कदम बढ़ते रहें ....
न कोइ शिकवा न शिकायत है ज़िंदगी तुझसे |
क्या मिला क्या न मिला न कोइ पूछे हमसे |
जो मिला अच्छा मिला रब की नियामत तो मिली,
बीता ये साल नए वर्ष की मंजिल तो मिली।
हम दुआ करते हैं ,सब ये दुआ करते रहें,
नई मंजिल पे सदा कदम ये बढ़ते रहें।
ज़िंदगी रोज़ नए रंग में ढलती जाए,
ज़िंदगी रोज़ नए गुल बनी खिलती जाए।
श्याम' आये न मेरे देश पे संकट कोइ,
मिट ही जाए जो इसे आँख दिखाए कोइ।
और क्या मांगूं भला ज़िंदगी अब तुझसे ,
जो भी जैसा भी मिले,अच्छा मिले सब तुझसे ॥
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शनिवार, 2 जनवरी 2010
वर्ष की अंतिम ग़ज़ल --डा श्याम गुप्ता --- क्या है --
जलती शमा का ये कहना भी क्या है |
कि परवाना खुद को समझता ही क्या है |
यही कह रहा है ये परवाना जलकर ,
जला जो नहीं उसका जीना भी क्या है |
जो जल करके करते कठिन साधना, तप-
भला इससे बढ़ करके पूजा ही क्या है |
जला जो शमा पर ,शलभ पूछता है,
बताए कि कोइ खता मेरी क्या है |
पिघला कर शमा कह रही है सभी से,
जो तिल तिल न पिघला वो जीना ही क्या है |
तड़पता हुआ एक परवाना बोला,
मेरी प्रीति है, ये अदा तेरी क्या है |
वो बुझती हुई शम्मा बोली चहक कर,
जिए ना मरे साथ , जीना ही क्या है |
यही श्याम' है प्रीति की रीति न्यारी,
नहीं प्रीति जीवन में जीना ही क्या है ||
कि परवाना खुद को समझता ही क्या है |
यही कह रहा है ये परवाना जलकर ,
जला जो नहीं उसका जीना भी क्या है |
जो जल करके करते कठिन साधना, तप-
भला इससे बढ़ करके पूजा ही क्या है |
जला जो शमा पर ,शलभ पूछता है,
बताए कि कोइ खता मेरी क्या है |
पिघला कर शमा कह रही है सभी से,
जो तिल तिल न पिघला वो जीना ही क्या है |
तड़पता हुआ एक परवाना बोला,
मेरी प्रीति है, ये अदा तेरी क्या है |
वो बुझती हुई शम्मा बोली चहक कर,
जिए ना मरे साथ , जीना ही क्या है |
यही श्याम' है प्रीति की रीति न्यारी,
नहीं प्रीति जीवन में जीना ही क्या है ||
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