....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
( पितृ दिवस पर----पिता की सुहानी छत्र -छाया जीवन
भर उम्र के, जीवन के प्रत्येक मोड़ पर, हमारा मार्ग दर्शन करती
है....प्रेरणा देती है और जीवन को रस-सिक्त व गतिमय रखती है और उस अनुभवों के खजाने
की छत्र -छाया में हम न जाने कितने विविध ...ज्ञान-भाव-कर्म युक्त जीवन जी लेते
हैं.....प्रस्तुत है ...एक रचना... गीत की एक नवीन -रचना-विधा -कृति में ..जिसे मैं ....'कारण कार्य व प्रभाव गीत' कहता हूँ ....इसमें कथ्य -विशेष का विभिन्न भावों
से... कारण ,उस पर कार्य व उसका प्रभाव
वर्णित किया जाता है ....)
पिता
की छत्र-छाया वो ,
हमारे सिर पै होती है |
उंगली पकड़ हाथ में चलना ,
खेलना-खाना, सुनी कहानी |
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कितने
जीवन मिल जाते हैं ||
वो अनुशासन की जंजीरें ,
सुहाने खट्टे-मीठे दिन |
ऊब कर तानाशाही से,
रूठ
जाना औ हठ करना |
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लाड
प्यार श्रृद्धा के पल छिन,
कितने
जीवन मिल जाते हैं ||
सिर पर
वरद-हस्त होता है ,
नव-
जीवन की राह सुझाने |
मग की कंटकीर्ण उलझन में,
अनुभव
ज्ञान का संबल मिलता|
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गौरव
आदर भक्ति-भाव युत,
कितने
जीवन मिल जाते हैं ||
स्मृतियाँ बीते पल-छिन की,
मानस
में बिम्वित होती हैं |
कथा उदाहरण कथ्यों -तथ्यों ,
और
जीवन के आदर्शों की |
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चलचित्रों
की मणिमाला में ,
कितने
जीवन मिल जाते हैं ||
श्रृद्धा -भक्ति के ज्ञान-भाव जब ,
तन-मन
में रच-बस जाते हैं |
जग के द्वंदों को सुलझाने,
कितने
भाव स्फुरित
रहते |
ज्ञान-कर्म
और नीति-धर्म युत,
कितने जीवन मिल जाते हैं ।।