....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ..
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या
बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल,
हर कण कण में होती रहती है,
एक सतत क्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान-ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-एकोहं...(
इच्छा) व सृष्टि
(क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है,
जिससे स्रिष्टि
व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचित महाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा में व्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्ध षटपदी अगीत छंद' -में निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...
सृष्टि - अगीत महाकाव्य--पन्चम सर्ग--अशान्ति खन्ड..कुल ३७ छंद --.इस सबसे क्लिष्ट व जटिल सर्ग में साम्य अंतरिक्ष में ॐ की प्रतिध्वनिसे जो हलचल हुई उससे व्यक्त मूल तत्व के कणों में गति से किस तरह से मूल ऊर्जा व अन्य ऊर्जाओं की व अन्य कण-प्रतिकण, फिर विभिन्न पदार्थ, भाव तत्व, शक्तियां , समय , अंतरिक्ष के पिंड आदि की उत्पत्ति हुई, इसका भौतिक, रासायनिक, आणुविक जटिल व जटिलतम प्रक्रियाओं का वर्णन का वैदिक व्याख्या व आधुनिक विज्ञान से तादाम्यीकरण किया गया है ।
---यहाँ हम इसके प्रथम भाग- छंद १ से १३ तक....का वर्णन करेंगे कि किस तरह से मूल आदि ऊर्जा, मूल कण, न्यूक्लियर ऊर्जा, सौर ऊर्जा,, परमाणु संरचना,धनात्मक, ऋणात्मक आवेशित कणों का संयोग, प्रतिकण, जैविक-अजैविक पदार्थ,प्रकाश आदि के विभिन्न पूर्व परमाणु कण आदि बने ....
१-
परम व्योम की इस अशांति१ से ,
द्वंद्व भाव कण कण में उभरा।
हलचल से गति मिली कणों को,
अपः तत्व में साम्य जगत के।
गति से आहतनाद, फिर बने,
शब्द, वायु ,ऊर्जा ,जल और मन॥
२-
जुः रूपी उस महाकाश में,
यतः रूप गतिशील कणों का;
सूक्ष्म भाव जो मूल अदिति२ का
वायु नाम से प्रवाहमान था।
इन तीनों के मध्य परस्पर,
विद्युत् विभव, अग्नि कहलाया॥
३-
वे प्रथम अजायत अग्नि देव,
गतिमान कणों के संघर्षण से;
ऊर्जा रूप में हुए अवतरित,
शक्ति रूप जो रहते हैं, प्रकृति -
देव ,जड़-जंगम के कण-कण में;
नाभि-रूप हैं सृष्टि-यज्ञ३ के॥
४-
क्रियाशील वे सूक्ष्म आदि कण ,
नाम अंगिरा, अग्निपुत्र थे।
इंद्र नाम संगठक शक्ति से,
रासायनिक संयोग रूप का ,
चेतन अग्नि की उपस्थिति में
किया यज्ञ, परमाणु कण बने॥
५-
परमाणु कणों स्थित ऊर्जा४ में,
भाव नहीं था सतत-सृजन का।
नाभानेदिष्ट ऋषि नाम रूप से,
ज्ञान नाभि-ऊर्जा५ का पाया।
सतत सृजन का भाव लिए तब,
मिला अज़स्र स्रोत ऊर्जा का।
६-
सतत संयोजन और विखंडन,
रूप नाभिकीय ऊर्जा का जो ;
अंतरिक्ष में सौर-शक्ति बन,
नाम अदिति से दिति६ का पाया।
प्रकट रूप है जो पदार्थ की,
पूर्ण कार्य-रूपी ऊर्ज़ा का॥
७-
उस चेतन की ऊर्जा ही है,
मूल स्रोत नाभिक ऊर्जा का;
एक इकाई नाभिक ऊर्जा,
सौर-शक्ति७ से सहस गुना है।
नाभानेदिष्ट ऋषि८ एक गाय९ दे ,
सहस चाहते तभी सूर्य से॥
८-
गौशाला रूपी परमाणु कक्ष ,
रिक्त१० कुछ कणों से जब होता।
इन्द्र, संयोजक शक्ति, सदा ही,
नए कणों रूपी गायों को,
लाकर भर देते गौशाला;
बनाते जाते नए सृष्टि-कण॥
९-
यमी रूप ११ अपभाव भरे कण ,
योग चाहते सजातीय से ।
यम है नियामक शक्ति सृष्टि की,
अनुशासक हैं जड़-जंगम के।
कह देते हम घटक एक से,
विजातीय से मिलो यमी तुम॥
१०-
सम रूपी घटकों के योग से,
प्राप्त तत्व भी वही रहेगा;
विजातीय दो घटक मिलें जब,
नूतन तत्व प्राप्त तब होगा।
अनुशासक यम के नियमन से,
नूतन विविध पदार्थ बन गए॥
११-
प्रतिकण१२ जो हैं स्वयं संगठित,
अति कठोर रासायनिक बंधन से;
रूप राक्षस , विघ्न डालते,
सृष्टि-यज्ञ , रूपी क्रिया में ।
इन्द्र, बज्र१३ से नाश सभी का,
करते रहते, यज्ञ -पूर्ति -हित॥
१२-
अग्नि-पुत्र ,अंगिरा रूप जो,
परमाणु-पूर्व के कण-प्रवाह थे।
रच , यज्ञों१४ की नई श्रृंखला,
इन्द्र शक्ति१५ की कृपा दृष्टि से;
किये उपस्थित नए नए नित ,
विविध ऊर्जा और भूत कण१६ ॥
१३-
सतरंगे अर्यमा, प्रकाश कण,
सप्त स्वरों के वाणी स्वर-कण।
अक्रिय अष्ट बंधन के जैविक१७ ,
आठ वसु और सक्रिय अजैविक-
सात कणों युत सप्तहोत्र१८ , यों,
सभी रूपकण१९ बने सृष्टि के॥ .........पंचम सर्ग..अशांति खंड.आगे ...क्रमश: ....
( कुंजिका....१=हलचल, प्रक्रिया , क्रिया-प्रतिक्रया ... मूल व्यक्त प्रकृति की साम्य अवस्था भंग होने पर हुई हलचल, २=अदिति- अविभक्त,अखंड मूल स्थिर ऊर्जा, आदि ऊर्जा ....३=सृष्टि सृजन की गूढ़ तात्विक क्रियाएं , ४=परमाणु कणों में स्थित मूल स्थितिक ऊर्जा , ५=नाभिक ऊर्जा, न्यूक्लियर इनर्जी , परमाणु के नाभिक में स्थित अनंत ऊर्जा स्रोत ६=दिति, खंडित, विभक्त, व्यक्त मूल कार्यकारी ऊर्जा ( विखंडन-संयोजन से प्राप्त क्रियाशील ऊर्जा) , ७= सूर्य की सोलर ऊर्जा , ८= नाभिकीय ऊर्जा का ज्ञाता ऋषि , ९=ऊर्जा कण की इकाई , १०=गौशाला रूपी परमाणुओं के वलय में नाभिक के चारों और घूमते हुए इलेक्ट्रोंस की कमी जिससे परमाणु ( व द्रव्य) असंत्रप्त, अस्थिर रहता है, अति क्रियाशील ), ११ = यम-यमी आख्यान ( ऋग्वेद)--यम के संतानें( नियम से बने कण) -यम की बहन यमी यम से समागम करना चाहती है परन्तु यम साफ़ इनकार करते हैं कि किसी अन्य जाति (असुर आदि) से संयोग करो हम तो भाई बहन हैं । ---तात्विक ,रासायनिक प्रक्रिया का सूत्र रूप --अर्थ में सम रूप कणों से ( ऋण -ऋण , धन धन कणों के संयोग से वही तत्व मिलेगा और नवीन पदार्थ नहीं बनेंगे , अतः विजातीय ( असमान , असुर ) पदार्थ या ऊर्जा कणों का आपस में रासायनिक संयोग होना चाहिए जिससे नए नए पदार्थ बनने लगें। यम नियामक शक्ति है और सृष्टि के एक निश्चित नियम के अनुसार ही पदार्थ बनाते हैं। ,,१२=प्रतिकण, प्रत्येक कण का एक प्रति कण , एंटी पार्टीकल ,-रासायनिक प्रक्रिया में बाधक तत्व १३=इन्द्र का बज्र, कठोर रासायनिक बंधनों को तोड़ने वाला उत्प्रेरक तत्व , १४= नयी नयी रासायनिक, भौतिक, इलेक्ट्रोनिक प्रक्रियाएं , १५= संगठन व विखंडन शक्ति , १६= पदार्थ कण , १७=आठ इलेक्ट्रोन वाले संतृप्त सतही जैविक(ओरगेनिक ) परमाणु व पदार्थ , १८= अपनी परमाणु कक्षा में सात इलेक्ट्रोन वाले असंत्रप्त क्रियाशील अजैविक (इनोर्गेनिक), १९= व्यक्त द्रश्य पदार्थ के कण ....)
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचित महाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा में व्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्ध षटपदी अगीत छंद' -में निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है).... ...... रचयिता --डा श्याम गुप्त ...
सृष्टि - अगीत महाकाव्य--पन्चम सर्ग--अशान्ति खन्ड..कुल ३७ छंद --.इस सबसे क्लिष्ट व जटिल सर्ग में साम्य अंतरिक्ष में ॐ की प्रतिध्वनिसे जो हलचल हुई उससे व्यक्त मूल तत्व के कणों में गति से किस तरह से मूल ऊर्जा व अन्य ऊर्जाओं की व अन्य कण-प्रतिकण, फिर विभिन्न पदार्थ, भाव तत्व, शक्तियां , समय , अंतरिक्ष के पिंड आदि की उत्पत्ति हुई, इसका भौतिक, रासायनिक, आणुविक जटिल व जटिलतम प्रक्रियाओं का वर्णन का वैदिक व्याख्या व आधुनिक विज्ञान से तादाम्यीकरण किया गया है ।
---यहाँ हम इसके प्रथम भाग- छंद १ से १३ तक....का वर्णन करेंगे कि किस तरह से मूल आदि ऊर्जा, मूल कण, न्यूक्लियर ऊर्जा, सौर ऊर्जा,, परमाणु संरचना,धनात्मक, ऋणात्मक आवेशित कणों का संयोग, प्रतिकण, जैविक-अजैविक पदार्थ,प्रकाश आदि के विभिन्न पूर्व परमाणु कण आदि बने ....
१-
परम व्योम की इस अशांति१ से ,
द्वंद्व भाव कण कण में उभरा।
हलचल से गति मिली कणों को,
अपः तत्व में साम्य जगत के।
गति से आहतनाद, फिर बने,
शब्द, वायु ,ऊर्जा ,जल और मन॥
२-
जुः रूपी उस महाकाश में,
यतः रूप गतिशील कणों का;
सूक्ष्म भाव जो मूल अदिति२ का
वायु नाम से प्रवाहमान था।
इन तीनों के मध्य परस्पर,
विद्युत् विभव, अग्नि कहलाया॥
३-
वे प्रथम अजायत अग्नि देव,
गतिमान कणों के संघर्षण से;
ऊर्जा रूप में हुए अवतरित,
शक्ति रूप जो रहते हैं, प्रकृति -
देव ,जड़-जंगम के कण-कण में;
नाभि-रूप हैं सृष्टि-यज्ञ३ के॥
४-
क्रियाशील वे सूक्ष्म आदि कण ,
नाम अंगिरा, अग्निपुत्र थे।
इंद्र नाम संगठक शक्ति से,
रासायनिक संयोग रूप का ,
चेतन अग्नि की उपस्थिति में
किया यज्ञ, परमाणु कण बने॥
५-
परमाणु कणों स्थित ऊर्जा४ में,
भाव नहीं था सतत-सृजन का।
नाभानेदिष्ट ऋषि नाम रूप से,
ज्ञान नाभि-ऊर्जा५ का पाया।
सतत सृजन का भाव लिए तब,
मिला अज़स्र स्रोत ऊर्जा का।
६-
सतत संयोजन और विखंडन,
रूप नाभिकीय ऊर्जा का जो ;
अंतरिक्ष में सौर-शक्ति बन,
नाम अदिति से दिति६ का पाया।
प्रकट रूप है जो पदार्थ की,
पूर्ण कार्य-रूपी ऊर्ज़ा का॥
७-
उस चेतन की ऊर्जा ही है,
मूल स्रोत नाभिक ऊर्जा का;
एक इकाई नाभिक ऊर्जा,
सौर-शक्ति७ से सहस गुना है।
नाभानेदिष्ट ऋषि८ एक गाय९ दे ,
सहस चाहते तभी सूर्य से॥
८-
गौशाला रूपी परमाणु कक्ष ,
रिक्त१० कुछ कणों से जब होता।
इन्द्र, संयोजक शक्ति, सदा ही,
नए कणों रूपी गायों को,
लाकर भर देते गौशाला;
बनाते जाते नए सृष्टि-कण॥
९-
यमी रूप ११ अपभाव भरे कण ,
योग चाहते सजातीय से ।
यम है नियामक शक्ति सृष्टि की,
अनुशासक हैं जड़-जंगम के।
कह देते हम घटक एक से,
विजातीय से मिलो यमी तुम॥
१०-
सम रूपी घटकों के योग से,
प्राप्त तत्व भी वही रहेगा;
विजातीय दो घटक मिलें जब,
नूतन तत्व प्राप्त तब होगा।
अनुशासक यम के नियमन से,
नूतन विविध पदार्थ बन गए॥
११-
प्रतिकण१२ जो हैं स्वयं संगठित,
अति कठोर रासायनिक बंधन से;
रूप राक्षस , विघ्न डालते,
सृष्टि-यज्ञ , रूपी क्रिया में ।
इन्द्र, बज्र१३ से नाश सभी का,
करते रहते, यज्ञ -पूर्ति -हित॥
१२-
अग्नि-पुत्र ,अंगिरा रूप जो,
परमाणु-पूर्व के कण-प्रवाह थे।
रच , यज्ञों१४ की नई श्रृंखला,
इन्द्र शक्ति१५ की कृपा दृष्टि से;
किये उपस्थित नए नए नित ,
विविध ऊर्जा और भूत कण१६ ॥
१३-
सतरंगे अर्यमा, प्रकाश कण,
सप्त स्वरों के वाणी स्वर-कण।
अक्रिय अष्ट बंधन के जैविक१७ ,
आठ वसु और सक्रिय अजैविक-
सात कणों युत सप्तहोत्र१८ , यों,
सभी रूपकण१९ बने सृष्टि के॥ .........पंचम सर्ग..अशांति खंड.आगे ...क्रमश: ....
( कुंजिका....१=हलचल, प्रक्रिया , क्रिया-प्रतिक्रया ... मूल व्यक्त प्रकृति की साम्य अवस्था भंग होने पर हुई हलचल, २=अदिति- अविभक्त,अखंड मूल स्थिर ऊर्जा, आदि ऊर्जा ....३=सृष्टि सृजन की गूढ़ तात्विक क्रियाएं , ४=परमाणु कणों में स्थित मूल स्थितिक ऊर्जा , ५=नाभिक ऊर्जा, न्यूक्लियर इनर्जी , परमाणु के नाभिक में स्थित अनंत ऊर्जा स्रोत ६=दिति, खंडित, विभक्त, व्यक्त मूल कार्यकारी ऊर्जा ( विखंडन-संयोजन से प्राप्त क्रियाशील ऊर्जा) , ७= सूर्य की सोलर ऊर्जा , ८= नाभिकीय ऊर्जा का ज्ञाता ऋषि , ९=ऊर्जा कण की इकाई , १०=गौशाला रूपी परमाणुओं के वलय में नाभिक के चारों और घूमते हुए इलेक्ट्रोंस की कमी जिससे परमाणु ( व द्रव्य) असंत्रप्त, अस्थिर रहता है, अति क्रियाशील ), ११ = यम-यमी आख्यान ( ऋग्वेद)--यम के संतानें( नियम से बने कण) -यम की बहन यमी यम से समागम करना चाहती है परन्तु यम साफ़ इनकार करते हैं कि किसी अन्य जाति (असुर आदि) से संयोग करो हम तो भाई बहन हैं । ---तात्विक ,रासायनिक प्रक्रिया का सूत्र रूप --अर्थ में सम रूप कणों से ( ऋण -ऋण , धन धन कणों के संयोग से वही तत्व मिलेगा और नवीन पदार्थ नहीं बनेंगे , अतः विजातीय ( असमान , असुर ) पदार्थ या ऊर्जा कणों का आपस में रासायनिक संयोग होना चाहिए जिससे नए नए पदार्थ बनने लगें। यम नियामक शक्ति है और सृष्टि के एक निश्चित नियम के अनुसार ही पदार्थ बनाते हैं। ,,१२=प्रतिकण, प्रत्येक कण का एक प्रति कण , एंटी पार्टीकल ,-रासायनिक प्रक्रिया में बाधक तत्व १३=इन्द्र का बज्र, कठोर रासायनिक बंधनों को तोड़ने वाला उत्प्रेरक तत्व , १४= नयी नयी रासायनिक, भौतिक, इलेक्ट्रोनिक प्रक्रियाएं , १५= संगठन व विखंडन शक्ति , १६= पदार्थ कण , १७=आठ इलेक्ट्रोन वाले संतृप्त सतही जैविक(ओरगेनिक ) परमाणु व पदार्थ , १८= अपनी परमाणु कक्षा में सात इलेक्ट्रोन वाले असंत्रप्त क्रियाशील अजैविक (इनोर्गेनिक), १९= व्यक्त द्रश्य पदार्थ के कण ....)
क्रमशः --पंचम सर्ग--भाग दो...अगली पोस्ट में ....