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---"सेक्स मोरालिटी एंड सेंसरशिप " भला ये भी कोइ नाटक या पब्लिक शो का विषय हुआ?
ये सेक्स से अनभिग्य , काम कुंठित, अकिंचन, निच्च -दर्जे की विचार धारा वाले ( अपितु बिना विचार धारा वाले , विदेशी सोच व अंग्रेज़ी में सोचने वाले ) स्वयं में कुंठित व दयनीय स्थिति वाले लोग , जिन्हें करने को कोइ और उत्तम कार्य व विषय व धंधा नहीं मिल पाता --इसी प्रकार के मूर्खतापूर्ण कार्यों को धंधा बनाकर , मूर्खतापूर्ण, कृत्य , वक्तव्य व मांगें करते रहते हैं ,अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर समय वर्वाद करते हैं , लाइम लाईट में आने , अखबारों में छाने के लिए.।
---ये लोग प्राय: खजुराहो के नाम पर देश व समाज को ब्लेकमेल व गुमराह करते हैं। परन्तु वे यह नहीं सोच पाते कि खजुराहो एक विशिष्ट स्थान पर , गुफाओं में जन सामान्य से, बच्चों से दूर बना हुआ है , बाज़ार , मंच या पब्लिक में नहीं | अपने बेड रूम में सभी नंगे होते हैं , सोते हैं, सब कुछ करते हैं, पढ़ते, विचारते , देखते व आपस में डिस्कस करते हैं ; परन्तु मंच पर यह सब करना गैर कानूनी है | काम स्वयं में एक पवित्र भावना व अत्यावश्यक कर्म है परन्तु उचित स्थान, समय , तरीके से।
----- अब देखिये/पढ़िए चित्र -२. इसी काम, काम वासना , कामेश्वर, कामेश्वरी, को कितने सुन्दर , सार्थक, विवेकमय रूप से करना मंगलमय व धर्म सम्मत कहा गया है, ललिता सहस्र नाम में |
----इसे कहिये---- ईस्ट इज ईस्ट , वेस्ट इज वेस्ट--सोच की ऊंचाई व नीचाई ; उथलापन व गहराई ; सिर्फ सतही -ज्ञान और प्रज्ञा-विवेक का फर्क ।