....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
श्याम स्मृति -१----कहानी की कहानी व भावी पीढी ----
पहले वेद-उपनिषद् आदि में घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था, पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथारूप में लिखा जाने लगा, ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके | आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म हुआ जो सत्य-व वास्तविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि, जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं | बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प, फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति-वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
परन्तु आज क्या लिखा-दिखाया जारहा है, पूर्ण असत्य कथा-कहानी, 'इस सीरियल -कहानी के पात्र, घटनाएँ, किसी भी देश-काल, समाज, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते' अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी;जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है हुआ ही नहीं, कहीं मानव-मात्र से संवंधित ही नहीं, तो कहानी किस बात की |
क्या-क्या मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम, हमारा साहित्य, साहित्यकार व समाज ..... कैसे सत्य को पहचाने हमारी भावी पीढी |
श्याम स्मृति - २ --आधुनिकता व प्रगतिशीलता ....
आधआधुनिकता व प्रगतिशीलता .... सिर्फ समयानुसार ...भौतिक बदलाव --ओडना-पहनना, खाने-पीने के तरीके अर्थात उठने-बैठने के भौतिक-सुख रूपी सुविधाओं के नवीन-ढंगों को ही नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे तो सदा ही बदलते रहेंगे,अपितु समाज व मानवता के उत्थान हेतु चिंतन व सोच के नए तरीकों, आयामों को ही कहा जा सकता है जो पुरा-ज्ञान से समन्वित होते हों ....संस्कृति ज्ञान, दर्शन , कला, धर्म आदि के मूल तथ्य तो शाश्वत हैं ...सर्वदा वही रहते हैं सदैव प्रकाश देते रहे हैं और आज भी हमें प्रकाश दे रहे हैं | जो मील के पत्थर बनते हैं उनसे आगे नए पत्थर तो बनाए जा सकते हैं परन्तु उन मील के पत्थरों को हटाया नहीं जासकता , हटाने को प्रगति नहीं कहा जा सकता ...कृष्ण ने गीता तो कही परन्तु यह भी कहा कि वेदों में मैं सामवेद हूँ....यही प्रगतिशीलता व आधुनिकता है ...|
श्याम स्मृति -१----कहानी की कहानी व भावी पीढी ----
पहले वेद-उपनिषद् आदि में घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था, पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथारूप में लिखा जाने लगा, ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके | आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म हुआ जो सत्य-व वास्तविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि, जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं | बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प, फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति-वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
परन्तु आज क्या लिखा-दिखाया जारहा है, पूर्ण असत्य कथा-कहानी, 'इस सीरियल -कहानी के पात्र, घटनाएँ, किसी भी देश-काल, समाज, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते' अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी;जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है हुआ ही नहीं, कहीं मानव-मात्र से संवंधित ही नहीं, तो कहानी किस बात की |
क्या-क्या मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम, हमारा साहित्य, साहित्यकार व समाज ..... कैसे सत्य को पहचाने हमारी भावी पीढी |
श्याम स्मृति - २ --आधुनिकता व प्रगतिशीलता ....
आधआधुनिकता व प्रगतिशीलता .... सिर्फ समयानुसार ...भौतिक बदलाव --ओडना-पहनना, खाने-पीने के तरीके अर्थात उठने-बैठने के भौतिक-सुख रूपी सुविधाओं के नवीन-ढंगों को ही नहीं कहा जाना चाहिए क्योंकि वे तो सदा ही बदलते रहेंगे,अपितु समाज व मानवता के उत्थान हेतु चिंतन व सोच के नए तरीकों, आयामों को ही कहा जा सकता है जो पुरा-ज्ञान से समन्वित होते हों ....संस्कृति ज्ञान, दर्शन , कला, धर्म आदि के मूल तथ्य तो शाश्वत हैं ...सर्वदा वही रहते हैं सदैव प्रकाश देते रहे हैं और आज भी हमें प्रकाश दे रहे हैं | जो मील के पत्थर बनते हैं उनसे आगे नए पत्थर तो बनाए जा सकते हैं परन्तु उन मील के पत्थरों को हटाया नहीं जासकता , हटाने को प्रगति नहीं कहा जा सकता ...कृष्ण ने गीता तो कही परन्तु यह भी कहा कि वेदों में मैं सामवेद हूँ....यही प्रगतिशीलता व आधुनिकता है ...|