कुटिल आसुरी दुष्ट-भाव मय नारी प्रतिकृति ।
बनी पूतना रूप, घूमती ग्राम नगर नित ।
लीलाधर की लीला, जो पहुंची कान्हा घर ।
लिये रूपसी भाव, वेष वह ममता का धर ।
आंचल रूपी द्वेष-द्वन्द्व का भाव वह जटिल ।
चूस लिया कान्हा ने, सारा भाव वह कुटिल ॥