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...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
विश्व
की सबसे श्रेष्ठ व उन्नत भारतीय शास्त्र-परम्परा ---पुराण साहित्य में मूलतः अवतारवाद
की प्रतिष्ठा हैं निर्गुण निराकार
की सत्ता को मानते हुए सगुण साकार की उपासना का प्रतिपादन इन ग्रंथों का मूल विषय है।
उनसे
एक ही निष्कर्ष
निकलता है कि आखिर मनुष्य और इस सृष्टि का आधार-सौंदर्य
तथा इसकी मानवीय अर्थवत्ता में कही- न-कहीं सद्गुणों की प्रतिष्ठा होना
ही चाहिए। उसका मूल उद्देश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ही
है।
पौराणिक लिंग पुराण---भारत में लिंग पूजा की परंपरा आदिकाल से ही है। पर लिंग-पूजा की परंपरा
सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि दुनिया के ज्यादातर
हिस्सों में आरंभ से ही इसका चलन । यूनान में इस देवता को 'फल्लुस' ( जिससे
अन्ग्रेज़ी में फ़ैलस = शिश्न बना )तथा रोम
में 'प्रियेपस' कहा
जाता था।
'फल्लुस' शब्द (टाड का राजस्थान, खंड प्रथम, पृष्ठ
603) संस्कृत के 'फलेश' शब्द का ही अपभ्रंश है, जिसका प्रयोग शीघ्र फल देने
वाले 'शिव' के
लिए किया जाता है। मिस्र में 'ओसिरिस' , चीन में 'हुवेड् हिफुह' था।
सीरिया तथा बेबीलोन में भी शिवलिंगों के होने का उल्लेख मिलता है। उत्तरी अमेरिका में १९८० में एक मॉडर्न चर्च ,सेंट प्रियापस चर्च -फेलस वर्शिप का केन्द्र थी |
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ओसिरिस -मिस्र |
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शिवलिंग -चंबल घाटी -भारत |
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ग्रीक कथा में प्रियापस |
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मुखाकृति शिव-लिंग कम्बोडिया |
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लिंग -मूर्ति...रोम |
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जर्मनी में प्राप्त लिंग
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वियतनाम में प्राप्त लिंग-योनि |
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