....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
..देव मानव दानव ....
मूर्ति देव है जन जीवन का,
मनीषियों का देव ह्रदय है,
समदर्शी हित सभी देव हैं ||
देव वही जो सबको देते,
देव वही जो सब कुछ देते ।
जो सबको बस दे्ता जाये
वह जग में देवता कहाये ॥
सूरज जो गर्मी देता है,
और उजाला देता रहता |
बादल वर्षा करता रहता ||
सागर से मिलते हैं मोती,
नदिया जल देती रहती है |
धरती जाने क्या क्या देती,
सब कुछ वह देती रहती है ||
बृक्ष भला कब फल खाते हैं,
पुष्प कहाँ निज खुशबू लेते |
कांटे भी तो देते ही हैं ,
दुःख के साथ सीख देदेते ||
शास्त्र तभी तो यह कहता है,
देव-तत्व सबमें रहता है |
जग में जो कुछ भी बसता है,
कुछ न कुछ देता रहता है ||
सारी दुनिया देती रहती ,
मानव लेता ही रहता है |
यदि लेकर के हो कृतज्ञ, फिर-
प्रभु इच्छाएं भर देता है ||
जो कृतज्ञ होकर लेता है,
सिर्फ जरूरत भर लेता है |
निज सुख खातिर कष्ट नहीं,
जो , देने वाले को देता है ||
'जग हरियाली युक्त बनाएं-
और प्रदूषण मुक्त बनाएं |'-
जो यह सब भी चिंता करते,
उऋण रहें देवों के ऋण से ||
जो प्रसन्न देवों को रखते,
उनको ही कहते हैं मानव |
अति-सुख अभिलाषा के कारण,
उन्हें सताएं , वे हैं दानव ||
लालच और लोभ के कारण ,
प्रकृति का दोहन जो करते |
वे जो अति भोगी मानव हैं,
कष्ट सभी देवों को देते ||
करें प्रदूषण युक्त धरा को,
अज्ञानी लोभी जो मानव |
मानव पद से वे गिर जाते,
वे सब कहलाते हैं दानव ||
----चित्र गूगल व सुषमा गुप्ता साभार
मूर्ति देव है जन जीवन का,
शास्त्र तभी तो यह कहता है,
जो कृतज्ञ होकर लेता है,