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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 18 जून 2011

अफसर...लघु कथा ......डा श्याम गुप्त....

                                                                          ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                              मैं रेस्ट हाउस के बरांडे में कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ,  सामने आम के पेड़ के नीचे बच्चे पत्थर मार- मार कर आम तोड़ रहे हैं |  कुछ पेड़ पर चढ़े हुए हैं,  बाहर बर्षा की हल्की-हल्की बूँदें (फुहारें) गिर रहीं हैं ... सामने पहाडी पर कुछ बादल रेंगते हुए जारहे हैं |    कुछ साधनारत योगी की भांति जमे हुए हैं..... निरंतर बहती हुई पर्वतीय नदी की धारा 'चरैवेति -चरेवैति '   का सन्देश देती हुई प्रतीत होती है,  बच्चों के शोर में मैं मानो अतीत में खोजाता हूँ ....गाँव में व्यतीत छुट्टियां,  गाँव के संगी साथी .... बर्षा के जल से भरे हुए गाँव के तालाव पर कीचड में घूमते हुए..... मेढ़कों को पकड़ते हुए , घुटनों -घुटनों जल में दौड़ते हुए ..... मूसलाधार बर्षा के पानी में ठिठुर-ठिठुर कर नहाते हुए ;  एक-एक करके सभी चित्र मेरी आँखों के सामने तैरने लगते हैं |  सामने अभी-अभी पेड़ से टूटकर एक पका आम गिरा है, बच्चों की अभी उस पर निगाह नहीं गयी है.... बड़ी तीब्र इच्छा होती है उठाकर चूसने की अचानक ही लगता है जैसे मैं बहुत हल्का होगया हूँ और बहुत छोटा..... दौड़कर आम उठा लेता हूँ ..वाह! क्या मिठास है ! ....मैं पत्थर फेंक-फेंक कर आम गिराने लगता हूँ... कच्चे-पक्के , मीठे-खट्टे .....अब पेड़ पर चढ कर आम तोड़ने लगता हूँ .....पानी कुछ तेज बरसने लगा है,   मैं कच्ची पगडंडियों पर नंगे पाँव दौड़ा चला जारहा हूँ ,  कीचड भरे रास्ते पर....... पानी और तेज बरसने लगता है..... बरसाती नदी अब अजगर के भांति फेन उगलती हुई फुफकारने लगी है....... पानी अब मूसलाधार बरसने लगा है .....सारी घाटी बादलों की गडगडाहट से भर जाती है... और मैं बच्चों के झुण्ड में इधर-उधर दौड़ते हुए गारहा हूँ ---

   ""बरसो राम धडाके से , बुढ़िया मरे पडाके से ""

               " साहब जी ! मोटर ट्राली तैयार है ",  अचानक ही बूटा राम की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूट जाती है, .....सामने पेड़ से गिरा आम अब भी वहीं पडा हुआ है..... बच्चे वैसे ही खेल रहे हैं |  मैं उठकर चलदेता हूँ वरांडे से वाहर ,हल्की-हल्की फुहारों में.... सामने से दौलत राम व बूटा राम छाता लेकर दौड़ते हुए आते हैं , ' साहब जी ऐसे तो आप भीग जाएँगे '  और मैं गंभीरता ओढ़ कर बच्चों को, पेड़ को .आम को व मौसम को हसरत भरी निगाह से देखता हुआ टूर पर चल देता हूँ |