....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- श्रीमती सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है भाव अरपन छः ...अतुकांत रचनायें ...सुमन-४. .. इतिहास और प्रगति..
हम काहे इतिहास की ओर
देखें ,
पुरानन कों सुनें और
सुनावें,
काहे न आगें ही आगें कदम बढावें |
इतिहास पढिवे और सोचिबे ते तौ ,
पुरातन पंथी रही
जावेंगे |
हमारे प्रगतिवादी सखा
-यही कहत रहत हैं ;
जो प्रगतिवाद की
धार में ही
बहत रहत
हैं |
हमनै पूछौ-
जे प्रगति का होवै है ?
'जो आजु तक की गति है,
वाते आगें का नयी प्राप्ति है ,
प्रति-गति है |'
जो इतिहास कों नाहिं जानि पावैंगे
अबलौं कौ अच्छौ बुरौ अनुभव
नाहिं जानि पावैंगे,
तौ आगें कैसें सही कदम बढावैंगे
अच्छौ बुरौ कैसें समझि पावैंगे,
का किंकर्तव्यविमूढ़ नाहिं रहि जावेंगे |
जड़न कौं छोड़ पत्ता सींचन ते तौ ,
पेड़ हरौ नाहिं होवै है |
बड़ेंन के अनुभव छोडि, कोऊ समाज-
प्रगति के पथ पै खड़ा नाहिं होवै है |
यदि बाराखडी ही भूलि जावेंगे
तौ नए नए ग्रन्थ कैसें रचि पावैंगे |
जो एक दुई तीनि ही नाहिं याद रहै
तौ नित नयी खोजकैसें करि पावैंगे |
वाही भूलि कौं बेरि -बेरि दुहरावैंगे|
प्रगति की राह पै
कैसें खड़े होय पावैंगे ||
जो इतिहास कों नाहिं जानि पावैंगे
अबलौं कौ अच्छौ बुरौ अनुभव
नाहिं जानि पावैंगे,
तौ आगें कैसें सही कदम बढावैंगे
अच्छौ बुरौ कैसें समझि पावैंगे,
का किंकर्तव्यविमूढ़ नाहिं रहि जावेंगे |
जड़न कौं छोड़ पत्ता सींचन ते तौ ,
पेड़ हरौ नाहिं होवै है |
बड़ेंन के अनुभव छोडि, कोऊ समाज-
प्रगति के पथ पै खड़ा नाहिं होवै है |
यदि बाराखडी ही भूलि जावेंगे
तौ नए नए ग्रन्थ कैसें रचि पावैंगे |
जो एक दुई तीनि ही नाहिं याद रहै
तौ नित नयी खोजकैसें करि पावैंगे |
वाही भूलि कौं बेरि -बेरि दुहरावैंगे|
प्रगति की राह पै
कैसें खड़े होय पावैंगे ||