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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 5 जनवरी 2014

हम्पी-बादामी यात्रा वृत्त ..भाग २ ..अनेगुंडी.......






                                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
 

                हम्पी-बादामी यात्रा वृत्त ..भाग २ ..अनेगुंडी.....पम्पापुर या पम्पाक्षेत्र 




हरा भरा पम्पाक्षेत्र
             
तुंगभद्रा के दूसरे तट से अनेगुंडी ग्राम



 




         २२-१२-१३ को हम लोग कार द्वारा बेंगलोर से तुमकुर, चित्रदुर्ग, होसपेट होते हुए सीधे तुंगभद्रा नदी के पार कोपल जिले के गंगावथी तालुका पहुंचे जहां होटल सर्वेश में अपना सामान रखकर फ्रेश होकर तुरंत ही कार से अनेगुंडी भ्रमण के लिए चल पड़े | गंगावथी-अनेगुंडी-सानापुर रोड पर ही विभिन्न मंदिर व पम्पासर आदि स्थित हैं|
         नग्न शिलाखंडों ( बोल्डरों) के पर्वत शिखरों से घिरा हुआ अनेगुंडी अर्थात वानरों का ग्राम प्राचीन पम्पाक्षेत्र वानरराज बाली-सुग्रीव की राजधानी किष्किन्धा है जो पृथ्वी का सबसे प्राचीन स्थल है | जिसे भूदेवी का मातृस्थल कहा जाता है ...पृथ्वी की उम्र के बराबर ही यह ४ अरब वर्ष पुराना स्थल है| जहां मानव ने सर्वप्रथम अपने कदम पृथ्वी पर रखे | जिसका रामायण में सौन्दर्यमय हरे-भरे क्षेत्र के रूप में वर्णन है |





शबरी आश्रम से शबरी गुहा के अन्दर का रास्ता



प्राचीन पुल से ऋष्यमूक पर्वत

ऋष्यमूक पर्वत व चक्रतीर्थ
सुग्रीव गुफा

पम्पासर -शिवमंदिर में पम्पा देवी की मूर्ति
 
दुर्गा मंदिर, बाली दुर्ग एवं अनेगुंडी फोर्ट

सुग्रीव गुहा --जहाँ राम-सुग्रीव मित्रता हुई

हनुमान जी का जन्म-स्थल आंजनेय पर्वत

आराध्य- तुंगभद्रा का स्पर्श

गगन महल पर निर्विकार रीना
पम्पासर पर लक्ष्मी मंदिर व शबरी आश्रम


रमणीय -पम्पा सरोवर
                           यू-ट्यूब ... पम्पा सरोवर पर कीर्तन

पम्पा सरोवर....देवी पार्वती का तप स्थल एवं जहां उनका पम्पादेवी नाम से ब्रह्माजी की पुत्री के रूप में शिव से विवाह हुआ था, यहाँ लक्ष्मी मंदिर है एवं शिव मंदिर एवं पंपादेवी की मूर्ति स्थापित है| समीप ही शबरी आश्रम व गुफा है जहां राम ने शबरी के बेर खाए थे इसे सुरोवन भी कहा जाता है | पम्पा तुंगभद्रा का प्राचीन नाम भी है| पम्पा का अर्थ श्वेत-कमल भी है अर्थात कमलों से से भरा सरोवर | रामायण में पम्पासर का मनोहारी वर्णन किया गया है जहां राम-लक्ष्मण ने वन में घूमते रहने की थकान मिटाई थी | परन्तु हमें सरोवर में कमल का कोइ भी पुष्प दृष्टिगत नहीं हुआ | शायद किसी ऋतु विशेष में खिलता हो |
पम्पासर --लक्ष्मी मंदिर एवं पेड़ पर लंगूर-वानर


आन्जनेयाद्र पर्वत पर चाय

दुर्गा मंदिर ...समीप ही सुन्दर दुर्गा-मंदिर है जो बाली के पाषाण-दुर्ग  एवं विजयनगर की सर्वप्रथम राजधानी के समय के अनेगुंडी फोर्ट का एक द्वार है | समीप ही बाली व सुग्रीव हिल्स भी हैं | दुर्ग पर होने के कारण यहाँ स्थित देवी को दुर्गा कहा गया | विजयनगर के सम्राट इसी मंदिर में पूजा एवं पम्पासर में स्नान व लक्ष्मी मंदिर दर्शन के बाद युद्ध हेतु प्रयाण किया करते थे |...चित्र ५-८ ..

अंजनी हिल.... काफी ऊंचाई पर स्थित पर्वत पर यह हनुमान जी का जन्मस्थल है जहां माता अन्जनी देवी का मंदिर है | समीप की पहाडियों पर पाषाण काल के शैल-चित्र एवं आवास गुहायें हैं चित्र ...९..१०

ऋष्यमूक पर्वत---तुगभद्रा ऋष्यमूक पर्वत को घेरा बना कर बहती है इस घेरे को चक्रतीर्थ भी कहा जाता है| इसी पर्वत पर बाली द्वारा निष्कासित सुग्रीव का आश्रय स्थल था जहां राम –हनुमान मिलन व सुग्रीव से मित्रता हुई थी एवं बाली का वध |

गगन महल... अनेगुंडी ग्राम में तुंगभद्रा के किनारे प्राचीन राजमहल | जिसके समीप ही अन्य कई मंदिर समूह हैं| धान के खेतों की हरियाली के मध्य अन्य कई महलों आदि के ध्वंषावशेष हैं|  

                 २३-१२-१३को प्रातःकाल में ही कार द्वारा अनेगुंडी होते हुए तुंगभद्रा के दूसरे तट पर हम्पी के लिए प्रस्थान किया | कार को विरूपाक्ष मंदिर के सम्मुख नदी के तट पर स्थित अनेकों रेज़ोर्ट्स व होटलों के समूह के समीप कार स्टेंड पर छोड़कर बोट द्वारा नदी को पार करके हम्पी पहुंचे | 
         नदी पार करने से पूर्व रास्ते में स्थित रॉक आर्ट एवं प्री-हिस्टोरिक स्थलों का, शिला-उत्कीरणन एवं शैल-चित्रों  के अवलोकन का अवसर मिला | गंगावथी-अनेगुंडी-सानापुर मुख्य सड़क पर ही किले के पाषाण के द्वारनुमा स्थल के समीप  बोल्डर पर उत्कीर्णित



लौह युग के शैल-चित्र


बोल्डर पर अंकित गणेश जी
बोल्डर पर क्षीर सागर में विष्णु
रोक पेंटिंग
पाषाण कालीन शैल-निवास
गणेश जी के मूर्ति के समीप ही पगदंडी पहाड़ियों के अन्दर जाती है जहां पर गुहाओं में पाषाण कालीन शैलचित्र मौजूद हैं| अनेगुंडी की पर्वत श्रृंखलाओं में सर्वत्र पाषाणयुग के मानव निवास-स्थल (रौक शेल्टर्स), शैल-चित्र, कब्र-स्थल एवं लौहयुग की चित्रकारी यत्र-तत्र बिखरी हुई पायी गयी हैं|

 

बुराई की जड़ –कविता-- डा श्याम गुप्त ....

                               ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



             आज  विश्व में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला है...साथ ही  देश की राजनीति एवं   प्रत्येक क्षेत्र में उसके विरुद्धआवाजें भी उठ रही हैं जो एक अच्छा प्रतीक है ...मानवता के लिए ....परन्तु प्रत्येक बुराई का  ..अनीतिशास्त्र का वास्तविक मूल कहाँ है ...असीमित सुख की अभिलाषा....प्रस्तुत है एक कविता......

बुराई की जड़

प्रत्येक बुराई की जड़ है,
अति सुखाभिलाषा ;
जो ढूंढ ही लेती है
अर्थशास्त्र की नई परिभाषा;
ढूंढ ही लेती है
अर्थ शास्त्रं के नए आयाम ,
और धन आगम-व्यय के
नए नए व्यायाम |
और प्रारम्भ होता है
एक दुश्चक्र, एक कुचक्र -
एक माया बंधन -क्रम उपक्रम द्वारा
समाज के पतन का पयाम |
 
समन्वय वादी, तथा-
प्राचीन अर्वाचीन से
नवीन को जोड़े रखकर,बुने गए-
नए नए तथ्यों, आविष्कारों, विचारों से होता है,
समाज-उन्नंत... अग्रसर |
पर, सिर्फ सुख अभिलाषा, अति सुखाभिलाषा-
उत्पन्न करती है, दोहन-भयादोहन,
प्रकृति का,समाज का, व्यक्ति का;
समष्टि होने लगती है, उन्मुख
व्यष्टि की ओर;
समाज की मन रूपी पतंग में बंध जाती है-
माया की डोर |
ऊंची, और ऊंची, और ऊंची
उड़ने को विभोर ;
पर अंत में  कटती है ,
गिरती है, लुटती है वह डोर-
क्योंकि , अभिलाषा का नहीं है, कोई-
ओर छोर |

नायकों, महानायकों द्वारा-
बगैर सोचे समझे 
सिर्फ पैसे के लिए कार्य करना;
चाहे फिल्म हो या विज्ञापन ;
कर देता है-
जन आचार संहिता का समापन |
क्योंकि इससे उत्पन्न होता है
असत्य का अम्बार,
झूठे सपनों का संसार ;
और उत्पन्न होता है ,
भ्रम, कुतर्क, छल, फरेब, पाखण्ड का
विज्ञापन किरदार ,
एक अवास्तविक, असामाजिक संसार |

साहित्य, मनोरंजन कला-
जब धनाश्रित होजाते हैं;
रोजी रोटी का श्रोत , -
आजीविका बन जाते हैं ;
यहीं से प्रारम्भ होता है-
लाभ का अर्थ शास्त्र,
लोभ धन आश्रित अनैतिकता की जड़ का ,
नवीन लोभ-कर्म नीति शास्त्र , या--
अनीति शास्त्र ||