाचारों में देखते रहते हैं...यौन अपराध, नहीं कम हुआ अपराधों का ग्राफ, आदि |   
क्यों नर एसा होगया यह भी तो तू सोच ,
क्यों है एसी  होगयी  उसकी  गर्हित सोच |
उसकी गर्हित सोच, भटक क्यों गया दिशा से |
पुरुष सीखता राह, सखी, भगिनी, माता से |
नारी विविध लालसाओं में खुद भटकी यों |
मिलकर सोचें आज होगया एसा नर क्यों |
          दोष किसका है -----मीडिया का जो कि आये दिन अपने चैनल्स पर दुनिया भर की गंदगी परोसकर युवाओ के मन को उकसाता है   इस सूचना क्रांति का जिसका का दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकता रहता है  | वो सारे विज्ञापन जो टीवी में आये दिन क्या युवाओं को और उनके मन को नहीं उकसाते हैं| फिल्मो का जहां औरतो का चरित्र जिस तरह से जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है, क्या वो युवा पीढ़ी को इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे| हमारे गुम होते संस्कारों का जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे|
       हम माता-पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं दे पा रहे है| युवाओ का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक भोग की वस्तु ही समझ रहे है |
       कहाँ गलत हो रहा है, किस बात की कुंठा है, तन का महत्व कैसे हमारे पुरुषों के, युवाओ के मन में गलत घर बना रहा है, क्या माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम है ?  क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है ?  कुछ तो गलत हो रहा है, हमारी सम्पूर्ण सोच में | क्या हम सभी को; एक मज़बूत स्वच्छ व सोच की पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं है |
     नववर्ष पर इस पुनर्विचार की आवश्यकता है ...सोचियेगा अवश्य...|


मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

बच्चों द्वारा स्वच्छता अभियान , स्वच्छता सेवा एवं प्रेरणा अभियान ... डा श्याम गुप्त....

                                        ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
बच्चों द्वारा स्वच्छता अभियान , स्वच्छता सेवा एवं प्रेरणा अभियान .....

                     आप काज महा काज ....यदि सारे अभियान स्वयं से प्रारम्भ किये जायं , घर से प्रारम्भ किये जायं तभी उन्हें सही दिशा एवं उचित क्रियान्वन मिल सकता है देखिये निम्न चित्रों को बच्चे शायद यही सन्देश दे रहे हैंजो हम बड़े भूल चुके हैं | --आराध्य जन्म दिवस पार्टी...टावर -६ ..प्रेस्टिज शान्तिनिकेतन, बंगलुरु, कर्नाटक, भारत ....




आराध्य व सांचे का झाडू अभियान

आराध्य व साँची --पार्टी में स्वच्छता सेवा अभियान - कृपया सब इस में डालिए ..

आराध्य व साँची --पार्टी में स्वच्छता सेवा अभियान
ये क्या बेकार का खेल खेल रहे हो तुम लोग

सफाई सेवा ...!!   ओह! ऐसा क्या ...
ओके , हम भी साथ हैं ......




बुधवार, 3 दिसंबर 2014

क्या हम बच्चों से पूछते हैं कि हमें कहाँ व किस विभाग में नौकरी करनी चाहिए...डा श्याम गुप्त

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
 क्या हम जूनियर कक्षाओं के बच्चों से पूछते हैं कि हमें कहाँ व किस विभाग में नौकरी करनी चाहिए







क्या हम जूनियर कक्षाओं के बच्चों  से पूछते हैं कि हमें कहाँ व किस विभाग में नौकरी करनी चाहिए, केला या सेव खाना चाहिए , किस स्त्री/पुरुष  से मित्रता करनी चाहिए दिल्ली में या लखनऊ/बंगलौर में रहना चाहिए  ??  यदि नहीं तो आखिर शिक्षा जैसे दूरगामी प्रभाव वाले महत्वपूर्ण विषय पर ऐसे  मूर्खतापूर्ण  सर्वे का क्या महत्त्व ….यदि माता-पिता ही यह जानते कि कौन सी भाषा व किस माध्यम से पढ़ाना चाहिए ..तो विद्वान् शिक्षाशास्त्री , समाजशास्त्री, नीति-निर्धारक , शासन-प्रशासन , राज्य की क्या आवश्यकता है |
किसी ने अपने ऊपर चित्रित आलेख -language of gods needs revival but not to made compulsory ….में सही तो लिखा है की सारे संस्कृति विद्वान् विदेशी हैं …..सच ही तो है यदि बचपन से ही संस्कृत नहीं पढाई जायेगी तो देश में संस्कृत विद्वान् क्यों उत्पन्न होंगे अंग्रेज़ी  /योरोपीय भाषाएँ पढ़ाने पर अंग्रेज़ी-जर्मन-फ्रेंच विद्वान् ही उत्पन्न होंगे जैसा आज होरहा है ….क्या हम मूर्खता की सारी हदें पार नहीं कर रहे …….हमें सोचना चाहिए ….|