....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
रे मनुवा मेरे ....रे मनुवा ....मेरे .......रे मनुवा मेरे ...............|
काहे मल -मल कुम्भ नहाए....
मन के घट मद-मोह भरा रे ,
यह तू समझ न पाए रे .....|...रे मनुवा मेरे ......||
नदिया तीर लगाए मेले ,
भीड़-भड़क्के, ठेलम ठेले |
दूर- दूर चलि आये ,
अड़सठ कुम्भ नहाए|
मन का मैल न जाए ...रे.....| रे मनुवा मेरे .....||
कोई गाडी चढ़कर आये ,
हाथी रथ पालकी सजाये |
बाबू अफसर , शासक, नेता ,
अपने अपने कर्म सजाये |
गुरु पाछे बहु चेले आये ,
सेठ-सेठानी जी भर न्हाये|
मल मल न्हाये रे ......
कैसा कुम्भ नहाना रे मनुवा....
जो मन मैल न जाए रे ..........| रे मनुवा मेरे ........||
गुरु स्वामी शुचि संत समाजा ,
विविधि ज्ञान, बहु पंथ विराजा |
बहु-मत, बहुरि तत्व गुन राजा,
योग, कर्म, भक्ति शुचि साजा |
काहे न ज्ञान कुम्भ तू न्हाये,
काहे न मन के भरम मिटाए |
जो मन मैल मिटाए रे....
मन, शुचि कर्म सजाये रे .....
रूचि-रूचि कुम्भ नहाए रे ......|....रे मनुवा मेरे ......||
कैसा कुम्भ नहाना रे मनुवा ,
जो मन मैल न जाए रे ...|
मन का भरम न जाए रे ...|
रे मनुवा... मेरे... रे.....मनुवा मेरे...... रे मनुवा मेरे................||
रे मनुवा मेरे ....रे मनुवा ....मेरे .......रे मनुवा मेरे ...............|
काहे मल -मल कुम्भ नहाए....
मन के घट मद-मोह भरा रे ,
यह तू समझ न पाए रे .....|...रे मनुवा मेरे ......||
नदिया तीर लगाए मेले ,
भीड़-भड़क्के, ठेलम ठेले |
दूर- दूर चलि आये ,
अड़सठ कुम्भ नहाए|
मन का मैल न जाए ...रे.....| रे मनुवा मेरे .....||
कोई गाडी चढ़कर आये ,
हाथी रथ पालकी सजाये |
बाबू अफसर , शासक, नेता ,
अपने अपने कर्म सजाये |
गुरु पाछे बहु चेले आये ,
सेठ-सेठानी जी भर न्हाये|
मल मल न्हाये रे ......
कैसा कुम्भ नहाना रे मनुवा....
जो मन मैल न जाए रे ..........| रे मनुवा मेरे ........||
गुरु स्वामी शुचि संत समाजा ,
विविधि ज्ञान, बहु पंथ विराजा |
बहु-मत, बहुरि तत्व गुन राजा,
योग, कर्म, भक्ति शुचि साजा |
काहे न ज्ञान कुम्भ तू न्हाये,
काहे न मन के भरम मिटाए |
जो मन मैल मिटाए रे....
मन, शुचि कर्म सजाये रे .....
रूचि-रूचि कुम्भ नहाए रे ......|....रे मनुवा मेरे ......||
कैसा कुम्भ नहाना रे मनुवा ,
जो मन मैल न जाए रे ...|
मन का भरम न जाए रे ...|
रे मनुवा... मेरे... रे.....मनुवा मेरे...... रे मनुवा मेरे................||