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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

पैसे का खेल आई पी एल -और चुनाव

पैसे की महिमा से मंडित आई पी एल के समाचारों ने अखबारों मैं चुनावी समाचारों को भी पीछे छोड़ दिया है । साहित्य व कला की बात कौन करे? -- जबकि कला व साहित्य से जुड़े लोग हमारा वोट -हमारे मुद्दे पर बहस मैं लगे हुए हैं। आरती का कहना है किसंस्कृत कर्मियों के बारे मैं पढ़े लिखे लोगों को ही पता लग पाता है,बहुसंख्यक को नहीं । भला क्यों नही ?-कला ,साहित्य। संस्कृत -कर्मीं --अपने -अपने स्वयं के लाभ, लाबी व विदेशी नक़ल ,एवं पांडित्य से परे रहकर , जन-जन की भाषा ,बोलचाल व विषयों पर काम करें , भारतीय सामाजिक सरिकारों पर काम करें ,उनके इतिहास ,धर्म संस्कृति की बात करें तभी तो वे जन सामान्य के करीब आपायेंगे.--कात्यायिनी--कला का बाजारी करण हुआ है। --मनोज चाहते हैं कि संस्कृत कर्मियों की भी जबाव देही तय हो। ---राजेश का कहना है कि दलों से जुड़ने के कारण कलाकारों की प्रतिरोध क्षमता घटी है। सभी विचार कलाकारों के लिए आत्म मंथन के विषय है। क्या वे सोचेंगे?

दल बदल व धर्म

के विक्रम रावकहते है कि-दलबदल व धर्म भी हो सरोकार के दायरे मैं-धर्म कोई मजहब नहीं है ,मजहब को उभारना असंगत है पर धर्म तो मानव व समाज ,राष्ट्र का चारित्रिक व नैतिक मापदंड है , उसी सरोकार की बात तो होनी चाहिए । मजहबी जूनून अनैतिक होता है धर्म नहीं।

हिन्दुस्तानी चरित्र का दोहरापन ---

खुशवंत सिंह उमा भारती के व्यवहार का दोहरेपन की बात करते हैं ?वे औरतों की बेईज्ज़ती के लिए उन्हें पुरूष से खतरनाक कोबरा कहते हैं, और अंग्रेज रुडयार्ड किपलिंग का उदाहरण देते हैं। ये विदेशी चाशनी मैं बढे पले व सोचने वाले लोगों को भारतीय उदाहरण कभी याद नहीं रहते ,जहाँ नारी को सदैव पुरूष से महान माना है।
छत्रपति शिवाजी के बारे मैं एक घटना है की कैसे वे एक कुए की जगत पर बैठ कर बच्चों को मिठाई बाँट रहे थे । अंग्रेज अधिकारी ने यह देखकर , अत्यन्त आश्चर्य हुआ की इतना नरम दिल स्वभाव वाला व्यक्ति , एक खूख्खार लडाका ,कठोर दंड देने वाला ,व अंग्रेजों के प्रति इतने कठोर रखवाला कैसे हो सकता है। शिवाजी ने अगले दिन उह अंग्रेज के अपराधी साथी के सर को कलम कर्वादिया था। --क्या शिवाजी का दोहरा हिन्दुस्तानी आचरण है। खुशवंत जी बापू को याद करें जो अकारण पर निंदा को अनुचित मानते थे। कृष्ण को पढ़ें ,सुनें समझें की यथानुसार आचरण किसे कहते हैं। किपलिंग को भूल जाएँ।