. ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
वैदिक साहित्य में आधुनिक विज्ञान के बहुत से तथ्य सूत्र रूप में मौजूद हैं , कुछ अन्य तथ्यों को यहाँ रखा जारहा है.....
वैदिक साहित्य में आधुनिक विज्ञान के बहुत से तथ्य सूत्र रूप में मौजूद हैं , कुछ अन्य तथ्यों को यहाँ रखा जारहा है.....
प्रकाश के सात रन्ग.....ऋग्वेद १/४/५२५--- में सूर्य की उपासना करते हुए ऋषि कहता है.....
"सप्त त्वा हरितो रथो वहन्ति देव सूर्यः | शोचिष्केशं विचक्षण: ||" ----हे सर्व दृष्टा सूर्यदेव ! आप तेजस्वी ज्वालाओं से युक्त दिव्यता धारण करते हुए सप्तवर्णी किरणों रूपी अश्वों के रथ पर सुशोभित होते हैं |
ऊर्ज़ा के रूप व उपयोगों का वर्णन----- ऋग्वेद 1/66/723 के अनुसार -----
"य ई चिकेत गुहा भवन्तमा य: ससाद धाराम्रतस्य।वि ये च्रितन्त्र्प्रत्या सपन्त आदिद्वसूनि प्र ववाचास्मै ॥"
-----जो गुह्य अग्निदेव को जानते हैं, यग्य में उन्हें प्रज्वलित करते हैं, और धारण की स्तुति करते हैं, वे अपार धन प्राप्त करते हैं ।----अर्थात.. जो विभिन्न पदार्थों में निहित --रसायन, काष्ठ, कोयला, जल, अणु आदि में अन्तर्निहित छुपी हुई अग्नि= शक्ति= ऊर्ज़ा को जानकर , उनसे ऊर्ज़ा-शक्ति प्राप्त करके उपयोग में लाते हैं वे वे व्यक्ति, समाज, देश सम्पन्नता प्राप्त करते हैं। केमीकल, एटोमिक, हाइड्रो-, स्टीम, काष्ठ स्थित मूल अग्नि ऊर्ज़ा आदि का वर्णन है ।
अग्नि की खोज व उपयोग--- ऋग्वेद 1/127/1432----का कथन है ---
" द्विता यवतिं कीस्तासो अभिद्य्वो वमस्पन्त । उद वोचतं भ्रिगवो मथ्नन्तो दाश्य भ्रगव ॥" ----भ्रगु वेष में उत्पन्न रिषियों ने मन्थन द्वारा अग्नि देव को प्रकट किया, स्त्रोत कर्ता,( पढ्ने-लिखने वाले) स्रजनशील( वैग्यानिक उपयोग कर्ता-खोजकर्ता), विनय शील( समाज व्यक्ति के प्रति उत्तर्दायी) भ्रगुओं ने प्रार्थनायें कीं ।
शब्द व वाणी अविनाशी- रिग्वेद १/१६४/१२१६--कहता है "तभूवुर्षा सहस्राक्षरा परमे व्योमनि॥" ...अर्थात ..वाणी सहस्र अक्षरों से युक्त होकर व्यापक आकाश , अन्तरिक्ष में संव्याप्त होजाती है ।अर्थात शब्द, वाणी, ( व सभी ऊर्ज़ायें) कभी विनष्ट नहीं होतीं , वे अक्षर हैं, अविनाशी । इसीलिये आज वैग्यानिक गीता के श्लोकों को अनन्त आकाश में से रिकार्ड करने का प्रयत्न कर रहे हैं ।
शब्द व वाणी अविनाशी- रिग्वेद १/१६४/१२१६--कहता है "तभूवुर्षा सहस्राक्षरा परमे व्योमनि॥" ...अर्थात ..वाणी सहस्र अक्षरों से युक्त होकर व्यापक आकाश , अन्तरिक्ष में संव्याप्त होजाती है ।अर्थात शब्द, वाणी, ( व सभी ऊर्ज़ायें) कभी विनष्ट नहीं होतीं , वे अक्षर हैं, अविनाशी । इसीलिये आज वैग्यानिक गीता के श्लोकों को अनन्त आकाश में से रिकार्ड करने का प्रयत्न कर रहे हैं ।