छत पर, वरांडे मैं,
या ,जीने की ऊपर वाली सीढीपर,
खेलते हुए ,या लड्ते हुए ,
तुमने लिया था सदैव ,
मेरा ही पक्ष ।
मेरे न खेलने पर,
तुम्हारा भी वाक् -आउट ,
मेरे झगढ़नेपर,
पीट देने पर भी -
तुम्हारा मुस्कुराना ;
एक दूसरे से नाराज़ होने पर ,
बार -बार मनाना,
जीवन कितना था सुहाना ;
हे सखि ! जीवन कितना था सुहाना ।
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
मंगलवार, 20 जनवरी 2009
चौथा स्तम्भ हिन्दुस्तान देनिक १९.१.२००९
चौथा स्तम्भ --बंदिशेंकभी प्रगति नहीं लातीं।
--वास्तव मैं तो बंदिशें ही प्रगति के द्वार खोलतीं हैं। सोचिये यदि गणित की, विज्ञान की, संगीत की ,
यातायात की तथा समाज की बंदिशें न हों तो उन्नति केसे होगी? समाज का डर न हो तो हर व्यक्ति ही अपनी- अपनी ढफली गायेगा , नंगा नाचेगा , २प्लस २ =५ कहेगा ,सरगम को मरगम कहेगा ???
--वास्तव मैं तो बंदिशें ही प्रगति के द्वार खोलतीं हैं। सोचिये यदि गणित की, विज्ञान की, संगीत की ,
यातायात की तथा समाज की बंदिशें न हों तो उन्नति केसे होगी? समाज का डर न हो तो हर व्यक्ति ही अपनी- अपनी ढफली गायेगा , नंगा नाचेगा , २प्लस २ =५ कहेगा ,सरगम को मरगम कहेगा ???
विश्व मैं वह कौन सीमाहीन है ,
हो न जिसका छोर सीमा मैं बंधा ?
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