....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अजनबी तुम भी थे,
अजनबी हम भी थे,
साथ चलते रहे अजनबी की तरह ।।
हम तो मुड़ मुड़ के राहों में देखा किये,
तुम भी देखोगे मुड़ सोचते ही रहे।
तुम ने देखा न हंसकर कभी इस तरफ,
यूं ही चलते रहे अजनबी की तरह॥
मैं तो सपनों में तुमको सजाता रहा,
तुम पुकारोगे मुझको मनाता रहा।
तुमने मुझको कभी यूं पुकारा नहीं,
स्वप्न से ही रहे अजनबी की तरह ॥
मैंने मंदिर में मस्जिद में सिज़दे किये,
साथ आकर कभी तुम भी सिज़दा करो।
तुम कभी पास आकर रुके ही नहीं ,
यूं ही चलते गए अजनबी की तरह॥
अपने गीतों में तुमको सजाते रहे,
छंद बनाकर तुम्ही मुस्कुराते रहे।
तुम कभी मन का संगीत बन कर मिलो,
यह मनाते रहे गुनगुनाते रहे ।
तुमने मेरा कोई गीत गाया नहीं ,
यूं ही सुनते रहे अजनबी से बने॥
कुछ कदम जो तेरे साथ हम चल लिए,
ज़िंदगी के कई रंग हम जीलिये।
मैं मनाता रहा तुम कभी यह कहो,
साथ मेरे चलो हर खुशी के लिए।
साथ चलने को तुमने कहा ही नहीं,
हम भी चलते गए अजनबी से बने ॥
साथ चलते रहे अजनबी की तरह ।।
हम तो मुड़ मुड़ के राहों में देखा किये,
तुम भी देखोगे मुड़ सोचते ही रहे।
तुम ने देखा न हंसकर कभी इस तरफ,
यूं ही चलते रहे अजनबी की तरह॥
मैं तो सपनों में तुमको सजाता रहा,
तुम पुकारोगे मुझको मनाता रहा।
तुमने मुझको कभी यूं पुकारा नहीं,
स्वप्न से ही रहे अजनबी की तरह ॥
मैंने मंदिर में मस्जिद में सिज़दे किये,
साथ आकर कभी तुम भी सिज़दा करो।
तुम कभी पास आकर रुके ही नहीं ,
यूं ही चलते गए अजनबी की तरह॥
अपने गीतों में तुमको सजाते रहे,
छंद बनाकर तुम्ही मुस्कुराते रहे।
तुम कभी मन का संगीत बन कर मिलो,
यह मनाते रहे गुनगुनाते रहे ।
तुमने मेरा कोई गीत गाया नहीं ,
यूं ही सुनते रहे अजनबी से बने॥
कुछ कदम जो तेरे साथ हम चल लिए,
ज़िंदगी के कई रंग हम जीलिये।
मैं मनाता रहा तुम कभी यह कहो,
साथ मेरे चलो हर खुशी के लिए।
साथ चलने को तुमने कहा ही नहीं,
हम भी चलते गए अजनबी से बने ॥